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सुखदा सदा सरस्वती (वृत्यानुप्रास /छेकानुप्रास)

(यहाँ प्रति दोहे में वृत्यानुप्रास है किन्तु सम्पुर्ण रचना में छेकानुप्रास है  अंतर यह है की वृत्यानुप्रास में एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति होती है जबकि छेका में अनेक वर्णों  की )

 

गा-गाकर गौरव गिरा गरिमामय गन्धर्व

गीर्वाण गुरु, गीतिमय , गान-ज्ञान गुण गर्व I

 भक्त भगवती भारती भूरि भावमय भव्य

भावशवलता, भ्रान्तिता भ्रमित भनिति भवितव्य I 

 

वीणापाणि वरानना  वरे विदुष विद्वान

वाणी-वाणी वत्सला  वर्ण-वर्ण वरदान I

 

शुभ्र शारदा शशिप्रभा  शोभित शुभ  शतपर्ण

शरद-शुक्ल शत शर्वरी शुचि शाश्वत शितिवर्ण I

 

स्वर साम्राज्ञी सर्वप्रिय  सतरंगी सब-साज

सुखदा सदा सरस्वती  सम्मुख सुकवि समाज I

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 25, 2015 at 12:38pm

आ० कल्पना जी

आभार . सादर ,.

Comment by somesh kumar on March 25, 2015 at 11:43am

शुभ्र शारदा शशिप्रभा  शोभित शुभ  शतपर्ण

शरद-शुक्ल शत शर्वरी शुचि शाश्वत शितिवर्ण I

 सुंदर सरस्वती वंदन - - -बधाई - - सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:35am

आदरणीय शब्दों को पिरोना तो कोई आप से सीखे ...बहुत सुंदर...  सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 24, 2015 at 10:13pm
सरल, सरस , सुपाठ्य एवं सुन्दर दोहे , आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , बहुत बहुत बधाई , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on March 24, 2015 at 9:06pm

आ. .डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी. सुंदर भाव व अति सुंदर  शब्दों की माला. ढेरो बधाई 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 24, 2015 at 7:07pm

वाह सर जी क्या बात ,,,,,,,,बहुत सुन्दर दोहे वाह ... बधाई '''''''''''


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Comment by Saurabh Pandey on March 24, 2015 at 6:47pm

मनभावन प्रयास हुआ है, आदरणीय गोपाल नारायनजी. ऐसे शब्द-विलास वाचन-कौतुक की आवृति बहुगुणित करदेते हैं.

अलबत्ता,
१. गिने गये गुरु, गरीयस  
२. स्वर साम्राज्ञी सदाशय
उपर्युक्त चरणों को पुनः देख लें, आदरणीय गोपालनारायनजी. कारण कि विषम चरणान्त भगण से हो रहा है.
शुभेच्छाएँ

Comment by ANJU MISHRA on March 24, 2015 at 5:50pm

सरस्वती माँ की सुंदर वंदना !

Comment by Nirmal Nadeem on March 24, 2015 at 5:21pm

ati sundar...... waaaah.......badhai

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 24, 2015 at 4:49pm

वीणापाणि वरानना  वरे विदुष विद्वान

वाणी-वाणी वत्सला  वर्ण-वर्ण वरदान I

अभिनन्दन! अभिनन्दन! अभिनन्दन

गुरुवर!माँ सरस्वती की ये ऐसी वंदना तो आप ही लिख सकते है!!

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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