मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
(हुस्न-ए-मतला और उसके बाद का शे'र क़ित'अ बन्द हैं)
जब इम्तिहान-ए-शौक़-ए- शहादत रखा गया
इनआम उसका दोस्तो जन्नत रखा गया
पहले तो इसमें नूर-ए-सदाक़त रखा गया
फिर इसके बाद जज़्ब-ए- उल्फ़त रखा गया
तकलीफ़ दूसरों की समझ पाएँ इसलिये
दिल में हमारे दर्द-ए-महब्बत रखा गया
कोई भी शय फ़ुज़ूल नहीं इस जहान में
हर एक शय को हस्ब-ए-ज़रूरत रखा गया
लेता नहीं है रोज़ वो आमाल का हिसाब
ये फैसला तो रोज़-ए-क़यामत रखा गया
अह्ल-ए-वफ़ा तो एक भी आया नहीं नज़र
बस्ती में जब भी जश्न-ए-महब्बत रखा गया
हम रहरवान-ए-शौक़ की राहों में ऐ "समर"
दरया रखा गया कभी पर्बत रखा गया
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब आमोद बिंदौरी साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए शुक्रगुज़ार हूँ ।
आद0 आली जनाब समर साहब सादर प्रणाम। बहुत बेहतरीन ग़ज़ल, वाह वाह। कितनी खूबसूरती से आप बातों को शैर के जरिये कह जाते हैं। ग़ज़ज़्ब।
बहुतपहले तो इसमें नूर-ए-सदाक़त रखा गया
फिर इसके बाद जज़्ब-ए- उल्फ़त रखा गया
तकलीफ़ दूसरों की समझ पाएँ इसलिये
दिल में हमारे दर्द-ए-महब्बत रखा गया
बहुत मुबारकबाद आपको इस ग़ज़ल पर।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।बेहतरीन गज़ल।
लेता नहीं है रोज़ वो आमाल का हिसाब
ये फैसला तो रोज़-ए-क़यामत रखा गया
आदरणीय समर कबीर जी आदाब,
बहुत ही उम्दा और उच्व भाव सर । हर शेर दिल की छू गया । बेहतरीन ।
सादर
वाह वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई ।
बस्ती में जब भी जश्ने मुहब्बत रखा गया ।नमन है आपकी कलम को ।बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक़वाद ।
वाह वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई ।
बस्ती में जब भी जश्ने मुहब्बत रखा गया ।नमन है आपकी कलम को ।बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक़वाद ।
पहले तो इसमें नूर-ए-सदाक़त रखा गया
फिर इसके बाद जज़्ब-ए- उल्फ़त रखा गया
तकलीफ़ दूसरों की समझ पाएँ इसलिये
दिल में हमारे दर्द-ए-महब्बत रखा गया वाह! वाह! क्या कहने । बहुत उम्दा क़िताबंद शे'र ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारबाद क़ुबूल कीजिए आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
वाह! जनाब समर साहिब
बेहतरीन ग़ज़ल हुई, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, उम्दा ग़ज़ल हुई है ,शेर दर शेर मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । शेर3 के उला मिसरे में शायद पाएं की जगह पाए होना चाहिए ,टाइप त्रुटि हो गई ।
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