रत्नाकर जंगलों में भटकता, और आने-जाने वालों को लूटता | यही तो उसका पेशा था| नारद-मुनी भेस बदलकर उसके सामने खड़े थे, बहुत दिनों बाद एक बड़ा आसामी हाथ लगा है: सोचकर रत्नाकर ने धमकाया ,"तुम्हारे पास जो कुछ भी हो ,सब मेरे हवाले कर दो वरना जान से हाथ धोना पड़ेगा|"
"ठीक है, सब तुमको दे दूंगा,पर यह पाप है,तुम जो भी कुछ कर रहे हो पाप है|"
"यह मेरा पेशा है,पाप और पुण्य को मैं नहीं जानता! तुम मुझे अपना सब कुछ देते हो कि नहीं? वरना यह लो....|"
नारद जी ने निडर होकर कहा," मुझे मारने के पहले एक बात तो जान लो, यह पाप जो तुम कर रहे हो क्या तुम्हारे घरवाले इसके हिस्सेदार बनेंगे?"
रत्नाकर सोच में पड़ गया और बोलै," हाँ.....|"
"बिना उनसे पूछे तुमने यह कैसे जाना?"
"मेरे घर वाले हैं,,मुझसे सब बहुत प्यार करते हैं| और मैं यह सब उन्हीं के लिए तो कर रहा हूँ|"
"फिर भी......|"
नाटक चल रहा था,सामने बैठे श्रोताओं में से एक चोर भी था जो भीड़ में बैठा था, मौके की तलाश में था किसी की जेब साफ़ कर ले|
उसके पास जो व्यक्ति बैठा था वह जानता था कि यह चोरी करने के लिए ही भीड़ में आया है और नाटक देख रहा है| फिर भी उसने कहा," देख लो इस नाटक के रत्नाकर कहीं तुम तो नहीं?"
चोर ने उस व्यक्ति की ओर देखा और कहा," अब ऐसे रत्नाकर कहाँ, जो वाल्मीकि बन जाएँ| समय बदल गया है अब वाल्मीकि भी रत्नाकर बन चूका है|
पलक जबकते ही उस व्यक्ति ने अपने जेब में हाथ डाला तो वो साफ़ हो चूकी थी|
नाटक में : रत्नाकर, अब वाल्मीकि बन चुके थे और रामायण लिख रहे थे|
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
नमस्ते आ समर भाई जी, आपकी तबियत अब कैसी है? सादर आभार भाई जी, आप को कथा पसंद आयी सफल हुआ मेरा प्रयास| सादर|
धन्यवाद जनाब मोहम्मद आरिफ साहब|
वाह आदरणीया बहुत बढ़िया लघु कथा लिखी है...
बहुत बढ़िया और उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
प्रिय कल्पना भट्ट जी बहुत बढ़िया लघु कथा है बहुत बहुत बधाई
बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,
पौराणिक पात्रों को आधार बनाकर आधुनिक समाज में चोर-उचक्के और बेईमान रत्नाकर पर अच्छा कटाक्ष किया आपने । आज सारे रत्नाकर हमारे रहनुमा बनकर बैठे हैं । इन हरामी दुष्टों को हमने हमारे कल्याण और विकास के लिए चुना था मगर सब गद्दार निकले । देश को लूट रहे हैं और हमारी गाढ़ी कमाई डकारकर देश से फरार हो जाते । यह सब सरकार की नाक के नीचे हो रहा है । जिससे हमको बहुत उम्मीद थी वह खरा नहीं उतरा । बहुत ही सशक्त और कटाक्षपूर्ण लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं ।पुनश्च बधाई ।
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