For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे पास, थोडे से बीज हैं

मेरे पास,
थोडे से बीज हैं
जिन्हे मै छींट आता हूं,
कई कई जगहों पे

जैसे,

इन पत्थरों पे,
जहां जानता हूं
कोई बीज न अंकुआयेगा
फिर भी छींट देता हूं कुछ बीज
इस उम्मीद से, शायद
इन पत्थरों की दरारों से
नमी और मिटटी लेकर
कभी तो कोई बीज अंकुआएगा
और बनजायेगा बटबृक्ष
इन पत्थरों के बीच

कुछ बीज छींट आया हूं
उस धरती पे,
जहां काई किसान हल नही चलाता
और अंकुआए पौधों को
बिजूका गाड़ कर
परिंदो से नही बचाता
जानता हूं, फिर भी
कुछ बीज अपने आप
पृकृति से हवा पानी
लेकर लहलहाएंगे
जंगली ही सही
कुछ फलफूल तो आयेंगे

कुछ बीज छींट आया हूं
बाल्कनी मे रखे गमलों मे
जिन्हे कोई रोज अपने हाथों से
निराई गुडाई करता है
और देता है जलार्ध्य
जिनमे निष्चित ही उगेंगे
कुछ खूबसूरत फल फूल
और बोन्साई

लेकिन,
अभी भी कुछ बीज बच रहे हैं
जिनके लिये तलाश है
एक उर्वरा और तैयार भूमि की
एक समर्पित किसान की

और,
कुछ बीज अपने अंदर भी रोप लिये हैं
अंकुआने के लिय,
कुछ और बीज इकटठा करने के लिये
.

मुकेश इलाहाबादी
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vandana on December 27, 2014 at 6:16am

आशावादी सोच की इस रचना का सादर अभिनन्दन आदरणीय मुकेश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 16, 2014 at 11:29pm

एक समृद्ध सोच से उपजी इस रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, भाई मुकेशजी.




प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 27, 2014 at 11:19am

बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति। बहुत खूब भाई मुकेश इलाहाबादी जी

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 24, 2014 at 2:16pm

BAHUT BAHTU SHUKRIAA AUR AABHAAR - RACHNAA PASANDGEE KE LIYE - DR, PRACHI JEE , LAXMAN DHAMANEE JEE, GIRIRAJ JEE, ER, GANESH JEE, RAJESH KUMARI JEE, MAHRISHI TRIPATHI JEE, GOPAL NARAYAN JEE, SHYAAM NARAYAN VERMAA JEE AUR SABHEE MITRA GAN


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 24, 2014 at 11:55am

आदरणीय मुकेश जी 

सद्भाव के बीज पथरीली, बंजर, उर्वरा हर भूमि पर छिटकाने ही चाहिए... समयानुरूप नमी लेकर लहलहा ही उठते हैं 

बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 24, 2014 at 11:25am

आ. मुकेश भाई ,इस सुन्दर  कविता के लिए  हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2014 at 5:55am

आ, मुकेश भाई , बढिया कविता हुई है , हार्दिक बधाई ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 23, 2014 at 5:20pm

आदरणीय मुकेश जी, अच्छी कविता हुई है, अंतिम स्टेंजा प्रभावशाली है, टंकण की त्रुटियां चुभती है, बधाई इस प्रस्तुति पर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 22, 2014 at 6:24pm

और,
कुछ बीज अपने अंदर भी रोप लिये हैं
अंकुआने के लिय,
कुछ और बीज इकटठा करने के लिये-----इन पंक्तियों ने रचना को और ऊँचाइयाँ प्रदान की है |बहुत बढ़िया प्रस्तुति  ..बधाई आपको आ० मुकेश श्रीवास्तव जी 

Comment by maharshi tripathi on November 22, 2014 at 6:14pm
इन पत्थरों पे,
जहां जानता हूं
कोई बीज न अंकुआयेगा
फिर भी छींट देता हूं कुछ बीज
इस उम्मीद से, शायद
इन पत्थरों की दरारों से
नमी और मिटटी लेकर
कभी तो कोई बीज अंकुआएगा
और बनजायेगा बटबृक्ष
इन पत्थरों के बीच


क्या बात है ,बहुत खूब सर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service