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ग़ज़ल - कल पराया जो लगा था, आज प्यारा हो गया ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122     212

अश्क़ ऊपर जब उठा, उठ कर  सितारा हो  गया

जा मिला जब अश्क़ सागर से, वो खारा हो गया

 

चन्द  मुस्कानें  तुम्हारी शक़्ल में  जो पा लिये

आज दिन भर के  लिये अपना ग़ुजारा  हो गया

 

चाहतें जब  इक हुईं , तो  दुश्मनी  भूले  सभी   

कल पराया जो लगा था, आज  प्यारा  हो गया

 

ढूँढ  कर  तनहाइयाँ  हम  यादों  में मश्गूल थे

रू ब रू आये  तो  यादों  का  खसारा हो  गया

 

ख़्वाब में भी देख जो मंज़र, तड़प  जाते थे हम

हर गली , हर चौक में  अब वो नज़ारा हो गया

 

आप  उस बुझते  हुये  से  कोयले को  फूँकिये

एक  दिन  पायेंगे वो  फिर से शरारा हो  गया

 

आँसुओं  को  रात भर  पीते  रहे , मदहोश थे

सुब्ह दम नज़रें  मिलीं , समझो उतारा हो गया

**********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on December 25, 2014 at 9:01am

वाह बहुत खूब कहा है सर

Comment by vandana on December 25, 2014 at 5:00am

आप  उस बुझते  हुये  से  कोयले को  फूँकिये

एक  दिन  पायेंगे वो  फिर से शरारा हो  गया

कमाल की ग़ज़ल और उसका यह नगीना ....प्रणम्य आदरणीय गिरिराज सर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2014 at 2:27am
ख़्वाब में भी देख जो मंज़र, तड़प जाते थे हम
हर गली , हर चौक में हमको नज़ारा हो गया ।
आप उस बुझते हुये से कोयले को फूँकिये
एक दिन पायेंगे वो फिर से शरारा हो गया ।
बेहतरीन। बधाई आदरणीय गिरिराज बहनदारी जी , सादर।
Comment by harivallabh sharma on December 25, 2014 at 12:25am

वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल का सृजन हुआ आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब...सभी अशआर एक से बढ़कर एक..

आँसुओं  को  रात भर  पीते  रहे , मदहोश थे

सुब्ह दम नज़रें  मिलीं , समझो उतारा हो गया...क्या कहने...लाजबाब..बधाई आदरणीय.

Comment by दिनेश कुमार on December 24, 2014 at 9:43pm
बहुत अच्छी गजल हुई है। वाह सर जी वाह
Comment by somesh kumar on December 24, 2014 at 8:55pm

बेहतरीन गजलों में से एक,ख्याल भी बहुत सुंदर हैं ,ऐसा लग रहा है obo में रोज़ सृजन के नये स्तम्भ बन रहे हैं ,विशेष तौर पे गजलों में इस समय एक से बढ़कर एक गज़ल आ रही हैं |मंच रचने वाले सभी जनों को obo की नई ऊंचाई के लिए बधाई |

Comment by maharshi tripathi on December 24, 2014 at 8:51pm

बहुत ही शानदार गजल ,,,,,,बधाई स्वीकारें |

Comment by Chhaya Shukla on December 24, 2014 at 7:46pm

मेरी पसंदीदा बह पर उम्दा गजल खूब सारी बधाई आदरणीय सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 7:39pm
बेहतरीन मतला
गुजारा और शरारा वाले अशआर बहुत ही उम्दा।
दिल से दाद इस ग़ज़ल के लिए।
आपको इस उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 24, 2014 at 7:05pm
चन्द मुस्कानें तुम्हारी शक़्ल में हम पा लिये
आज दिन भर के लिये अपना ग़ुजारा हो गया


आप उस बुझते हुये से कोयले को फूँकिये
एक दिन पायेंगे वो फिर से शरारा हो गया

वाह क्या खूब क्हा वाह ! लाजवाब!

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