“खाना… पानी सब देने के बाद भी जब देखो मुँह उतरा ही रहता है.” तुनकते हुये बहु ने सास के सामने टेबल पर खाने की प्लेट पटक दी...
सास ने अपने बेटे को आंखो की पनियायी कोर से देखा....
वो तो तन्मयता से टीवी पर गंगा में आक्सीजन की कमी से मर रही मछलियों के बारे मे न्यूज़ देख रहा था.
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आ0 शुभ्रांशु भाई जी, बाहर की न्यूज कितनी जरूरी है....? जागरूकता के लिए। संवेदनशील लघु कथा के लिए तहेदिल से बहुत-बहुत बधाई। सादर, शुभ-शुभ
waah khoob kahaa hai...........
'गंगा में ऑक्सीजन की कमी' के माध्यम से परिवारिक मूल रिश्तों में व्याप्त संवेदनहीनता और रूखेपन को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है.
इतने कम शब्दों में बहुत गहरी बात कही है.... पटल पर बहुत सजीव चित्र उकेरा है
इस सफल लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आ० शुभ्रांशु जी
बहुत उम्दा विषय और उतनी ही कसी हुई लघुकथा , बहुत बहुत बधाई |
“गंगा में आॅक्सीजन की कमी” बहुत गहन व गंभीर बात कह दी आपने मित्रवर ! आपकी लघुकथाओं की विशेषता उनका कसा शिल्प व शब्दों की मित्तव्यता होती है। इस विधा पर आपकी पकड़ बेमिसाल है। बहुत कम शब्दों में आप बहुत ही गहन बात आसानी से कह जातें हैं और पाठक को कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देतें है। प्रस्तुत लघुकथा के लिए शुभकामनाएं स्वीकार कर कृतार्थ करें।
पाण्डेय जी
लघु कथामें संवेदना है i आपको बधायी i
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