For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२ २१२ २१२

वो वफ़ा जानता ही नहीं
इस खता की सजा ही नहीं


फिर वही रोज जीने की जिद
जीस्त का पर पता ही नहीं


शहर है पागलों से भरा
इक दिवाना दिखा ही नहीं


पूजता हूँ तुझे इस तरह
गो जहां में खुदा ही नहीं


खा गए थे सड़क हादसे
सारे घर को पता ही नहीं


मौलिक व अप्रकाशित


गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 729

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 27, 2015 at 8:02pm
सुन्दर गजल भाई जी
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 27, 2015 at 7:41pm

धन्यवाद दोस्तों आपकी समालोचना कुछ न कुछ सिखाती ही है ........... सौरभ जी  धन्यवाद जो आपकी कृपा दृष्टि हुई आपने समय दिया खुर्शीद जी आपका भी धन्यवाद जो आपने मेरी रचना की किमत बड़ा दी ........आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Hari Prakash Dubey on January 27, 2015 at 7:12pm

आदरणीय गुमनाम भाई सुन्दर ग़ज़ल ...फिर वही रोज जीने की जिद ....जीस्त का पर पता ही नहीं....क्या बात है , हार्दिक बधाई !

 

Comment by Shyam Mathpal on January 27, 2015 at 2:31pm

Priya Gumnami Ji,

Sundar Gazhal ke liye bahut badhai.

Teri baat johte rahe,diwana bana diya

Log kahte hain,paagal begana bana diya

Comment by Shyam Narain Verma on January 27, 2015 at 1:22pm
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर
Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 11:18am

पूजता हूँ तुझे इस तरह 
गो जहां में खुदा ही नहीं

आदरणीय गुमनाम सर उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |अगर आपकी इज़ाज़त हो तो मंच की दो अशहार की फरमाइश ख़ाकसार पूरी करदे |आपको पसंद न हो तो डीलिट कर दीजियेगा |क्षमा प्रार्थना के साथ बतौर नज़राना 

कारवां जा रहा है कहाँ 

सामने रास्ता ही नहीं 

आइना हाथ में है मगर 

वो इधर झांकता ही नहीं 

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 27, 2015 at 8:53am

वो वफ़ा जानता ही नहीं
इस खता की सजा ही नहीं
वफ़ा का न जानना क्या ऐसी ख़ता है जिसकी सज़ा तक न मुकर्रर हो सके ? भाई, मुझे ऐसा नहीं लगता. यह अवश्य है कि कुछ नियमों को न जानना क़नूनन गलत होता है. लेकिन वफ़ा का न जानना क्या ऐसी श्रेणी में आयेगा ? यह तो गुण है. मतला का ख़याल बहुत बढ़िया है इसलिए प्रस्तुतीकरण और बढिया हो सकता था, गुमनाम भाई.

फिर वही रोज जीने की जिद
जीस्त का पर पता ही नहीं
वाह क्या ख़याल है ! सानी को सीधा रखिये न - ज़िन्दग़ी का पता ही नहीं. यह शेर क्या और निखर नहीं उठेगा ?

शहर है पागलों से भरा
इक दिवाना दिखा ही नहीं
अरे वाह ! बहुत खूब ! पागल और दीवाना का अन्तर बढिया उभर आया है. बहुत खूब !

पूजता हूँ तुझे इस तरह
गो जहां में खुदा ही नहीं
वाह, ये क़ाफ़िरी ! बधाई-बधाई ! .. :-))

खा गए थे सड़क हादसे
सारे घर को पता ही नहीं
मैं तो इस शेर को कुछ यों करता भाई..
खा रहे हैं सड़क हादसे
क्यों महल को पता ही नहीं

प्रथम दृष्ट्या जो कुछ मुझे समझ में आया, निवेदित है. प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ, गुमनाम भाई.
शुभेच्छाएँ

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 27, 2015 at 12:49am
वो वफ़ा जानता ही नहीं
इस खता की सजा ही नहीं ॥
शानदार प्रस्तुति, बधाई गुमनाम पिथौरागढ़ी जी, सादर।
Comment by kanta roy on January 26, 2015 at 10:48pm
पूजता हूँ तुझे इस तरह
गो जहां में खुदा ही नहीं..... बेहतरीन अल्फाजों से सजी बडी ही खूबसूरत गजल ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 9:55pm

आदरणीय गुमनाम सर जी छोटी बह्र की बेहतरीन ग़ज़ल हुई हरेक अशआर उम्दा है. ये दो अशआर तो कमाल हुए है -

फिर वही रोज जीने की जिद 
जीस्त का पर पता ही नहीं

पूजता हूँ तुझे इस तरह 
गो जहां में खुदा ही नहीं.... दिल से दाद कुबूल कीजिये 

एक दो अशआर और होते तो ग़ज़ल मुकम्मल लगती . वैसे पांच अशआर है पर इस पाठक की दो अशआर की मांग निवेदित है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
3 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
21 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
21 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
23 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
23 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service