‘इन किताबों की जिल्दें उखाड़ कर गत्ता अलग करो, और इन पैक की हुई किताबों को भी खोलो।‘ कबाड़ की दुकान का मालिक अपने नौकरों को आदेश दे रहा था
‘ये इतनी सारी रद्दी कहाँ से ले आए ?’ एक नौकर ने पूछा
‘वो जो पीछे लाल कोठी वाले साहिब हैं न, जो विश्वविद्यालय में साहित्य विभाग के अध्यक्ष हैं, उन्हीं के घर से लाया हूँ।’
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बेहतरीन कथा | बहुत बहुत बधाई आदरणीय सर |
" पैक की हुई किताबों को भी खोलो "-----वाकई में पढ़कर मन वितृष्णा से भर गया। दिल को विहल करती बेहद शानदार लघुकथा बन पड़ी है ये आपकी आदरणीय रवि जी।
जाने कैसे वंचित रह गयी इन सार्थक रचनाओं को पढ़ने से। अब ढूंढ -ढूंढ कर सारे पढूंगी। सादर।
ओह! अपने पद की गरिमा के प्रति गंभीरता, उसकी पात्रता व दायित्व का बोध ही न होना ...
ऐसे उदाहरणों का समाज में व्याप्त होना दुखद है.... आपने बहुत सटीकता से उनके कृत्यों के ज़रिये इस चिंतनीय बिंदु को प्रस्तुत किया है
इस सफल-सटीक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी
भाई रविजी, एक सत्य घटना को कितनी गहराई से आत्मसात कर आपने तत्सम्बन्धी भावों को शाब्दिक कर उन्हें एक समृद्ध रचना का स्वरूप दे दिया ! इसे कहते हैं पारखी दृष्टि का कमाल ! हार्दिक बधाइयाँ, भाई..
// जो विश्वविद्यालय में साहित्य विभाग के अध्यक्ष हैं // ..... सिस्टम पर एक कमाल की चोट करता और कडवा सच दिखाती एक लाजवाब कथा!
आदरणीय रवि जी मेरी और से सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे.
कमाल का पंच मारा है आदरणीय रवि जी. आपकी लघुकथाओं में अंतिम पंक्ति बहुत गहरा घाव दे जाती है, बहुत-बहुत बधाई आपको ,आदरणीय रवि जी
बहुत बेहतरीन लघुकथा
बहुत बधाई आदरणीय रवि जी
बेहतरीन आदरणीय रवि प्रभाकर सर बहुत बहुत बधाई आपको
अति सुन्दर ! बधाई प्रभाकर जी .
क्या बात है आ० ऐसी लघुकथाए तो आप ही कह सकते है!बेहतरीन!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online