“सुनो ! अमर से बात हुई क्या ?”
“नहीं, क्या बात करूँ , कुछ सुनता ही नहीं ,अब तो लगता है दिन में भी पीने लगा है ?”
“पर अमर की माँ मैं तो समझ ही नहीं पा रहा की वो ऐसा क्यों करने लग गया ? बाहर तो लोग उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते !”
“अरे आप भी ना , जानकर भी अनजान क्यों बन जातें हैं ? वही उस लड़की का चक्कर है सारा, मैं कहे देती हूँ, ये लड़का हमारी परम्परा को संस्कारों को मिट्टी में मिला देगा एक दिन, इकलौता ना होता तो कसम से इसका गला दबा देती !”
“कौन, अरे वो बेबी , जो अपनी जात से अलग थी क्या ?”
“हाँ ,वही कलमुहीं !”
“ओह ! पर वो तो मान गया था कहता था,पिताजी आप की बात सर आँखों पर, फिर क्या हो गया अचानक ?”
“तभी से तो वो ये हरकत कर रहा है !”...थोड़ी देर सन्नाटा ,फिर
“अब तुम्हे साँप क्यों सूँघ गया ?”
“अरे कुछ नहीं सोच रहा हूँ, तुम्हारा गला दबा दूं ,तुम भी तो इकलौती हो न ..!
“चलो अब रोने की बात नहीं है, याद है “जब बच्चा बचपन में बिस्तर गीला करता था तब तुम क्या करतीं थी ?...बच्चे को फेंक देती थीं या उस कथरी को ?”
“जी ,कथरी को ,या उस चादर को धो देती थी !”
“ तो बस समझो वही बात है , चलो बेबी के घर फ़ोन लगाओ , कहो अमर के पिता आ रहें हैं, और घर का पता पूछ लेना !”
“अरे, पागल हो गए हो क्या ? हमारे पूरे खानदान में ऐसा कभी नहीं हुआ, ये तो हमारी परम्परा नहीं,रिश्तेदारों को और समाज को क्या मुहं दिखलायेंगे !”
“ जब हमारा बच्चा ही नहीं रहेगा तब तुम अपनी परम्परा की गठरी सिर पर रख कर ढ़ोना, और सुनो अमर की माँ, और मुझे नहीं लगता हमारे बेटे में या बेबी में कोई कमी है !”
“ सुनिए ,मैं भी साथ चलूंगी आप की बात समझ गयी !”
“क्या ?”
..जब भी किसी से प्यार करो तो उसकी अच्छाई को भी स्वीकार करो और कमियों को भी !
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आय हाय ! क्या सुन्दर कहानी हुई है !!
आपको हार्दिक धन्यवाद आदरणीय हरि प्रकाशजी. सामान्य सी कथा को आपकी संवेदना ने भरपूर सम्मान दिया है और यह कथा अवश्य पठनीय हो गयी है.
ढेर सारी शुभकामनाएँ
एक अच्छे कथानक पर सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई
सुन्दर लघु कथा के लिए बधाई।
बहुत सुंदर. एक संदेशप्रद रचना ,आदरणीय हरिप्रकाश जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें
बहुत सुन्दर कहानी आदरनीय
सुन्दर कहानी आदरणीय हरी जी , किसी को भी उसकी अच्छाई और कमियों सहित ही स्वीकार करना चाहिए |
सादर.
आदरणीय हरि प्रकाश जी,
सुन्दर कथा. देवदास की कथा को नये सिरे से लिख कर आपने एक अलग आनन्द दिया है.
सादर.
हरी प्रकाश जी
अच्छा सन्देश है और सामयिक भी i क्योंकि अब बच्चे आत्मनिर्णय लेने लगे हैं .
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको |
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