For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यादों के साथ साथ तेरी चल रहा हूँ मैं

फ़ुर्कत की आग दिल में लिए जल रहा हूँ मैं।

यादों के साथ साथ तेरी चल रहा हूँ मैं॥

 

आ जा अभी भी वक़्त है तू मिल ले एक बार,

इक बर्फ़ की डली की तरह गल रहा हूँ मैं॥

 

संजीदा कब हुआ है मुहब्बत में तू मेरी,

हरदम तेरी नज़र में तो पागल रहा हूँ मैं॥

 

तू तो भुला के मुझको बहुत दूर हो गया,

तन्हाइयों के बीच मगर पल रहा हूँ मैं॥

 

रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,

क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥

 

यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,

एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥

 

 “सूरज” जो उग रहा है सलामी मिले उसे,

पूछेगा मुझको कौन अभी ढल रहा हूँ मैं॥

 

डॉ सूर्या बाली “सूरज”

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 676

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on November 20, 2013 at 6:07pm

शानदार गज़ल के लिए, आदरणीय सूर्या बाली जी बधाई स्वीकार करें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 20, 2013 at 4:17pm

आदरणीय डॉ० सूर्या बाली जी 

आपकी ग़ज़ल के अशआर ज़िंदगी को जिस संवेदना से जीते हैं... उसपर बस मन मुग्ध हो जाता है... शेर दर शेर ग़ज़ल को पढ़ते जाना एक एहसास बन जाता है 

आ जा अभी भी वक़्त है तू मिल ले एक बार,

इक बर्फ़ की डली की तरह गल रहा हूँ मैं॥...................बहुत सुन्दर 

रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,

क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥...........क्षमा कीजियेगा एक संशय है ....क्या इस शेर में शुतुर्गुर्बा का ऐब बन रहा है?.... 

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर पेशकश पर 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 19, 2013 at 11:53pm

यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,

एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥

 वाह्ह्ह बहुत उम्दा शेर ,पूरी ग़ज़ल ही शानदार है दाद कबूल कीजिये .......   पर ...हाँ क्यूँकि को सोल्व कीजिये 

Comment by MAHIMA SHREE on November 19, 2013 at 10:56pm

रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,

क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥

 

यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,

एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥.... वाह वाह क्या बात है आदरणीय डॉ साहब ..हर बार की तरह लाजवाब ... बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 9:04pm

डॉक्टर साहब, कमाल की आह निकली है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकार कीजिये.
कई शेर हैं जो दिल को न केवल छू गये हैं, बल्कि देर तक सिहरन होते जाने का कारण बने हैं.
इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद


एक बात :
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं.. . .. बह्र त निभ गयी पर इस क्यूँकि को क्या कर दिया आपने ? .. :-)))
शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 19, 2013 at 7:55pm

बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली बधाईयाँ,,,,,,,,,,,,,,

 “सूरज” जो उग रहा है सलामी मिले उसे,

पूछेगा मुझको कौन अभी ढल रहा हूँ मैं॥

किस  वास्ते इतरा रहा है आज पे ऐ दोस्त

तू झाँक गिरेबाँ में,तेरा कल रहा हूँ मैं...........

Comment by annapurna bajpai on November 19, 2013 at 7:44pm

रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,

क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥................. बहुत सुंदर , बधाई आपको । 

 

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 19, 2013 at 7:07pm

बहुत सुंदर भाव आ0 सूरज जी शानदार अभिव्यक्ति ... सादर..... 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 19, 2013 at 6:00pm

अच्छे भाव ,

रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,

क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥..ये शेर इस ग़ज़ल का मेरा पसंदीदा शेर है ..

यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,

एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥....तेरी का प्रयोग थोडा खल रहा है ..बैसे बिद्वत जन ज्याद बेहतर बताएँगे ,,सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 19, 2013 at 3:15pm

बहुत ख़ूब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service