करें कोशिश सभी मिलकर हसीं दुनिया बना दें फिर
चलो जन्नत से भी बढ़कर जहां अपना बना दें फिर
लगाकर रेत में पौधे पसीने से चलो सींचें
ये सहरा सब्ज़ था पहले यहाँ बगिया बना दें फिर
मेरी मानो रियाज़त से बदल जाती है तकदीरें
हथेली की लकीरों में कोई नक्शा बना दें फिर
जलाकर खेत मेरे गाँव के बोले सियासतदां
इन्हें रोटी नहीं मिलती इसे मुद्दा बना दें फिर
दिलों के दरमियां कोई रुकावट क्यों रहे यारो
गिराकर इन फसीलों को नया रस्ता बना दें फिर
ज़माने ने दिया है फिर नया इक ज़ख्म इस दिल को
अजी हम भी ग़ज़लगो हैं नया मिसरा बना दें फिर
तेरा हो दर्द या मेरा रहे जामिद न दिल ही में
ग़ज़ल 'खुरशीद' जी गाकर इसे दरिया बना दें फिर
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज सर ,आपका स्नेह मेरी पूंजी है |सादर आभार
आदरणेय खुर्शीद भाई , हमेशा की तरह एक खूबसूरत गज़ल से रू बरू करवाया आपने , सभी अश आर बहुत सुन्दर हुये हैं , दिली मुबारकबादें कुबूल करें ।
मेरी मानो रियाज़त से बदल जाती है तकदीरें
हथेली की लकीरों में कोई नक्शा बना दें फिर
जलाकर खेत मेरे गाँव के बोले सियासतदां
इन्हें रोटी नहीं मिलती इसे मुद्दा बना दें फिर
दिलों के दरमियां कोई रुकावट क्यों रहे यारो
गिराकर इन फसीलों को नया रस्ता बना दें फिर --- ये अशआर बहुत ख़ास लगे , हार्दिक बधाई ॥
वाह वाह वाह ... आदरणीय खुर्शीद सर क्या खूब ग़ज़ल हुई है ....
जलाकर खेत मेरे गाँव के बोले सियासतदां
इन्हें रोटी नहीं मिलती इसे मुद्दा बना दें फिर ............. करारा शेर
दिलों के दरमियां कोई रुकावट क्यों रहे यारो
गिराकर इन फसीलों को नया रस्ता बना दें फिर............ अनुभवी बल्लेबाज़... फसीलों का खूब प्रयोग किया है.. यहाँ मैं कहता तो फसीलों दिमाग में आता नहीं और समझौता करके कह देता .... गिराकर फासलों को हम नया रस्ता बना दें फिर ...
ये दोनों अशआर कमाल के हुए है -
लगाकर रेत में पौधे पसीने से चलो सींचें
ये सहरा सब्ज़ था पहले यहाँ दरिया बना दें फिर
मेरी मानो रियाज़त से बदल जाती है तकदीरें
हथेली की लकीरों में कोई नक्शा बना दें फिर
मतला से मक्ता तक बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल .... आज की ग़ज़ल... आपकी ग़ज़लों का पाठ ... मेरे लिए सदैव एक पाठ होता है. इस बेहतरीन ग़ज़ल से रु ब रु कराने के लिए हार्दिक आभार.
बहुत सही ... दाद कुबूल करें आदरणीय खुर्शीद भाई
लगाकर रेत में पौधे पसीने से चलो सींचें
ये सहरा सब्ज़ था पहले यहाँ दरिया बना दें फिर वाह! वाह !बहुतखूब सर!
मेरी मानो रियाज़त से बदल जाती है तकदीरें
हथेली की लकीरों में कोई नक्शा बना दें फिर ग़जब! जवाब नही इस शेर का!
ज़माने ने दिया है फिर नया इक ज़ख्म इस दिल को
अजी हम भी ग़ज़लगो हैं नया मिसरा बना दें फिर वाह वाह ! आपकी हाजिर जवाबी भी कमाल है सर!
इस खुबसूरत गजल पर ढेरों दाद व बधाइयाँ आदरणीय!!
लगाकर रेत में पौधे पसीने से चलो सींचें
ये सहरा सब्ज़ था पहले यहाँ दरिया बना दें फिर,,,,,,,,वाह!!! आपकी सोच को सलाम आ.खुर्शीद जी |
बहुत खूब ख़ुर्शीद साहब। अच्छे अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल करें
आ० खुर्शीद भाई
सारी की सारी गजल बेमिसाल i कहूं किस तरह अपने दिल का मैं हाल i
कमाल है खुर्शीद भाई i सादर i
आदरणीय खुर्शीद भाई , बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति है , सभी अ'शआर खूबसूरत हैं, बहुत बहुत बधाई आपको ! सादर
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