For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यार, ठीक हूँ, सब अच्छा है ! (नवगीत) // --सौरभ

लोगों से अब मिलते-जुलते
अनायास ही कह देता हूँ--
यार, ठीक हूँ..
सब अच्छा है !..
 
किससे अब क्या कहना-सुनना
कौन सगा जो मन से खुलना
सबके इंगित तो तिर्यक हैं
मतलब फिर क्या मिलना-जुलना
गौरइया क्या साथ निभाये
मर्कट-भाव लिए अपने हैं
भाव-शून्य-सी घड़ी हुआ मन
क्यों फिर करनी किनसे तुलना
 
कौन समझने आता किसकी
हर अगला तो ऐंठ रहा है
रात हादसे-अंदेसे में--
गुजरे, या सब
यदृच्छा है !
 
आँखों में कल की ख़बरों की
बच्ची अबतक तैर रही है
अपनी बिटिया की सूरत से
मगर अलग वह ख़ैर रही है
चाहे बिटिया पास नहीं पर
यही सोच कर बहुत खुशी है
मोबाइल-चैटिङ के ज़रिये
आखिर वो कब ग़ैर रही है ?
 
रोज़ सवेरे समाचार को
पढ़ना, उसके 

दर्शन करना
जगत सान्द्र है दो कमरों में
बाकी सब तो 

पनछुच्छा है !
 
जितने की इच्छा थी उतनी
सबकी दुनिया दिखी चहकती
कहीं धार में बहता पानी
कहीं सुगंधित धार महकती
दौर तेज़ है, तो सब दौड़ें
या सुस्तायें, पाट सँभालें
वो भी चुप हैं अपने हिस्से
जहाँ किरच से रात लहकती
 
वैसे तो बिन्दास दिखे मन
चौंक रहा है

हर ’खटके’ से
बिखर रहा फिर तार-तार-सा,
इसे कहूँ दिन गुड़-लच्छा है ?
****************
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1167

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 22, 2016 at 10:53pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपको रचना रुचिकर लगी, मैं आश्वस्त हुआ. सादर धन्यवाद

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 22, 2016 at 5:25pm

बहुत सुंदर नवगीत | हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ सर | सादर |

Comment by pratibha pande on September 19, 2016 at 4:33pm

वैसे तो बिन्दास दिखे मन 
चौंक रहा है

हर ’खटके’ से .....डर ..आशंकाएँ..और उन्हें छिपाए रखने की आज के समय की मजबूरियाँ ..कहीं बहुत गहरे तक छू रही है आपकी ये रचना ..हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ...सादर .
 
 

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2016 at 8:39pm

आदरणीय सौरभ जी, सामाजिक विसंगतियों से सम्बंधित मार्मिक एवं अत्यंत प्रवाहपूर्ण नवगीत प्रस्तुत किया है आपने। यथार्थ को इस प्रकार आप काव्य में ढालते हैं कि बस पढ़ने वाला मुग्ध होकर रह जाता है।
इस नवगीत को पढ़ते समय मैंने इसकी धारा में बहकर जो आनन्द पाया उसका वर्णन नहीं हो सकता। आपकी सम्प्रेषणीयता की कला हम सबके लिए अनुकरणीय है।
"कौन सगा जो मन से खुलना
सबके इंगित तो तिर्यक हैं"

कितनी बड़ी सच्चाई है यह!
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपको अनेक बधाइयाँ!!

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 17, 2016 at 11:40am

वाहह आदरणीय बहुत ही सुंदर भावों का संप्रेषण है नमन है लेखनी को

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 16, 2016 at 4:59am
प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मन की गहराई से निकले भाव बेहतरीन नवगीत शिल्प में सम्प्रेषित हुए हैं। कभी आपके स्वर में सुनने पर और भी भावपूर्ण आनंद ले सकेंगे। बहुत सुंदर सार्थक सटीक प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई और आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 11:54pm

भाई आदित्य कुमार जी, आपकी तत्क्षण प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद. द्रुत गति है आपकी ! हार्दिक धन्यवाद भाई.

