For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221   221   212

वह दौर था जो गुजर गया

था इक नशा जो उतर गया

 

देखा था उसने फरेब से

दिल आशिकाना सिहर गया

 

मुफलिस समझ के जनाब वो 

पहचानने से मुकर गया

 

जिस पर भरोसा किया बहुत

वह यार जाने किधर गया

 

जब साथ था तो कमाल था

अब जिन्दगी का हुनर गया

 

इक ठेस ही थी लगी मुझे  

मैं कांच सा था बिखर गया

 

जिस नाग ने था डसा मुझे

मैंने सुना है कि मर गया

 

सब सह लिये जो मिले थे गम

उसकी दुआ थी सुधर गया

 

कैसे जियूँगा मैं हमनवा  

पहले वहां मैं अगर गया

 

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

 

Views: 653

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 24, 2017 at 1:25pm

// सब सह लिये जो मिले थे गम

उसकी दुआ थी सुधर गया

 

कैसे जियूँगा मैं हमनवा  

पहले वहां मैं अगर गया//

गज़ल के भाव बहुत ही दिलकश हैं। हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 12, 2017 at 11:20am

जिस नाग ने था डसा मुझे

मैंने सुना है कि मर गया------वाह्ह्ह्ह  आदमी नाग से भी ज्यादा जहरीला हो गया 

 

कैसे जियूँगा मैं हमनवा  

पहले वहां मैं अगर गया------बहुत मर्म स्पर्शी 

बहुत खूब ग़ज़ल कही है आद० डॉ० गोपाल भाई जी वैसे ये बह्र कौन सी है ?  

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 11, 2017 at 6:40am

बहुत खूब डॉ साहब ... 
बहुत बहुत बधाई 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 9, 2017 at 11:26pm

आदरणीय गोपाल नारायण साहेब ....उम्दा गजल ........हार्दिक बधाई स्वीकार करें|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 11:19am

आदरनीय बड़े भाई , क्या खूब गज़ल कही है आपने ... ह्र्दय से बधाइयाँ प्रेषित हैं ... स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 9, 2017 at 10:46am

बेहतरीन गज़ल आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on April 8, 2017 at 2:37pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'जब साथ था तो कमाल था'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये 'साथ था',मिसरा इस तरह करलें तो ये ऐब निकल जायेगा :-
"जब साथ वो था कमाल था"
Comment by Sushil Sarna on April 8, 2017 at 2:28pm

वह दौर था जो गुजर गया
था इक नशा जो उतर गया

देखा था उसने फरेब से
दिल आशिकाना सिहर गया

वाह आदरणीय गोपाल जी भाई साहिब ... बहुत ही सुंदर और सार्थक अशआर कहे हैं आपने सर ... इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 8, 2017 at 11:01am
आदरणीय गोपाल नारायण जी उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by Mohammed Arif on April 8, 2017 at 10:46am
आदरणीय गोपाल नारायण जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र बेजोड़, लाजवाब । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service