आकर साजन तू ही ले जा क्यूँ ये सावन ले जाए
अधरों पर छायी मस्ती ये क्यूँ अपनापन ले जाए
भिगो रहा है बरस-बरस कर मेघ नशीला ये काला
कहीं न ये यौवन की खुश्बू मन का चन्दन ले जाए
कड़क-गरज डरपाती बिजली पल-पल नभ में दौड़ रही
कहीं न ये चितवन के सपने संचित कुंदन ले जाए
बिंदी की ये जगमग-जगमग खनखन मेरी चूड़ी की,
बूँदों की ये रिमझिम टपटप छनछन-छनछन ले जाए
पुहुप बढाते दिल की धड़कन शाखें नम कर डोल रहीं
कहीं न अब अँगड़ाई का फन भीगा कानन ले जाए
बढ़ी जा रही भीग-भीगकर चिकुर जाल की ये उलझन
कुन्तल से हरियाला तरुवर हर्षित उपवन ले जाए
रुनझुन-रुनझुन करती पायल बिछिया से कह आयी है
सारे बंधन तोड़ सखी अब मन उस आँगन ले जाए.
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
बिंदी की ये जगमग-जगमग खनखन मेरी चूड़ी की,
बूँदों की ये रिमझिम टपटप छनछन-छनछन ले जाए -------- अद्भुत !
पुहुप बढाते दिल की धड़कन शाखें नम कर डोल रहीं
कहीं न अब अँगड़ाई का फन भीगा कानन ले जाए ------- गजब है !
रुनझुन-रुनझुन करती पायल बिछिया से कह आयी है
सारे बंधन तोड़ सखी अब मन उस आँगन ले जाए. ------ निशब्द हूँ !
यदि अन्यथा न लें तो कहना चाहूँगा कि हम लोग जब रौ में आते हैं तो हमारी गीतिकायें गजलियत छोड़कर गीत क्यों बन जाती हैं ? मेरे साथ भी होता है ऐसा। इसे यदि दो पंक्तियों में में निबद्ध अद्भुत गीत कहूँ तो अन्यथा नहीं होगा।
बहरहाल, यह निश्चय ही माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चुने जाने योग्य है। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय अशोक जी ..आज मंच पर एक से बढ़कर एक रचना को मिली ..आपकी रचना तो गुनगुनाने में आनंद ही आ गया ..श्रृंगार रस में सावन का वर्णन जिस बेहतरीन अंदाज में आपने किया है काबिले तारीफ़ है ऐसी रचना पढने के बाद तो बस दिल से आवाज उठती है वाह वाह ...ढेर सारी बधाई के साथ सादर
आदरणीय अशोक भाईजी
‘ आकर साजन तू ही ले जा क्यूँ ये सावन ले जाए ’...... वाह !
नई नवेली प्रथम सावन में मायके जरूर आती है। आपके छंद के हर एक शब्द उसी विरहिन के मुख से निकले प्रतीत होते हैं। इसे पढ़कर तो वह बेचारी और जादा ‘ आह !!! ’ भरेगी। ... छंद पर वाह ! तो हम जैसे लोग ही कहेंगे।
सावन मास [ विगत माह ] की इस खूबसूरत रचना के लिए बारम्बार हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बहुत ही सुंदर सरस गीतिका बिल्कुल मौसमी रस से सरोवार हार्दिक बधाई आपको आदरणीय
वाह शृंगार रस की अद्भुत रचना | इस मंच को नमन | बहुत ही सुंदर गीतिका पढने को मिली है | बहुत बहुत धन्यवाद् आदरणीय | और बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए |
कमाल की गुनगुनाती हुई रचना हुई है आदरणीय अशोक भाई जी. मुग्ध कर दिया आपने ! हार्दिक बधाइयाँ ..
आपने पायल के बिछिया बीच के इशारों के माध्यम से नवोढ़ाओं (नयी सुहागन) की मनोदशा का अत्यंत शृंगारिक वर्णन किया है, भाई जी. अद्भुत है
बार-बार बधाइयाँ
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, प्रस्तुत रचना के भाव आप तक पहुंचे मेरी रचना सफल हुई. आपका दिल से आभार. सादर.
आदरणीय रवि जी सादर, रचना के भाव आप के मन को छू पाए. मेरा सृजन सार्थक हुआ. आप जैसे गुणीजन की उपस्थिति से रचना को मान मिला है. आपका हृदयातल से आभार. सादर.
आदरणीय अशोक भाई , नायिका की विरह वेदना और सावन पर बहुत भावपूर्न और सरस रचना हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको ।
बिंदी की ये जगमग-जगमग खनखन मेरी चूड़ी की,
बूँदों की ये रिमझिम टपटप छनछन-छनछन ले जाए
रुनझुन-रुनझुन करती पायल बिछुओं से कह आयी है
सारे बंधन तोड़ सखी अब मन उस आँगन ले जाए. --- ये दोनो बन्द बहुत पसंद आये , हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय अशोक सर ! काव्य में मेरी जानकारी नगण्य है । परन्तु आपकी रचना पढ़ते समय सावन का एक दृश्य सृजित हो गया। काले काले मेघों से बरसता पानी मैनें अपने ड्राइंग रूम में महसूस किया। हालांकि इस वक्त मेरे शहर में धूप खिली हुई है और बड़ी उमस भरी गर्मी है पर आपकी गीतिका ने मुझे ठंडी ठंडी फुहारों का आनंद दिया है। प्रस्तुत गीतिका नायिका के अहसासों काे बाखूबी बयां कर रही है। असीम शुभकामनाएं स्वीकारें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online