‘अजी सुनते हो ---
‘हाँ सुनाओ, ‘
‘वह मिसेज मल्होत्रा की बहू, जिसके फरवरी में बेटा हुआ था I वह बेटा निमोनिया से मर गया और हमारी जो महरिन है इसकी ननद के भी लल्ला हुआ था, वह भी तीन दिन पहले डायरिया से मर गया और अपनी बेटी की सहेली -----‘
‘--- उसका बच्चा भी मर गया होगा I’
‘हां बिलकुल ---- ‘
‘मगर यह स्टैटिक्स तुम मुझे क्यों बता रही हो ?’
‘किसे बताऊँ, एक वह अपनी पोती है I छह महीने की हो गयी, उसे जुकाम तक न हुआ I’
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर , सोचने पर मजबूर करती, सुंदर लघुकथा, हार्दिक बधाई ! सादर
आजकल इस वैज्ञानिक युग में भी लोगों की मानसिकता इतनी विकृत हो सकती है। औरत को ममता की मूर्ति कहा जाता है उस पर अपनी पोती के लिये ऐसी सोच। आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपकी रचना हृदय में खलबली मचा देती है। सादर बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिये।
एक उच्च कोटि की लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय बड़े भाई , आ. सौरभ भाई जी का कहना सही है , औरत ही औरत की दुश्मन है , आ, सोमेश भाई जी का प्रश्न भी बहुत सटीक है , सुधरना किसे है , दादी को या पोती को ! समाज मे व्याप्त इस नीचता को सामने लाती बहुत सुन्दर लघुकथा आ. बड़े भाई , आपको बहुत बहुत बधाई ।
इस लघुकथा के सापेक्ष भाई सोमेशजी के प्रश्न समीचीन हुए हैं.
वस्तुतः देश के वैज्ञानिकों द्वारा मंगल ग्रह पर यान भेजने न भेजने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. कस्बों-मुहल्लों में ऐसे ही दृश्य अधिक प्रवाही हैं. एक स्त्री की सबसे बड़ी दुश्मन स्त्री ही होती है. वर्ना कोई मर्द नामर्दगी पर नहीं उतर पाता. उसे अपनी माँ से जरूर डर लगता. लेकिन परिवारों में यदि कथा की दादी जैसी सदस्या हों तो पूत फिरंट ही हुआ करते हैं. जिनकी कारिस्तानियों से समाज दाग़दार हुआ करता है.
आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपने सामाजिक सोच में व्याप चुकी विकृति को बखूबी उभारा है.
हार्दिक बधाई..
ऐसी स्त्रियाँ ये कैसे भूल जाती हैं की वो भी किसी की लड़की हैं घिन आती है ऐसी सोच पर ,बहुत सफल लघु कथा हार्दिक बधाई आ० डॉ० गोपाल नारायण जी.
दादी में ऐसी डाह !ऐसी घृणा अपनी पोती से |क्या अदभुत लघु कथा है |असली जुकाम किसे है ?किसे इलाज की ज़रूरत है ?बहुत से प्रश्न छोड़ती सुंदर लघुकथा |
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