1222 1222 1222 1222
*****************************
सितारे चाँद सूरज तो समय से ही निकलते हैं
दियों की कमनसीबी से अँधेरे रोज छलते हैं
****
किसी को देखकर गिरता सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो कहाँ गिरकर सभलते हैं
****
खुशी घर में उन्हीं से है खुदा की नेमतें वो तो
न डाँटा कर कभी उनको अगर बच्चे मचलते हैं
****
कहा है सच बुजुर्गों ने करें सब मनचली रूहें
किए बदनाम तन जाते कि कहकर ये फिसलते हैं
****
अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध भी जाए तो ये विष ही उगलते हैं
****
कहो क्या दीन है उनका कहो ईमान है कैसा
जरा सी बात पर जो देवता अपना बदलते हैं
****
बहुत मीठी करें बातें दिखें भेले सियासतदाँ
‘मुसाफिर’ ये वो अजगर जो बिना चाबे निगलते हैं
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’
Comment
आ0 भाई श्यामनारायण जी, गजल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ कुबूल करें ॥
दिखें भेले सियासतदाँ ---- शायद आप भोले कहना चाहते हैं , टंकण ट्रुटि सुधार लीजियेगा ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बहुत बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है, गज़ब की सादगी है इस ग़ज़ल में, बड़ी ही सहजता से आपने बेहतरीन अशआर निकाले है, ये अशआर पढ़कर झूम गया हूँ -
किसी को देखकर गिरता सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो कहाँ गिरकर सभलते हैं.... बहुत सुन्दर
खुशी घर में उन्हीं से है खुदा की नेमतें वो तो
न डाँटा कर कभी उनको अगर बच्चे मचलते हैं..... वाह वाह बढ़िया
अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध भी जाए तो ये विष ही उगलते हैं.... बेहतरीन शेर
कहो क्या दीन है उनका कहो ईमान है कैसा
जरा सी बात पर जो देवता अपना बदलते हैं.... उम्दा शेर
इस ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है
Aadarniya Laxam Dhami Ji,
Hamesa ki tarah aapki ye rachna bhi dil ko chune wali hai.Hriday se mubarakbad.
अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध भी जाए तो ये विष ही उगलते हैं - Bahut Khub.
कहो क्या दीन है उनका कहो ईमान है कैसा
जरा सी बात पर जो देवता अपना बदलते हैं
****विशेष दाद ,,,बहुत सुन्दर आ laxman dhami जी |.
किसी को देखकर गिरता सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो कहाँ गिरकर सभलते हैं
अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध भी जाए तो ये विष ही उगलते हैं
उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई....
बहुत खूब --भ्रमर ५
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत प्रभावशाली रचना है, साधुवाद ! सादर
अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध भी जाए तो ये विष ही उगलते हैं...सुन्दर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online