पीतल और ऐलुमिनियम के बर्तनों में वर्चस्व की लड़ाई होने लगी, आखिर तय हुआ कि चाँदी महाराज से निर्णय करवाया जाये कि कौन श्रेष्ठ है । पीतल ने कहा कि उसके बर्तनों में देवों को भोग लगाया जाता है, कुलीनजनों के पास उसका स्थान है जबकि ऐलुमिनियम के बर्तनों में झुग्गी-झोपड़ी के लोग खाते हैं और तो और इसका कटोरा भिखमंगे लेकर घूमते रहते हैं ।
ऐलुमिनियम अपने पक्ष में कोई विशेष दलील नहीं दे सका I चाँदी महाराज ने अपने निर्णय में कहा कि पीतल भरे हुए को भरता है जबकि ऐलुमिनियम भूखे को खिलाता है, अत: भूखे को खिलाने वाला हीसदैव श्रेष्ठ होता है ।
यह निर्णय सुनकर एक कोने में पड़ी 'पत्तल' मुस्कुरा उठी ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आदरणीय सुशील सरना जी, उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार।
बागीजी, आपने राज की बात की ।
पत्तल का मुस्कराना से लगता है अब अच्छे दिन आने वाले है, जब यह लघु कथा और भी सार्थक लगेगी | वाह ! बहुत सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आद श्री गणेश जी "बागी" जी
वाह! बहुत सुन्दर लघुकथा आदरणीय गणेश बागी जी
वर्चस्व की लड़ाई में सर्वश्रेष्ठ तो लड़ाई से परे ही रहता है...तभी तो सर्वश्रेष्ठ है ..आखिर उसे ज़रुरत भी क्या?
पत्तल की मुस्कराहट पर निःशब्द हूँ..... बस बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये इस शानदार प्रभावी लघुकथा पर
सादर
आह ---वाह-----
मैं तो मंत्रमुग्ध हूँ i यह प्लाट कैसे रचनाकार के मानस में आया ? लघु कथा एक बार फिर विजयि नी हुयी है i आदरणीय बागी जी आपकी लेखनी स्तुत्य है i यह कथा लघु- कथा साहित्य में मील का पत्थर साबित होगी , इसमें संदेह नहीं है i ईश्वर आप की लेखनी को और उर्जस्वित करे i पत्तल का मुस्कराना तो गजब ही ढा गया i ऐसी रचनाये बनती नहीं अवतरित होती हैं i आपको कोटिशः बधाई i आदरणीय बागी जी i
आ. गणेश जी ,
कितनी सहजता से समझा दिया आपने देने वाला श्रेष्ठ है |
"परोपकाराय सतां विभूतयः" को सिद्ध करती सार्थक लघु कथा
नमन आपकी लेखनी को !
सादर
आदरणीय गणेश जी,
नीँव के पत्थर को कौन देखता है सभी भव्य इमारत की प्रशंसा करते हैँ. पत्तल भी शायद नीँव का पत्थर ही है जिसका जिक्र हम लोग भूल जाते हैँ. सार्थक विषय और भावपूर्ण रचना के लिये बधाई
आदरणीय बागी साहब ,कमाल कर दिया आपने |प्रतीकों के साथ नैतिक शिक्षा पंचतंत्र से ही भारतीय साहित्य की परिपाटी रही है |आपने उसी परिपाटी का पूर्ण उतरदायित्व के साथ निर्वहन किया है |सादर अभिनन्दन |
आपकी यह लघुकथा ,बेमिसाल है आदरणीय बागी जी. एक न्यायोचित सार लेकर खड़ी इस लघुकथा पर आपकी कलम की जादूगिरी का कोई जवाब ही नही. बहुत-बहुत अच्छी लगी मुझे यह लघुकथा. आपको ह्रदय से बधाई
जिन सटीक शब्दों में इस मंच के प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराजभाईसाहब ने इस लघुकथा पर टिप्पणी की है वो लघुकथा के विन्यास की ओर भी सार्थक इंगित करते हैं. मैं भी उन्हीं शब्दों को संबल बना कर गणेश भाई आपको हार्दिक बधाइयाँ दे रहा हूँ.
इस लघुकथा में बिम्बों और कथ्य का अत्यंत संयत संतुलन हुआ है. यही इस लघुकथा की खूबसूरती है.
बहुत खूब गणेश भाई.. !!
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