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आदरणीय अखिलेश कृष्णजी, नववर्ष मंगलमय हो !
सादर
ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .....................बहुत सुन्दर मनभावन नवगीत, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय सौरभ जी | सादर
बहुत गहरे भाव रचना में | प्रराम्भ ही गहरे भाव छोड़ता हुआ - आँखों के गमले के लिये नए साल की धुप की कामना से | वाह ! बहुत सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई -
रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .------------नए साल की तनिक धुप का सुन्दर अहसास से ही मन करता है स्वागत करने को उदय होते सूर्य को |
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .---------पिछले बाते सहज रूप से लेकर हमने सुखद अश्को से नाम थी आँखे | नए साल के सुनहरे सपनो
से चमक रही है अभी से आँखे पलक पाँवड़े बिछाए नए साल का स्वागत करने को आतुर
अब क्या कहूँ मान्यवर ...शुरुआत में ही जो बिम्ब उपस्थित किया है आपने ...ह्रदय खुश हो गया
आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .......बहुत ही सुन्दर नवगीत ! सीखने को बहुत कुछ है इसमें नवोदितों के लिए ! बधाई आपको ! सादर :)
वाह सर वाह एक एक बंद खूबसूरती से लबरेज है मन को बरबस अपनी ओर खींच रहा है ये सुन्दर गीत, एक दफा पढ़ने पर जी नहीं भरता विवश हूँ कई बार पढ़ने हेतु. अत्यंत प्रभावशाली नवगीत रचा है आपने हृदयतल से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.
आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं .. अय हय हय किनती सुन्दर उपमा जय हो आदरणीय.
"नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. ".आ! ! हा! क्या खूब ,क्या खूब /आदरणीय इस एक पंक्ति पर ही ठिठक गया मै तो !
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .अभिव्यक्ति को नमन ..
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना...शानदार नवगीत..आदरणीय सौरभ जी
इस बार नया साल इस नव गीत को पढने के लिए ही आएगा
आदरणीय सौरभ जी
क्या बिम्ब, क्या भाव ? नये साल की धूप की चाहत i
इससे बेहतर स्वागत नए साल का हो ही नहीं सकता i अजगुत है ,आदरणीय i
आदरणीय सौरभ जी, बहुत ही शानदार नवगीत है, संवेदनाओं से ओतप्रोत प्रेम की गहरी भावाभिव्यक्ति सुंदरतम लगी।आपकी रचनाएँ पढ़कर मन गहराइयों में खो जाता है, अनंत में विचरने लगता है। आपको बहुत बहुत बधाई।
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना.....
बहुत सुन्दर नवगीत आदरणीय सौरभ सर
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