‘पता चला है सेठ से तुम्हारे पुराने सम्बन्ध थे ?’- इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूंछा I
‘जी हाँ ----I’
‘कैसे सम्बन्ध थे ?’
‘एक समय मै रखैल थी उसकी I’
‘तब तूने उसकी हत्या क्यों की ?’
‘क्योंकि वह मनुष्य नहीं राक्षस था I वह मेरी बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने जा रहा था I मैंने साले को वही चाकू से गोद दिया I’
‘तो तेरी बेटी क्या सती सावित्री थी ?’
‘नहीं साहिब , हम जैसे लोग पेट के लिए देह बेचते है I सती -सावित्री होना हमारे लिये गाली है पर मैंने उस मुंहजले को सारी सच्चाई तो पहले ही बता दी थी, फिर उस पर शैतान क्यों सवार हो गया !’
‘कैसी सच्चाई ?’
‘यही कि वह सेठ ही मेरी लडकी का बाप था I’
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय गोपालनारायण सर ,कड़वी गोली ,अस्वीकार्य किंतु अटल सच्चाई | मरद जात की देहलोलुपता और लंपटता की बखिया उधेड़ दी आपने |सादर अभिनन्दन
कैसे कैसे दानव हैं इसी सभ्य समाज में... जिनके लिए स्त्री एक देह से ज्यादा कुछ नहीं
प्रस्तुत लघुकथा में समाज का एक घिनौना और टीसता पक्ष उभरा है
हार्दिक बधाई प्रस्तुति पर आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
सच !कहीं से शालीन कहीं से निर्लज्ज |कहीं से मर्यादित कहीं से पशुवत |सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई ,आदरणीय
बेहतरीन लघु कथा वाह खूब है सर वाह
क्या कहने आदरणीय, बहुत ही बारीकी से बात उकेरी है, अच्छी लघुकथा हुई है, धंधे वाली भी अपने धंधे में ईमानदारी रखती है किन्तु ....
बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.
कठोर व् कुटिल यथार्थ की अभिव्यक्ति .बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
उत्तर की हर लड़ी सच्चाई को उघेड़ती -सुंदर रचना, डॉ श्रीवास्तव जी बहुत बहुत बधाई I
एकदम से क़त्ल की वजह उजागर होना ..हतप्रभ करती है...मानवीय संवेदनाओं की रक्षा के लिए किया गया संगीन गुनाह, कानूनन तो अपराध है ही..पर उसकी अचानक उत्तेजना की वजह सामजिक पाप से मुक्ति ही है..बहुत सुघड़ता से कथ्य को लघुकथा में जिस खूबसूरती से आपने गढ़ा है, सराहनीय हैं ..बधाई आदरणीय.
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