2122 2122 2122 212
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एक सरकस सी हमारी आज संसद हो गयी
लोक हित की इक नदी जम आज हिमनद हो गयी
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जुगनुओं से खो गये लीडर न जाने फिर कहाँ
मसखरों की आज इसमें खूब आमद हो गयी
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‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना
जुल्म की जननी खुशी से और गदगद हो गयी
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दे रहे ऐसे बयाँ, जो जुल्म की तारीफ है
क्योंकि सुर्खी लीडरों का आज मकसद हो गयी
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जुल्म की सरहद बढ़ी बेहद हदों को पार कर
इस चमन में और छोटी न्याय की जद हो गयी
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नित सियासत सींचती पर खाद हम देते रहे
भ्रष्टता की बेल बढ़कर, जिससे बरगद हो गयी
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प्यार धर्मो ने सिखाया पुस्तकों में खूब पर
तोड़ नफरत हर हदें अब यार अनहद हो गयी
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कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों पर बैठते हर बात मानद हो गयी
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रचना - 13 दिसम्बर 2013
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों पर बैठते हर बात मानद हो गयी
आदरणीय श्री लक्ष्मण धामी जी आपकी ग़ज़ल खूबसूरत है लेकिन निम्न शेर मेरी समझ से एक शब्द की कमी के कारण बहर से खारिज हो रहा है अगर इस शेर को ऐसा कर दिया जाए तो कैसा रहेगा
कल तलक जिनका कहा "हर" झूठ सच बकवास था
कुर्सियों पर बैठते वो बात मानद हो गई
इस प्रकार शेर बहर
फाइलातुन फाइलतुन फाइलातुन फाइलुन में आजाएगा
अन्यथा मत लेना! उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई
कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों पर बैठते हर बात मानद हो गयी
बहुत खूब, बधाई...
धामी जी
बहुत सुन्दर गजल i
जुगनुओं से खो गये लीडर न जाने फिर कहाँ
मसखरों की आज इसमें खूब आमद हो गयी
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‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना
जुल्म की जननी खुशी से और गदगद हो गयी
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बहुत खूब भाई !!
कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों पर बैठते हर बात मानद हो गयी
सोलह आने बात सही है…
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