आपकी टिप्पणी मेरे रचनाकार के लिए और सार्थक हो उठती यदि आपने इस रचना के सापेक्ष अपने मत भी साझा किये होते. क्या अच्छा लगा ! क्या अच्छा नहीं लगा ! यदि नहीं, तो क्यों अच्छा नहीं लगा ! यदि किसी सुधार की गुंज़ाइश है तो कहाँ ? ऐसे विन्दु सामान ’वाह-वाह’ की अपेक्षा हज़ार गुणा प्रभावी होते. चूँकि ओबीओ एक सहित्यिक मंच है, अतः प्रस्तुतियों पर विवेचनाएँ अधिक उचित हुआ करती हैं.

दूसरे, आप यदि ओबीओ जैसे किसी साहित्यिक मंच पर हैं तो शब्द-ज्ञान का होना आपकी पहली आवश्यकता होनी चाहिए. अन्यथा आगे चल कर आपका रचनाकर्म बहुत ही अधिक प्रभावित होगा

यदृच्छा - यत्+इच्छा अर्थात्, उसकी इच्छा.  या, परमेश्वर की इच्छा 

किरच -  यह एक देसज शब्द है. किर्ची से किरच हुआ है. जो आँखों में या बदन में चुभे वह किर्ची ही किरच हुई

सान्द्र - कॉन्सण्ट्रेटेड, अत्यंत गाढ़ा. यह तो विज्ञान का शब्द है भाई. सोल्यूशन चैप्टर में आपने पढ़ा होगा, ’कॉन्क. एसिड’ यानी सान्द्र अम्ल ! 

तिर्यक - तिरछा या तिरछी. आपने ज्यामिति में नहीं पढ़ा है ? कि, दो समानान्तर रेखाओं को कोई तिर्यक रेखा काटे तो क्या-क्या हुआ करता है ?

पनछुच्छा - विरल स्वाद. किसी व्यंजन के मूल स्वाद में पानी की मात्रा के अधिक हो जाने पर बदला हुआ स्वाद.

 

Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 11:11pm

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,
"सुना जब आपका नवगीत दिल से ये दुआ निकली
मुझे भी इस विधा से काश रग़बत और हो जाती"
हम जैसे नव अभ्यासियों के लिये आपका नवगीत किसी पाठ शाला से कम नहीं,सच है,हर गीत नवगीत नहीं होता,मगर हर नवगीत ज़रूर गीत होता है । कमाल की प्रस्तुति से मंच को नवाज़ा है आपने,हमारे तो जैसे भाग खुल गये ।
उर्दू की तक़रीबन सारी अस्नाफ़ पर तबा आज़माई कर चुका हूँ,लेकिन हिन्दी विधाओं से परिचय ओबीओ पर आने के बाद हुआ है,में नवगीत के विधान से कोई वाक़फ़ीयत नहीं रखता लेकिन शाइरी किसी भी विधा में हो,उसे समझ ज़रूर सकता हूँ,आपका ये नवगीत शाइरी का बहतरीन नमूना है जो पाठक को मुतास्सिर किये बिना नहीं रहता,इसकी रवानी में बहता चला जाता है,में भी बह गया,वाह बहुत ख़ूब आनन्द आगया इस प्रस्तुति पर बस दाद ही दाद और ढेरों बधाई स्वीकार कर अनुग्रहित करें ।

Comment by Meena Pathak on September 15, 2016 at 8:29pm


जितने की इच्छा थी उतनी 
सबकी दुनिया दिखी चहकती 
कहीं धार में बहता पानी 
कहीं सुगंधित धार महकती 
दौर तेज़ है, तो सब दौड़ें 
या सुस्तायें, पाट सँभालें 
वो भी चुप हैं अपने हिस्से 
जहाँ किरच से रात लहकती..............बहुत सुन्दर ..हार्दिक बधाई सर जी 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 15, 2016 at 8:27pm
आदरणीय श्री सौरभ पांडेय जी बहुत ही सुन्दर रचना । सराहना के लिए किन शब्दों का इस्तेमाल करूँ ? बहुत बहुत बधाई।आप हर विधा में माहिर हैं । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service