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"अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा"

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

अगर वो मुफ़लिसी को रौनक़-ए-बाज़ार कर देगा
कई महरुमियों को बर सर-ए-पैकार कर देगा

सभी ने कर लिया इक़रार, लेकिन जानता है वो
अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा

किताबों में लिखा है उसको जन्नत की बशारत है
वफ़ा की राह में क़ुर्बान जो घर बार कर देगा

मिलाएगा अगर हर बात में जो हाँ में हाँ उसकी
उसे नीलाम वो इक दिन सर-ए-बाज़ार कर देगा

हमारे इश्क़ का चर्चा अभी सरगोशियों तक है
जो बाक़ी काम है वो सुब्ह का अख़बार कर देगा

पुराने ज़ख़्म दिल के भर चुके,अब देख लेना वो
हमारे वास्ते पैदा नया आज़ार कर देगा

अगर आमाल की उसके मज़म्मत की नहीं हमने
हमारा साँस लेना भी "समर"दुश्वार कर देगा
----
महरूमी-ना उमीदी,मायूसी,नाकामी
बर सर-ए-पैकार-जंग के लिए तैयार
बशारत-ख़ुश ख़बरी
सर गोशियों-काना फूसी
आज़ार-दुख, तकलीफ़
आमाल-अमल का बहुवचन
मज़म्मत-निंदा

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:16pm
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 5:15pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by दिनेश कुमार on November 3, 2017 at 3:22pm
बहुत उम्दा ग़ज़ल आ. समर सर। वाह वाह वाह। सभी अशआर बढ़िया लगे। मुबारकबाद।
Comment by Ravi Shukla on November 3, 2017 at 2:42pm
आदरणीय समर साहब कमाल के अशआर कहे आपने मतले से ही ग़ज़ल ने अपनी ओर आकर्षित कर लिया मतले से मकते तक कमाल की गजल कही आपने हर शेर उम्दा है दिली मुबारकबाद कुबूल करिए
Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 2, 2017 at 5:54pm

वाह वाह वा वाह ..
क्या बात ..क्या ख़ूब  ग़ज़ल कही आपने ..
बहुत बहुत बधाई आ. समर सर 
सादर 

Comment by narendrasinh chauhan on November 2, 2017 at 5:43pm

बहुत सुंदर रचना

Comment by Ajay Tiwari on November 2, 2017 at 3:09pm

आदरणीय समर साहब, आदाब,

शानदार ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

ग़ज़ल में जो एक प्रतिरोध का स्वर है वो इसे नयी ऊचाइयां देता है.

सभी ने कर लिया इक़रार, लेकिन जानता है वो
अभी इक आदमी बाक़ी है जो इंकार कर देगा

ऐसे शेर कोशिश करके नहीं लिखे जा सकते ये तो बड़ी मुश्किल से कभी-कभी बस हो जाते है.

सादर 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 2, 2017 at 10:01am
आदरणीय समर साहब लाज़बाब गज़ल के लिये ढेरों मुबारकबाद
Comment by नादिर ख़ान on November 2, 2017 at 12:41am

जनाब समर साहब आपकी गज़लगोई का जवाब नहीं मै पहले भी लिख चुका हू फिर दोहराता हूँ आपकी गज़ल  पढ़कर, गज़ल का अलिफ, बे  सीखते हैं हम ....एक ही साँस मे पूरी गज़ल पढ़ गए और दिल से निकला वाह भई वाह ......

Comment by vijay nikore on November 1, 2017 at 11:32pm

सच, कह नहीं सकता कि इस गज़ल को पढ़ कर कितना खुश हूँ। यह अवस्था बहुत कम आती है, जब खुशी से बढ़ कर हैरानगी आती है, कि कोई इतना अच्छा कैसे लिख लेता है ! बहुत-बहुत मुबारक इस गज़ल के लिए।

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