वागीश्वरी सवैये सूत्र : यगण X 7 + ल गा
अभी तो अकेले चले हैं मियाँ जी ,न कोई वहां है न कोई यहां ।
यहां कौन है जो बताये जहां को,कि बाबू चले हैं अकेले कहां ।
जहाँ जा रहे हैं रहेंगे अकेले,मिलेगा न साथी उन्हें तो वहाँ ।
पता है हमें ख़ूब यारों यक़ीं है, करेगा उन्हें याद सारा जहाँ ।।
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निगाहें उठाके ज़रा देख तो लो ,बताओ यहाँ क्यूँ अकेले खड़े ।
हमें ये बता दो बिना बात के ही,भला जान देने यहाँ क्यूँ अड़े।
जहाँ में न कोई हमें तो मिला है,कहो कौन ऐसे क़ज़ा से लड़े ।
हमारा कहा मान लो देख लो जी,यहाँ भी वहाँ भी शिकारी बड़े ।।
--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर साहब बहुत सुन्दर सवैया छंद लिखा है आपने । इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर
आदरणीय समर कबीर जी, छंदों पर आपकी पकड़ खूब बन गई है. क्या खूब सवैया लिखा है आपने. लघु-गुरु-गुरु की आवृत्ति को बहुत बढ़िया निभाया है. इस शानदार प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , बहुत ही अच्छे सवैये हुए हैं , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
अभी तो अकेले चले हैं मियाँ जी ,न कोई वहां है न कोई यहां ।
यहां कौन है जो बताये जहां को,कि बाबू चले हैं अकेले कहां ।
जहाँ जा रहे हैं रहेंगे अकेले,मिलेगा न साथी उन्हें तो वहाँ ।
पता है हमें ख़ूब यारों यक़ीं है, करेगा उन्हें याद सारा जहाँ ।।
वाह आदरणीय समर साहिब वाह मुझे इस सवैये के बारे में तो अधिक पता नहीं मगर भाव शब्द और लय तीनों ही कमाल का असर छोड़ती हैं। इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर जी।
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