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प्यालों को तोड़ कर दिल ए बेज़ार कह उठा.
जामे अजल नहीं तो कोई मयकशी नहीं।
इतना न ग़ौर से मुझे सुनते सभी यहाँ.
करता मैं आज दिल से अगर शायरी नहीं।
आदरणीय दिनेश जी ,सभी अशहार नायाब हैं |उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन
बहुत उम्दा गजल , बधाई हो
bahut khoob ....gazal hui hai ..mujhe bahut acchhi lagi
दुनिया में बुतपरस्त फ़क़त मैं नहीं ख़ुदा
तेरे जहाँ में आशिक़ों की कुछ कमी नहीं
वाह खूब बहुत बधाई स्वीकारें
प्यालों को तोड़ कर दिल ए बेज़ार कह उठा
जामे अजल नहीं तो कोई मयकशी नहीं......सुन्दर रचना , बधाई आपको दिनेश कुमार जी !
दिनेश जी
अच्छी गजल कही आपने i
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