For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सितार के

सुरमई तारों की झंकार से

गूँज उठी

स्वप्न नगरी..

समय के धुँधलके आवरण से

शनैः शनैः

प्रस्फुटित हो उठी

एक आकृति

अजनबी

अनजान..

स्वप्नीली पलकें

संतृप्त मुस्कान

प्राण-प्राण अर्थ

निःशब्द..

निःस्पर्श स्पंदन

कण-कण नर्तन

क्षण विलक्षण

मन प्राण समर्पण

सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर

अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !

 

Views: 937

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on August 29, 2013 at 6:41pm
आपकी रचनाओं में शब्दों और भावों का संयोजन अप्रतिम रहता है आदरणीया,हम जैसों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
मैंने कई बार पढ़ी आपकी रचना।
आप मेरा पूछना अन्यथा न लें तो फिर कुछ पूछूं आदरेया...?अपनी समझ विकसित करने लिए।
सादर
Comment by राजेश 'मृदु' on August 29, 2013 at 5:20pm

अमूर्त की यह कल्‍पना हमेशा इसी तरह प्राणावान होती है, आपकी रचना उस व्‍यक्ति को आवाज देती है जो हम सबके अंदर है और जब तन शिथिल हो जाता है, मन की अतृप्ति हाहाकार करने लगती है तब ऐसा ही कोई हमें अनायास अनुप्राणित कर जाता है, एक अनूठा संबल दे जाता है । यह वही शक्ति है जो शक्तिहीन शरीर को भी शक्तिवान बना देती है, मैं इसका यही अर्थ निकाल सकता हूं, शेष कवि ही जाने कवि की कल्‍पना, सादर

Comment by Vasundhara pandey on August 29, 2013 at 9:56am

रोम -रोम  झंकृत हो उठे....

अद्भुत .......


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 29, 2013 at 9:18am

वाह प्रिय प्राची शब्दों की जादूगरी से भोर की बेला उसमे किसी अपने के स्पर्श का एहसास सखा ,साथी हमसफ़र(यदि  शीर्षक को लेकर चलें तो ) या यूँ कहें उस अद्वीत्य परम पूज्य परमेश्वर की अनुकम्पा का एहसास ,या जगत को प्रकाशमान करने वाले आदिदेव सूर्य की उष्णता का एहसास ,किसी भी द्रष्टिकोण से पढ़ें ये रचना उसी में ढल कर आँखों के समक्ष चित्रित होती है बर बस मुख से वाह निकल जाता है ,बहुत- बहुत बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 28, 2013 at 7:19pm

गठबंध परस्पर - हमसफ़र ! - बहुत सुन्दर बात कही है आपने रचना में विशेषकर भारतीय संस्कृति तो इसी आधार पर टिकी है |

अनकहे वादे - जब मन प्राण समर्पित करने के भाव लिए निभाये जाते है तो कहते है यह सात जन्मो का गठबंधन है | जिस्म दो,

जान एक है |अनजान आकृतियों का संविलियन हो एक नया अंकुर अंकुरित होता है |

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुन्दर शब्द चित्र रचना के लिए हार्दिक बधाई डॉ प्राची जी   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 28, 2013 at 5:54pm

आदरणीया प्राची जी ,अदभुत रचना , अदभुत शब्द संयोजन !! हार्दिक बधाई !!

Comment by vijayashree on August 28, 2013 at 1:07pm

अदभुत शब्दों का समावेश ,अति सुदर 

हार्दिक बधाई आ. डॉ. प्राची 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 28, 2013 at 11:45am

सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर

अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !

अति सुंदर रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया डा. प्राची जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 28, 2013 at 8:49am

आ0 प्राची मैम जी, सादर प्रणाम! वाह! वाह! //प्रफुटित हो उठी
एक आकृति
अजनबी
अनजान..// ऐसा ही प्रतीत होता है जब कण-कण नर्तन करता है और मन प्राण समर्पण होता है; तब होता है समां निराला..अनकहे वादे, निःशब्द, प्राण प्रण निछावर......सत्यमेव जयते!  इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए आपको हृदयतल से बधाई। सादर,

Comment by vandana on August 28, 2013 at 7:14am

बहुत बहुत सुन्दर आदरणीय प्राची जी  एक अलग ही खनक महसूस हो रही है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
47 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
53 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
56 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
16 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
19 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service