2122 /1122 /1122 /22 (112)
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हँसता चेहरा यूँ तो रुख्सत उसे कर आएगा
दिल पे टूटेंगे सितम..... दर्द से भर आएगा.
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एक दूजे को जो देखेंगे अगर हम यूँ ही
किसी चेहरे का किसी पर तो असर आएगा.
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अपनी आँखों से हटा ले ये अना की पट्टी
तुझ को हर शख्स तेरा अक्स नज़र आएगा.
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सोच के गहरे समुन्दर में लगा ले गोते,
उथले पानी में कहाँ हाथ गुहर आएगा?
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रूह को अश्क-ए-नदामत से कभी धो कर देख,
हुस्न हस्ती का तेरी और निखर आएगा.
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कोई मंज़िल ही नहीं है तो कहाँ पहुँचेंगे
इस सफ़र बाद कोई और सफ़र आएगा
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नूर बुलवाए कभी “नूर” को मिलने के लिए
जिस्म की ख़ाक यहीं राख में धर आएगा.
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निलेश “नूर”
मौलिक अप्रकाशित
Comment
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई आ. निलेश सर जी। दिली दाद क़ुबूल करें। वाह वाह वाह
नीलेश भैया ,बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई बहुत बहुत बधाई आपको
सोच के गहरे समुन्दर में लगा ले गोते,
उथले पानी में कहाँ हाथ गुहर आएगा? -----बहुत खूब
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जनाब नीलेश साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
आदरणीय नीलेश जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई।
सादर।
शुक्रिया आ. अजय तिवारी जी
शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब
शुक्रिया आ. समर सर
आदरणीय निलेश जी, उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
आदरणीय नीलेश जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र बड़ा ही प्रभावी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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