For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सांप मरा और लाठी साजी (लघुकथा )राहिला

विद्यालय में मध्यान्ह भोजन की दाल में असंख्य इल्ली, तिलूले ,देखकर मैं आपे से बाहर हो गई । तुरंत बच्चों की पंगत उठा कर मैं मध्यान्ह भोजन के ठेकेदार से जम कर उलझ पड़ी । लेकिन वो भी कम ना था, हर बात को "इत्तेफाक "कह के टालने लगा । मुझे दुःख इस बात से ज्यादा हो रहा था कि पता नही कितने दिनों से ये मासूम ऐसा खाना खा रहे है । इत्तेफाक तो मेरे साथ हुआ कि मैं आज प्रभार में थी और ये कृत मेरी जानकारी में आ गया । मैंने तुरंत लिखित कार्रवाई शुरू की । अपने खिलाफ कार्रवाई होते देख उसने गिरगिट की तरह रंग बदला अब वो ढिठाई छोड़, घिघयाने लगा लेकिन अकड़ कायम थी । जब उसे हर बात बेअसर होती दिखी तो वो साम,दाम दंड, भेद पर आ गया ।
"अरे बहिन जी! गलती हो गई । चाहे तो सौ जूते मार लो, जो कहो करने बाको तैयार हूं "लेकिन मैं किसी भी कीमत पर मामला रफा -दफा करने के विचार में नहीं थी।इसलिये उसकी कोई भी बात का असर मुझ पर नहीं हो रहा था । परन्तु इस हंगामें से गांव के कुछ दंबंग और उसके सजातीय लोग जुड़ गये।और मुझ पर दबाव बनाने लगे आखिर ...
"तो ठीक है..,जब आप सभी की यही मर्जी है तो ये सही । लेकिन मामला रफा-दफा करना अब पूरी तरह से ठेकेदार साहब के हाथ में है । "कह, मेरे चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान फैल गई, जिसे देख मौजूद महानुभाव की अनुभवी आंखे चमक गईं।
"अरे कैसी बात कर दी आपने,आप तो हुकुम करो बस..."वो हाथ जोड़ ,खींसे निपोरता बोला ।
"तो ठेकेदार साहब !एक काम करें,बस एक कटोरा ये दाल पी लें।"

.
मौलिक एवं अप्रत्याशित

Views: 870

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 10, 2015 at 5:20pm

जानदार विषय 

शानदार लघुकथा 

आदरणीया राहिला जी ढेर सारी  बधाई स्वीकार करें

Comment by Rahila on December 10, 2015 at 12:27pm
बहुत -बहुत आभार आप सभी आदरणीय वरिष्ठ सुधिजनों का, आप सब ने रचना को एक तरफ जहाँ सराहा वही अपने आशीर्वाद से मुझे और प्रयासरत रहने का हौसला भी दिया । पुनः धन्यवाद और आभार । सादर नमन ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2015 at 3:36am
अच्छा लगा , कहानी का अंत अच्छा लगा , बधाई , आदरणीय सुश्री राहिला जी , सादर।
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 9, 2015 at 10:23pm

आदरणीया राहिला जी ......................बहुत बढ़िया| बधाई 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 9, 2015 at 10:21pm
उम्दा रचना।बहुत बहुत बधाई आदरणीया राहिला जी।

Comment by मोहन बेगोवाल on December 9, 2015 at 8:31pm

आदरणीया  राहिला जी, बहुत अच्छी लघुकथा, जिस में एक तरीके से गलती को महिसूस करवाना है - बधाई हो 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 9, 2015 at 7:16pm

आ० राहिला जी ---बहुत  बढ़िया  शानदार /जानदार

Comment by Sushil Sarna on December 9, 2015 at 6:44pm

आदरणीया  राहिला जी इस नहले पे दहले जैसी पंचलाइन "तो ठेकेदार साहब !एक काम करें,बस एक कटोरा ये दाल पी लें।" जितनी प्रशंसा करूँ कम है  .... इस सन्देश देती लघु कथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2015 at 3:37pm
बहुत बढ़िया समसामयिक घटनाओं पर बढ़िया पंचलाइन के साथ कटाक्ष करती हुई रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राहिला जी।
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on December 9, 2015 at 3:17pm

बेहतरीन पंच लाईन के साथ --"तो ठेकेदार साहब !एक काम करें,बस एक कटोरा ये दाल पी लें।" .आपकी उम्दा लघुकथा बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
4 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service