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जहन की हर उदासी से उबरते तो सही पहले
जरा तुम नेह के पथ से गुजरते तो सहीे पहले
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हमारी चाहतों की माप लेते खुद ही गहराई
जिगर की खोह में थोड़ा उतरते तो सही पहले
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ये मिट्टी भी हमारी ही महक देती खलाओं तक
हमारे नाम पर थोड़ा सॅवरते तो सही पहले
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तुम्हें भी धूप सूरज की बहुत मिलती दुआओं सी
घरों से आँगनों में तुम उतरते तो सही पहले
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गलत फहमी तुम्हारी भी ‘गॅवारों’ की उतर जाती
हमारे गाँव में दो पल ठहरते तो सही पहले
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खुशी खुद ही फुदकती मेंमनों सी हर गली आँगन
गमों के बाज के पर तुम कतरते तो सही पहले
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( रचना - 8 अगस्त 2014 )
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
गलत फहमी तुम्हारी भी ‘गॅवारों’ की उतर जाती
हमारे गाँव में दो पल ठहरते तो सही पहले
**वैसे तो सभी अशआर शानदार हैं किन्तु इस शेर की मासूमियत मुझे बहुत भायी
सुन्दर ग़ज़ल हार्दिक बधाई आपको
खुशी खुद ही फुदकती मेंमनों सी हर गली आँगन
गमों के बाज के पर तुम कतरते तो सही पहले,,,,,,,,,,,,यही हुनर तो सीखना है तभी जी पाएंगे । बहुत बधाई आप को
वाह वाह! सुन्दर गजल!
धामी जी
सर्वांग सुन्दर गजल i
आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत बढिया गज़ल हुई है , सभी आश'आर के लिए बधाईयाँ |
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