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 अँधेरा हो गया था

मेले से लौटने में 

जब बैलगाड़ी के पहिये में

फंस गया था

मेरी बेटी का दुपट्टा

जो पहिये के घूर्णन के साथ-साथ

कसता गया

मेरी बेटी के गले में

और तब गया सबका ध्यान 

जब घुटी -घुटी सी चीख

निकली उसके मुख से

हठात बैलों की लगाम

खींची गाडीवान ने

और बैल पैर उठाकर 

पीछे की और धसके

 

पहिये में फंसे दुपट्टे को

आहिस्ता से निकाल कर 

छुड़ाया गया उसका गला

उस काल-फंद से से जो

यद्यपि अपराजित हुआ

पर दे गया एक घाव

एक निशान

मेरी बेटी के गले पर

जिसे देखकर डाक्टर ने

मुझे घूरा था संदेह से

शायद पहिये और दुपट्टे की

युगलबंदी पर

नहीं विश्वास था उसे

उसकी गणित शायद इसे

मानता था  

विफल की गयी 

आत्महत्या का कोई मामला

 

मैंने समझाया

मिट्टी में सना वह दुपट्टा दिखाया

बेटी ने भी की 

तस्दीक उस घटना की

तब कही थोडा आश्वस्त हुआ डाक्टर

 

टाँके तो लग गए

रोज मरहम लगाए कौन ?

कौन करे घाव की सफाई ?

बेटी तैयार न थी

न माँ से न भाई से

पापा करेंगे

बेटी ने अपना फैसला सुनाया

पापा पर ही विश्वास था उसे 

पापा दर्द समझेंगे

रुई के फाहे से करेंगे सफाई

मंद स्पर्श से लगेगा मरहम

 

मरहम की अभ्यस्त हुयी

मेरी उंगलियाँ 

मेरी उँगलियों की

आदत पड़ी मरहम को

दोनों में हो गयी

अद्भुत पहचान 

एक दूसरे के दर्द का

दोनों को संज्ञान 

अंततः

अंत हुआ इस दारुण अभ्यास का

एक दिन होना ही था

पर मेरे हाथ

हाथ की उंगलियाँ

अब भी तरसती हैं

उस मरहम के परस को

जिसने घाव भरे बिटिया के

और शायद –शायद मेरे भी

बिटिया अब ठीक है

जैतून के तेल से

मिटेंगे निशान उसके

ऐसा लोग कहते है

मैं सोचता हूँ

यदि नहीं होता

जग में प्राणदायी मरहम तो

कैसे घाव भरते

तन के या मन के 

 

(मौलिक / अप्रकाशित )

 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 30, 2016 at 3:17pm

आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब अद्भुत और अप्रतिम प्रस्तुति    .... पिता पुत्री के स्नेही भावों की बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति हुई है  .... प्रस्तुति अंतस में इक टीस छोड़ जाती है  ... इस संवेदनशील प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें सर। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2016 at 12:11am

आदरणीय गोपाल सर, इस प्रस्तुति ने नम कर दिया. भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Mahendra Kumar on December 29, 2016 at 8:06pm
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन सर, पिता-पुत्री को केन्द्र में रख कर बहुत उम्दा कविता लिखी है आपने। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई निवेदित है। सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on December 29, 2016 at 4:06pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 
Comment by Samar kabeer on December 29, 2016 at 3:10pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवस्त्व जी आदाब,बहुत उम्दा लगी आपकी कविता,प्रवाह देखते ही बनता है,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
29वीं पंक्ति में 'उसकी गणित'या "उसका गणित"कृपया मार्गदर्शन करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on December 29, 2016 at 3:05pm

आदरनीय डॉo गोपाल नारायण जी ,  सुन्दर भावुक प्रस्तुति पर बधाई , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 29, 2016 at 6:46am
आदरनीय डॉo गोपाल नारायण जी , स्मृतियाँ भी कहाँ कहाँ ले जाती हैं , सुन्दर भावुक प्रस्तुति पर बधाई , सादर।

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