For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"फाइनली ख़ुदकुशी करने का इरादा है क्या? सुसाइड नोट लिखने जा रही हो?"
"मैं! मैं ऐसी बेवक़ूफी करूंगी! कभी नहीं!"
"तो फिर सोशल मीडिया के ज़माने में काग़ज़ पर क्या लिखना चाहती हो?" कोई कविता, शे'अर या कथा?"
"वैसी वाली मूरख भी नहीं रही अब मैं! जो मुझे चैन से जीने नहीं देते, उन्हें भी चैन से जीने नहीं दूंगी अब मैं!"
"तो क्या एक और फ़र्ज़ी ख़त लिख रही हो अपने मायके और वकील मित्रों को झूठे ज़ुल्मो-सितम बयां करके!"
"कुछ तो इंतज़ाम करना पड़ेगा न! पता नहीं मेरा शौहर कब तलाक़ दे दे या दूसरा निकाह कर ले? मुझे तो लगता है कि ससुराल वाले कहीं मुझे मार न डालें!"
"टीवी धारावाहिकों, समाचारों और क्राइम वाले कार्यक्रम देख-देखकर तुम्हारा दिमाग़ खुराफ़ाती हो गया है और कुछ नहीं! खोट तुम में है या तुम्हारे शौहर या ससुराल वालों में?" अन्तर्मन के इस सवाल ने शाहीन को झकझोर दिया।
बेटे के अभाव में शाहीन की अम्मीजान ने उसके वालिद साहब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ लड़कों जैसी परवरिश ही नहीं की थी, बल्कि पढ़ा-लिखा कर उसे तेज-तर्रार मॉडर्न भी बनाया था। कभी किसी से न दबने के हुनर सिखाये थे। नतीज़तन शाहीन न तो शौहर के साथ ख़ुश थी और न ही ससुराल वालों के साथ। शौहर के नापसंद अपने शौक और आदतों पर नियंत्रण न कर पाने की वज़ह से अनजाने भय से ग्रस्त रहते हुए जब-तब ऊल-जलूल ख़त लिख कर वह अपनी भड़ास निकालने की कोशिश करती थी।
"तुम्हारे शौहर का इतना ही कसूर है न कि वह आदर्शवादी है और नमाज़ी-परहेज़ी! अपने तमाम फ़र्ज़ तो निभाता है न! मॉडर्न न होना कोई गुनाह तो नहीं!" उसके अन्तर्मन ने उसे फिर समझाया, "अपने गिरेबां में कभी तो झांक कर देखो! तुम स्वार्थी, आत्मकेंद्रित हो या अमर्यादित और मनोरोगी सी?"
"मैं पागल तो नहीं हूं! शौहर और ससुराल वालों को मॉडर्न बनाने की कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है? कितने सारे मुसलमान भी तो कितना बदल चुके हैं अपने आप को नये हिन्दुस्तान में एड्जस्ट होने के लिए!"
"ज़माने के साथ चलने का मतलब यह भी तो नहीं है कि तुम अपनी ज़हनियत गंदी करो और दूसरों की भी! तुम्हारी समस्या कुछ और नहीं, बस मीडिया से बिगड़ी हुई तुम्हारी ज़हनियत ही है!" अन्तर्मन की बात सुनकर शाहीन ने टेबल पर रखा काग़ज़ फाड़ डाला और कलम सोफे पर फैंक कर आइने में अपनी शक्ल देखने लगी।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on December 14, 2017 at 3:52pm

इस लघु कथा के माध्यम आपने एक गहन सोच के लिए सामयिक अवस्था प्रस्तुत की है। लघु कथा इसमें बहुत सफ़ल हुई है। हार्दिक बधाई भाई शेख शहज़ाद उस्मानी साहब ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 14, 2017 at 3:50am

रचना पर समय देकर अनुमोदन और अपनी राय से अवगत कराने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी और आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।

Comment by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 5:04am

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। हर बार की तरहः पुनः एक उम्दा लघुकथा आपके माध्यम से पढ़ने को मिली। कोटिश बधाइयाँबधाइयाँ आपको।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2017 at 8:52pm

आद० सोमेश कुमार जी की बात से मैं भी सहमत हूँ .  बाकि लघु कथा तो हमेशा की तरह बहुत अच्छी लिखी है हार्दिक बधाई आद० उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 11, 2017 at 9:34pm

रचना के मर्म तक पहुंच कर अपने विचारों को साझा करते हुए अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब सोमेश कुमार साहिब और जनाब तेजवीर साहिब।  जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब सोमेश कुमार साहिब आपने जो मार्गदर्शन प्रदान किया है, वह भी महत्वपूर्ण है। 

Comment by Samar kabeer on December 11, 2017 at 2:17pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,इस बहतरीन लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें ।

Comment by somesh kumar on December 10, 2017 at 3:43pm

 कितने सारे मुसलमान भी तो कितना बदल चुके हैं अपने आप को नये हिन्दुस्तान में एड्जस्ट होने के लिए! यहा मुसलमान-हिन्दुस्तान  शब्द विवशता का आभास करा रहा लगता है |मेरे विचार में इसे नया मुसलमान-नये समाज में ज़्यादा सार्थक लगता है |

अन्तर्मन की बात सुनकर शाहीन ने टेबल पर रखा काग़ज़ फाड़ डाला और कलम सोफे पर फैंक कर आइने में अपनी शक्ल देखने लगी-

अपने रूप को ,आत्मा को पहचानना यह एक गहन और सटीक अंत है |

सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई- Sheikh Shahzad Usmani भाई जी

Comment by TEJ VEER SINGH on December 10, 2017 at 10:08am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Mohammed Arif on December 10, 2017 at 8:08am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                            आजकल हम उधार की मानसिकता से ग्रसित होते जा रहे हैं। हम क्या पहने, क्या खाएँ, कैसा दिखे, किससे कैसा बर्ताव करें यह सब सोशल मीडिया तय करने लगा है । सोशल मीडिया कोई बुरी चीज़ नहीं है मगर हम इसके ग़ुलाम हो जाए यह ग़लत है । शाहीन जैसी दोहरी मानसिकता वाली हज़ारों लड़ियाँ समाज में ऐसी ही ज़िंदगी बसर कर रही है । यह किसी एक समाज विशेष पर उंगली उठाने वाली बात नहीं है बल्कि हर समाज और वर्ग में शाहीन मिल जाएगी । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें इस कसावटपूर्ण लघुकथा के लिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
50 minutes ago
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
10 hours ago
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
17 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
Sunday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service