मृग छाया सी प्रीत बस, दे समीप्य का भास
मधुर मोहिनी बन करे, बैरी खुद की श्वास
बाह्य प्राप्ति से पूर्णता, मिलती कब पर्याप्त
मिले न कुछ वो भी मिटे, जो भी हो निज व्याप्त
नहीं एक भी वायदा, नहीं बंध से युक्त
प्रीत प्रखर निभती तभी, मन हों जब उन्मुक्त
प्रीत न कलुषित कर कभी, आरोपित कर चाह
मन इच्छित हर कामना, लीले सलिल प्रवाह
अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही अनुवाद
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
दोहों की सराहना के लिए आप सभी का दिल से धन्यवाद
पहला दोहा गड़बड़ है.
बाकियों पर सुधीजनों ने अपनी राय अभिव्यक्त की है. मैं भी उन कहे से सहमत हूँ.
प्रीत न कलुषित कर कभी -- इतना आदेशात्मक होना क्यों आवश्यक लगा ? कर कभी को कीजिये करना मेरी समझ से उचित होता.
है न ?
शुभ-शुभ
डॉ प्राची जी प्रीत विषय को केंद्रित कर लिखे गए सुन्दर दोहे मन को छू गए। .
बधाई
भ्रमर ५
प्रीत पर अति सुंदर भाव रचित दोहे हुए है | मुझे भी श्री अरुण कुमार निगम जे बात ठीक लग रही है | पास में ही पानी का आभास होने से अपनी तृष्णा शांत करने के लिए दौड़ता है | इसलिए - मृग तृष्णा सी प्रेत बस |
अंतिम दोहा यूँ भी हो सकता है -
अकथ मौन करता ह्रदय, मन ही मन संवाद,
जैसी जिसकी सोच हो, वैसा ही अनुवाद | --- बहुत बहुत बधाई आपको
वाह आदरणीया प्राची जी , प्रीत पर सुकोमल दोहों ने मुग्ध कर दिया.
मृग छाला सी प्रीत समीप्य का भास कैसे दे सकती है ?
मेरे विचार में
मृग तृष्णा सी प्रीत बस
या
मृग मरीचिका प्रीत बस
होने से सामीप्य का भास बेहतर होगा.
समीप्य पर भी मन में संदेह हो रहा है, शायद शुद्ध शब्द सामीप्य होना चाहिए. कृपया मेरा संदेह दूर करने का का करें.
शेष सभी दोहे अति उत्कृष्ट हैं. बधाइयाँ.
किन्तु
नहीं एक भी वायदा, नहीं बंध से युक्त
प्रीत प्रखर निभती तभी, मन हों जब उन्मुक्त यह दोहा प्रीत की विलक्षण परिभाषा कर गया. वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!
आदरणीया प्राची जी अत्यन्त सुन्दर दोहे हुए है सभी ने इस पोस्ट के अंतिम दोहे की सराहना की है और वो है भी सर्वोत्तम सीधे दिल को छू लेने वाला इन सभी दोहो के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर
अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही अनुवाद
वाह आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी प्रीत को केंद्रित कर सृजित इन अनुपम दोहों की प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें।
अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही अनुवाद
इस दोहे बीसियों बार पढ़ गया. चमत्कृत हूँ आपकी कलम का जादू देखकर. आपको शत शत नमन है इस दोहे के लिए. ऐसा दोहा हो जाना साहित्यिक जीवन की उपलब्धि है. पुनः सादर नमन
आदरणीया प्राची जी , प्रीत पर आपके सारगर्भित दोहों के लिये हारदिक बधाइयाँ ।
प्रीत न कलुषित कर कभी, आरोपित कर चाह
मन इच्छित हर कामना, लीले सलिल प्रवाह
अकथ मौन सुन सब करें, मन ही मन संवाद
जैसी जिसकी वासना, वैसा ही अनुवाद --- शाश्वत सत्य कहते इन दोहों के लिये आपको पुनः बधाई ।
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