For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - चलो कर लें निकलने का बहाना अब ( गिरिराज भंडारी )

१२२२        १२२२       १२२२

अकेले पन को कर ले तू , ठिकाना  अब

क़सम ली है, तो उस चौखट न जाना अब

समय बदला तो वो बदले , नज़र बदली

चलो कर लें  निकलने का  बहाना अब

 

वही आंसू , वही आहें  , वही   ग़म है

कहीं  पे  ख़त्म हो जाये  फ़साना  अब

 

झिझक ये ही हरिक दिल में, यही डर है

कहेगा क्या जो  जानेगा  ज़माना  अब

 

सुनो तितली , सुने  पंछी  बहारें   भी

मेरे उजड़े  हुये घर में , न  आना अब

 

कबूतर  बच  के गुम्बद से  कहाँ जाएँ

कहाँ  ढूंढें,  कहाँ  कर लें  ठिकाना अब

     

वही ज्ज़्बा, वही  बातें , वही   दिल है

मगर चेह्रा  लगा मुझको  पुराना  अब

 

नक़ाब  उलटा अयाँ सच की  हुई शक़्लें

करोगे  क्या  बताओ तो  बहाना  अब

*******************

मौलिक अवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 897

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2014 at 6:24pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2014 at 6:24pm

आ. नीरज भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on December 5, 2014 at 4:31pm

baut sundar rachnaa

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2014 at 12:51pm

अनुज

छा गए  भाया  i क्या उम्दा निभाया  i बहुत मजा आया i हंसाया, रुलाया, गुदगुदाया  i सादर i

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 5, 2014 at 11:00am
हर मिसरा दिल छू गया बहुत सुन्दर वाह!
Comment by Hari Prakash Dubey on December 4, 2014 at 11:42pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय गिरिराज जी ,हार्दिक बधाई !

Comment by somesh kumar on December 4, 2014 at 10:45pm

जीवन की ऊँच-नीच ,रिश्तों का फिर बदल और कई दुसरे बिंदुओं पर बहुत सुन्दरता से प्रकाश डाला है आप ने आदरणीय |

Comment by ajay sharma on December 4, 2014 at 10:35pm

झिझक ये ही हरिक दिल में, यही डर है

कहेगा क्या जो  जानेगा  ज़माना  अब................satik , umda, ............bahut umda 

Comment by कंवर करतार on December 4, 2014 at 9:52pm

कई  दिनों बाद दुबारा साईट से जुड़ पाया हूँI बहुत अच्छा लगा I भंडारी भाई ,सुंदर गज़ल के लिए बधाई I

"सुनो तितली , सुने  पंछी  बहारें   भी

मेरे उजड़े  हुये घर में , न  आना अब"

अरे वाह ! उम्दा I


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2014 at 9:17pm
कबूतर बच के गुम्बद से कहाँ जाए
कहाँ ढूंढे कहाँ कर ले ठिकाना अब
उम्दा ग़ज़ल का बेहतरीन शेर। बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service