ऐसी प्रलय भयंकर आई ,होश मनुज के दियो उड़ाय
काल घनों पर उड़ के आया ,घर के दीपक दियो बुझाय
पिघली धरा मोम के जैसे ,पर्वत शीशे से चटकाय
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद ,धर्म कहाँ कोई बतलाय
बच्चे बूढ़े युवक युवतियां ,हुए जलमग्न कौन बचाय
शिव शंकर आकंठ डूबे , चमत्कार नाही दिखलाय
केदारनाथ शिवालय भीतर,ढेर लाश के दियो लगाय
मौत से लड़कर बच गए जो ,उनकी पीर कही ना जाय
नागिन सी फुफकारें नदियाँ ,निर्झर गए खूब पगलाय
पर्वत हुए खून के प्यासे, मिलकर सभी तबाही लाय
गौरी कुंड में लगी समाधि ,हरिद्वार में बहकर आय
उस पर ये जल्लादी मानव ,लूट शवों पर रहे मचाय
कुपित धरा के बाण चले जब ,उसके वार सभी बिसराय
स्वार्थी लोभी भूखे मानव ,नहीं सुने तब उसकी हाय
कुदरत ने जो मारी कंकड़ , घड़ा पाप का फूटा जाय
जैसी करनी वैसी भरनी , कुदरत सुनो रही समझाय
क्षीण हुआ जब उर क्रंदन स्वर ,पल भर को रवि बाहर आय
भेजी किरणे आमंत्रण को , सुप्त प्रशासन दियो जगाय
हंस यान पर बैठ प्रशासक,सर्वनाश चित्र देखन आय
खबर नहीं कुछ सोच रहे हों , कैसे वोट बटोरे जाय
उजड़ा उत्तर मान चित्र का ,फिर भी बात समझ ना पाय
सत्ता बैठी आँख मूंदकर ,राष्ट्रिय त्रासदी नहीं लिखाय
**************************************************
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
इस प्रस्तुति पर काव्य विधान की बात न कर कथ्य और उसकी प्रस्तुति पर चर्चा उचित होगा.
यह अवश्य है, आदरणीया, कि जिस विभीषिका की मार उत्तरांचल की जनता झेल रही है वह सामान्यतया पहाडों के स्वयं के कारण नहीं आती है. यह सब हमारे विकास-मॉडल की देन है जिसे हमने भौगोलिक संतुलन की परवाह किये बग़ैर उसे थोप दिया है. आज कितने लोग सुंदर लाल बहुगुणा को जानते हैं या याद करते हैं जिसने इस तथाकथित विकास से होने वाली बरबादी को अंदाज़ा लगा कर प्रारंभ में ही इसका विरोध करना शुरु किया था. निकृष्ट स्वार्थ, अदूरदृष्टि तथा अकूत संपत्ति के सामने सब मौन हो गये.
अब प्रकृति विनाशक दिख रही है तो हमें रोने-पीटने का कोई अधिकार नहीं है. बस चुपचाप सिर झुकाकर अपनी गलतियों को मानते हुए हम आगे की पीढ़ियों के लिये उत्तरदायी बनें. आज की दुःख की घड़ी में संवेदना के स्वर पहाड़ के पुत्रों-पुत्रियों के लिए निकल रहे हैं जिनने वाकई सबकुछ खोया है.
सादर
आदरणीय जीतेन्द्र जी दिल से आभारी हूँ मेरी प्रस्तुति पर अपने विचार प्रकट करने हेतु |
आदरणीय जवाहर लाल जी आपका हार्दिक आभार मेरी प्रस्तुति पर विचार प्रकट करने हेतु |
प्रिय सखी डॉ नूतन जी इस आपदा में हम सब एक साथ हैं जो चले गए उनके जाने का गम जो अभी तक फंसे हुए हैं उनकी चिंता ,मन व्यथित है किसको ज्यादा बयाँ करूँ बस कुछ कहते नहीं बनता आपका हार्दिक आभार मेरी प्रस्तुति पर विचार प्रकट करने हेतु
आदरणीया, सादर अभिवादन!
आपने आल्हा धुन पर सत्य सत्य बयां कर दिया है ... बड़ा ही ह्रदय विदारक दृश्य हैं वहाँ के और वैसे ही हम सब हृदयहीन होते जा रहे हैं! बाकी आपने सबकुछ कह दिया है!
राजेश जी... आपने इस आपदा के हर पहलू, दुःख को बखूबी उतार लिया है और राजनीती जो चलती है आपदा के बाद उसका भी चित्रण है... आप बहुत सुन्दर लिखती है... किन्तु अभी मन बहुत दुखी है... आपको मेरा नमन ...
हार्दिक धन्यवाद प्रिय महिमा श्री |
सही कहा दी जितना भी बयां किया जाए कम हैं .. जिनके सगे सम्बन्धी इस आपदा में अपनी जान गवां बैठे है उनकी क्षतिपूर्ति तो कोई नहीं कर सकता .. बहुत ही अच्छी बात है आप कुछ कर सकने में सक्षम है अपनी संस्था के माध्यम से .. मेरी शुभकामनाएं आपसभी के साथ हैं ..
प्रिय महिमा श्री रचना के मर्म ने आपको छुआ लिखना सार्थक हुआ ये लिख कर सच में मैंने खुद को हल्का महसूस किया बहुत दिनों से उत्तराखंड वासीयों की हालत प्रशासन की ढील पढ़ भी रही थी सुन भी रही थी अपने वश में जितना है अपनी धाद और उमा संस्था के माध्यम से उन लोगों के लिए जो कुछ बन पड़ रहा है कर रही हूँ ये इतना दुखद है की बयाँ करने के लिए शब्द नाकाफी हैं |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online