For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नेम प्लेट ...

कुछ देर बाद
मिल जाऊंगा मैं
मिट्टी में
पर
देखो
हटाई जा रही है
निर्जीव काल बेल के साथ
लटकी
मेरी ज़िंदा
मगर
उखड़े उखड़े अक्षरों की
एक अजीब सी
चुप्पी साधे
पुरानी सी 
नेम प्लेट

मुझसे पहले 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 923

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 17, 2017 at 4:38pm

आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहिब , आदाब। ... सृजन के भावों को अपने मधुर शब्दों से शोभित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 17, 2017 at 4:38pm

आदरणीय हरी प्रकाश दूबे जी सृजन के भावों को अपनी स्नेहिल प्रशंसा से शोभित करने का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित टंकण त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने का हार्दिक आभार। मैं अभी इस एडिट कर दुबारा पोस्ट करता हूँ। ये सब गूगल जी का कारनामा है। 

Comment by Sushil Sarna on July 17, 2017 at 4:37pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है। 

Comment by Sushil Sarna on July 17, 2017 at 4:37pm

आदरणीय लक्षमण धामी जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 17, 2017 at 4:08pm

बहुत खूब ! .. भाव के क्षणिक आवेग को आपने खूबसूरती से शब्दबद्ध किया है. हार्दिक बधाइयाँ आदरणीय सुशील सरनाजी. 

एक बात : 

चुप्पी साधे / पुरानी से / नेम प्लेट .. यहाँ वाक्य गठन के अनुसार ’पुरानी से’ न हो कर ’पुरानी-सी’ होना चाहिए था.

लेकिन, नेम-प्लेट की संज्ञा को स्त्रीलिंग के तौर पर व्यवहृत करते हैं क्या ? 

सादर

Comment by Samar kabeer on July 17, 2017 at 11:45am
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, सच्चाई से क़रीब इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 16, 2017 at 5:55pm
मुहतरम जनाब सुशील सरना साहिब,सुन्दर भाव को समेटे अच्छी कविता हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 4:38pm

पुरानी से की जगह सर पुरानी सी होना चाहिये , बाकी इस बहुत ही सुन्दर रचना के लिए आपको साधुवाद आदरणीय  Sushil Sarna सर !सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 3:42pm

वाह बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना हुई है आदरणीय सुशिल सरना जी | हार्दिक बधाई |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2017 at 2:10pm
बहुत खूब.......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service