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सांस भर की ज़िंदगी ...

सांस भर की ज़िंदगी ...

वक़्त के साथ
हर शै अपना रूप
बदलती है
धूप ढलती है तो
छाया भी बदलती है

वक़्त के साथ
मोहब्बत की चांदी
केश वन में
चमकने लगी

उम्र की पगडंडियां
झुर्रियों में झलकने लगीं

वक़्त के साथ
यौवन का दम्भ
लाठी का मोहताज़ हो गया
दर्पण
आँख से नाराज़ हो गया
अनुराग
दर्द का राग हो गया
हदें
निगाहों से रूठ गयी
नफ़स
छटपटाई बहुत
आखिर
थककर टूट गयी
वक़्त
चलता रहा
बस
सांस भर की ज़िंदगी
दूर कहीं

छूट गयी


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 28, 2017 at 6:13pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति को अपनी स्नेहाशीष से मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 28, 2017 at 6:13pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 28, 2017 at 5:21pm

जनाब सुशील सरना साहिब ,सुन्दर रचना हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Mahendra Kumar on December 28, 2017 at 3:00pm

आ. सुशील सरना जी, बढ़िया कविता कही है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2017 at 2:17pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बेहतरीन कविता लिखी आपने।बहुत बहुत बधाई।

Comment by Mohammed Arif on December 28, 2017 at 7:45am

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,

                              ज़िंदगी के परिवर्तन को रेखांंकित करती बेहतरीन कविता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on December 27, 2017 at 10:39pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2017 at 10:11pm

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय| हार्दिक बधाई|

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