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अजनवी सी सभ्यता के बीज बोकर रह गए
सोचकर अपना, किसी का बोझ ढोकर रह गए
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वक्त सोने के जगा करते हैं देखो यार हम
जागने के वक्त लेकिन रोज सोकर रह गए
***
लोरियाँ माँ की, कहानी नानियों की, साथ ही
चाँद तारे , फूल, तितली लफ़्ज होकर रह गए
***
कसमसाकर दिल जो खोले है पुरानी पोटली
याद कर बचपन को यारो नैन रोकर रह गए
***
मानता हूँ , है हसोड़ों की जरूरत, दुख मगर
आज नायक भी यहाँ पर हो के जोकर रह गए
***
राजनेता खा रहे बादाम-विश्की मुफ्त में
मोल को जनता के हिस्से सिर्फ चोकर रह गए
***
पीठ पीछे तो गरजते खूब तुम ‘नापाक वो’
सामना होते ही लेकिन पाँव धोकर रह गए
***
रचना - 15 दिसम्बर 14
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
कसमसाकर दिल जो खोले है पुरानी पोटली
याद कर बचपन को यारो नैन रोकर रह गए.........आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सम्पूर्ण रचना सुन्दर है , बधाई आपको !
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , शे र दर शे र बेहतरीन हर अशआर के लिये दिल से दाद कुबूल करें । सफल और सुन्दर गज़ल के लिये भी बहुत बहुत बधाई ।
अच्छी रचना है i सादर i
हर शे'र लाजवाब निकला /
लोरियाँ माँ की, कहानी नानियों की, साथ ही
चाँद तारे , फूल, तितली लफ़्ज होकर रह गए
मानता हूँ , है हसोड़ों की जरूरत, दुख मगर
आज नायक भी यहाँ पर हो के जोकर रह गए
इन दो शे'रों पर विशेष बधाई
लोरियाँ माँ की, कहानी नानियों की, साथ ही
चाँद तारे , फूल, तितली लफ़्ज होकर रह गए -- आदरणीय लक्ष्मण भाई , इस शे र के लिये ढेरों दाद स्वीकार करें । गज़ल के लिये भी बहुत बधाइयाँ ।
मानता हूँ , है हसोड़ों की जरूरत, दुख मगर
आज नायक भी यहाँ पर हो के जोकर रह गए
…वाह बहुत खूबसूरत अशआर .... इस सुंदर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय धामी जी।
आदरणीय भाई विजय शंकर जी ,ग़ज़ल का अनुमोदन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद l .
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