इक दिया तुमने जलाया होता
तम जरा सा ही हटाया होता
हिन्द में रहते सभी हिंदी हैं
भेद मजहब का मिटाया होता
साथ जीने में मजा आता है
पाठ सबको ये पढ़ाया होता
गर खता हमसे हुई माफ़ करो
वाकया गुजरा भुलाया होता
कुछ खुदा की यूं इबादत करते
रोते बच्चे को हसाया होता
चीरते हो बस मही का सीना
गुल से आँचल भी सजाया होता
दूध जिस माँ का पिया है तुमने
कर्ज कुछ उसका चुकाया होता
मौलिक व अप्रकाशित
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
Comment
आदरनीय सौरभ सर ...आपका मार्गदर्शन बस यूं ही मिलता रहे ..निदा फाजली जी की ग़ज़लों के बिषय में सिर्फ जानकारी जगजीत सिंग जी को सुनकर हुई ..उन्हें पढने का मौका कभी नहीं मिला ..आपने अच्छा किया की जानकारी दे दी ..मुझसे अनजाने में जो खता हो गयी थे उसे सुधारने का मौका मिला ..ओपन बुक्स ओं लाइन ज्वाइन करने के बाद ग़ज़ल सीखने का मौका मिला ..बस आप मुझे मेरी हर ग़ज़ल पर खुलकर चाहे कितना भी कटु हो बताते जाएँ ..ताकी ग़ज़ल लिखने का मेरा जूनून कम न हो ..सादर प्रणाम के साथ
डॉ. आशुतोष, आपकी ग़ज़ल पर दाद कह रहा हूँ.
आपके कहे कई अशार उम्दा हुए हैं. बधाई.. .
आप २१२२ २१२२ २२ मेन्शन कर दिये होते तो नये ग़ज़लकारों को या प्रयासकर्ताओं को आपकी ग़ज़ल को अरुज़ के लिहाज़ से समझने में सहूलियत होती.
एक बात -
कहे हुए से इन्फ्लुएन्स होना आश्चर्य नहीं, लेकिन ऐसे नहीं -
कुछ खुदा की यूं इबादत करते
रोते बच्चे को हसाया होता ... .. निदा फ़ाज़ली एकदम से याद आगये.
आदरणीया लता जी , महिमा जी , शेखर साहेब , अरुण जी , विजय ई लादिवाला सर , वंदना जी आप सभी के प्रेरणा देने वाले उत्साहवर्धक शब्दों के हार्दिक धन्यवाद ..भिविस्य में भी आप सभी का स्नेह ऐसे ही मिलता रहेगा ऐसी आशा के साथ
बहुत-२ बधाई आपको.....बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत ही बढ़िया गज़ल हुयी है आदरणीय ..बहुत-२ बधाई आपको
आदरणीय डॉ साहब, आपकी यह रचना मंत्रमुग्ध करने वाली है, नमन
वाह आदरणीय वाह बहुत ही सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.
दूध जिस माँ का पिया है तुमने
कर्ज कुछ उसका चुकाया होता -----बहुत सुन्दर और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री अशुतोल्श मिश्र जी
साथ जीने में मजा आता है
पाठ सबको ये पढ़ाया होता
बहुत बढ़िया
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