221 2121 1221 212
अपने लहू से आज वो अन्जान बन गये
टूटे हुए मकान का सामान बन गये
ज़ज्बात से किसी को यहाँ वास्ता नहीं
ड्राइंग रूम में रखा दीवान बन गये
बेगानों की तरह रहे अपने ही देश में
बस चार पाँच दिन के ही मेह्मान बन गये
अपने ही घर में किश्तियाँ महफूज़ हैं कहाँ
साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गये
छोड़ी कसर न देखिये कुदरत को लूटकर
आफ़ात आ पड़ी तो अब इंसान बन गये
करतूत वो करें किसी शैतान की तरह
क़ानून की निगाह में नादान बन गये
भगवान बनते फिरते हैं दिन के उजाले में
खुर्शीद ज्यों ही ढल गया शैतान बन गये
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० दीदी - बहुत बढ़िया
वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है badhai,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वाह शानदार गजल /
आ० समर भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत- बहुत शुक्रिया|आपकी बात सही है आफ़ात बहुत वचन में ही लिखना चाहा है बल्कि शब्द इधर उधर हो गए पोस्ट करते वक़्त ---आफ़ात आ पड़ीं हैं तो इंसान बन गए ..मूल रचना में शब्द ये थे पोस्ट करते वक़्त ये गड़बड़ी हुई है |
अपने ही घर में किश्तियाँ महफूज़ हैं कहाँ----आप जो कहना चाह रहे हैं वो मैं समझ गई हूँ इसमें भाव गलत हो रहा है हालांकि आज की इस सच्चाई को भी नकार नहीं सकते किन्तु कुछ अपवाद को लेकर इतनी बड़ी बात लिखना ठीक नहीं आपने सही सुझाया जिसकी मैं बेहद शुक्रगुजार हूँ |
मनन कुमार जी बहुत- बहुत शुक्रिया चौथे शेर में सानी में बह्र की कोई गड़बड़ नहीं है बल्कि ये मिसरा तो तरही मिसरा है |रही बात आफ़ात को मैंने बहु वचन में ही लिया था हाँ पोस्ट करते वक़्त ही गड़बड़ हो गई है जैसे मैंने लिखा था ---आफ़ात आ पडी हैं तो इंसान बन गये ...कुदरती आफ़ात एक ही नहीं होती बाढ़ ,भूकंप ,सूखा इत्यादि बहुत सी हैं
जयनित कुमार जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online