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दिल से और बड़े लिहाज़ से पढ़ गया आदरणीय. एक-एक विन्दु इस विधा का बेजोड़ दिख रहा है. हार्दिक बधाई ..
आपने इस मृतप्राय सी विधा को इस पटल पर पुन्रुज्जीवित कर दिया है. इस केलिए आपके प्रति हृदयतल से साधुवाद आदरणीय समर साहब.
सादर
वाह वाह | बेमिसाल | अलग ही तरह की अपने आपमें एक अलग और गज़ब की शैली है | समर साहब धन्यवाद अपने इस शैली के बारे में जानकारी भी दी है | कमाल की कलम है आपकी | इस मंच पर बहुत कुछ नया पढने को मिल रहा है यह भी उसमे से एक है | बधाई स्वीकारें जनाब |
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, सही कहा है आपने. मैंने भी प्रथम बार ही इस तरह की रचना पढ़ी है और आपने जो जानकारी दी है. उससे साफ़ लगता है की यह आसान कला नहीं है. फिरभी मैंने आपकी दी जानकारी और आपकी यह रचना अपने पास समझने के लिए सुरक्षित रख ली है. आप पुनः बधाई स्वीकारें.जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत आभार. मैं आपकी दी गई जानकारी के अनुसार फिर एक बार यह 'तजमीन' पढता हूँ. सादर.
आदरणीय समर साहेब ..............वाह वाह .........बहुत खूब
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