सांस भर की ज़िंदगी ...
वक़्त के साथ
हर शै अपना रूप
बदलती है
धूप ढलती है तो
छाया भी बदलती है
वक़्त के साथ
मोहब्बत की चांदी
केश वन में
चमकने लगी
उम्र की पगडंडियां
झुर्रियों में झलकने लगीं
वक़्त के साथ
यौवन का दम्भ
लाठी का मोहताज़ हो गया
दर्पण
आँख से नाराज़ हो गया
अनुराग
दर्द का राग हो गया
हदें
निगाहों से रूठ गयी
नफ़स
छटपटाई बहुत
आखिर
थककर टूट गयी
वक़्त
चलता रहा
बस
सांस भर की ज़िंदगी
दूर कहीं
छूट गयी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति को अपनी स्नेहाशीष से मान देने का दिल से आभार।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
जनाब सुशील सरना साहिब ,सुन्दर रचना हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
आ. सुशील सरना जी, बढ़िया कविता कही है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बेहतरीन कविता लिखी आपने।बहुत बहुत बधाई।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,
ज़िंदगी के परिवर्तन को रेखांंकित करती बेहतरीन कविता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय| हार्दिक बधाई|
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