16 रुकनी ग़ज़ल
किस किस के नाम गिनाऊँ मैं, जो इस दिल मे भर पीर गए
जिस जिस को हिफाज़त सौंपी थी, वो सारे ही दिल चीर गए
वो तन्हा छोड़ गए लेकिन मैं उनको दोष नहीं दूँगा
जो तोहफे में इन दो प्यासे नयनों को दे कर नीर गए
हर गीत ग़ज़ल अशआर सभी हैं जिन लोगों की सौगातें
आबाद रहें वो, जो मुझ को, दे कर ग़म की जागीर गए
हर ख़ाब कुचल डाले मेरे, तुम रौंद गए अरमानों को
पर मुआफ़ किया मैंने तुमको, तुम चाहे कर तफ़्सीर गए
रातों की जिम्मेदारी इक लक्ष्मण को थी अब पंकज को
कम से कम मुझ नाची'ज़ को वो दे कर इतनी तौक़ीर गए
पैदल गाड़ी चाहे जिस भी साधन से आप चलें, लेकिन
अंतिम यात्रा में काँधों पर सबके निर्जीव शरीर गए
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर बहुत आभार
आ. भाई पंकज जी, सुंदर गजल हुयी है। हार्दिक बधाई ।
आदरणीय पंकज जी, शेर अच्छे हैं और अब बह्र के हिसाब से भी ठीक हैं. मेरे लिए इतना ही काफी है. सादर
आदरणीय अजय जी ये ग़ज़ल वैसे भी बह्र-ए-मीर होने का दावा नहीं करती.....यह हिंदी के 16 मात्रिक विधान को ध्यान में रखकर लिखी है मैंने, इसमें काफ़िये और रदीफ़ का प्रयोग कर के इसे ग़ज़ल का रूप दिया गया है।
गज़लगो इसे 2222 की बह्र मानते हैं या 22 के वज़्न वाली 16 रुक्नी बह्र यह उनकी समस्या है......यह हिंदी की विशुद्ध ग़ज़लों में स्थान पाएगी.....
आदरणीय पंकज जी, आपके द्वारा किये गए संशोधन बहुत अच्छे हैं अब दोष दूर हो गए है.
\\मुझे लगता है, कि 22 वाली बहरों को आप सिर्फ 22 के संदर्भ में देखते हैं, दर असल उन्हें 2222 के संदर्भ में पूर्ण देखिए... कुछ शब्द जैसे....गीत-गान, शब्द-अर्थ, साथ-साथ इन पर भी गौर करें?\\
22 वाली सारी बह्रेें बह्र-ए-मीर नहीं होती. इसकी एक स्पष्ट पहचान ये है कि अगर मतले के एक भी रुक्न में फेलुन(22) का वज़न गणितीय रूप से 2 +1+1 नहीं है तो ऐसी ग़ज़ल बह्र-ए-मीर पर आधारित नहीं होती. 'गीत-गान' और 'शब्द-अर्थ' को 2222 के वज़न पर 'बह्र-ए-मीर' में एक छूट के तौर पर (कभी-कभार अगर और कोई विकल्प न हो) इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन आरिफ़ हसन खान साहब जैसे बहुत से अरूज़ी इसे भी एक गलती ही मानते हैं; इसलिए इससे बचाना बेहतर होगा.
आपकी ग़ज़ल बह्र-ए-मीर पर नहीं 'मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून मुसक्किन मुजाइफ़' पर आधारित है. इस बह्र में 'गीत-गान' और 'शब्द-अर्थ' को 2222 के वज़न पर रखना मुमकीन नहीं है.
22 वाली वाली बह्रों को इस्तेमाल करते हुए हमेशा अतिरिक्त रूप से सतर्क रहना चाहिए क्योंकि एक भी हर्फ़ के इधर-उधर होने से मुतदारिक से मुतक़ारिब और मुतक़ारिब से मुतदारिक में जाने का खतरा बना रहता है. इन बह्रों के इस्तेमाल में बड़े-बड़े शायरों ने ठोकरें खायीं हैं.
सादर
आदरणीय रवि सर, आपके सुझाव उपयोगी हैं, इसलिए क्षमा मांग कर शर्मिंदा न करें। आप बड़ों की इस्लाह का ही प्रभाव है कि कुछेक शेर ठीक ठाक कहने लगा हूँ।
सादर अभिवादन
आदरणीय सौरभ सर, सादर प्रणाम.....कॉमा हटा दिया जाएगा।
आशीर्वाद प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय पंकज जी नमस्कार आप की एक और ग़ज़ल से आज रूबरू हुए उस्ताद शायरों की प्रतिक्रिया के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कुछ डर लग रहा है शुरू के अशआर में बहर का प्रवाह बहुत अच्छा लगा। पर बाद के शेर में वह बात नहीं आ पाई ।मेरे नजदीक बहरे मीर में फैलुन फ़ैलुन की जितनी सही तरकीब होती है उतना ही इसका प्रभाव अधिक मान सकते हैं । जैसे (कभी कभी 1212मुफाइलुन) को फैलुन फ़ा के रूप में इस बहर में ले लिया जाता है किंतु मेरा सदैव प्रयास रहता है इस तरह के प्रयोग से बचा जाए। कहने का तात्पर्य यह है 2112 को 222 तो मान सकते हैं किंतु 12122 को 222 मानना तर्कसंगत मुझे नहीं लगता। यदि मेरी बात असहज लगी हो तो आप से और मंच से क्षमा
शिकस्त-ए-हर्फ़-ए-नारवा का ऐब मेरे नज़दीक इतनी अहमियत का हामिल नहीं,क्योंकि कई बड़े शाइर इसका शिकार हैं,ये बात अलग की ओबीओ के मंच पर इसे इंगित करना ज़रूरी भी है, कि ये सीखने सिखाने का मंच है ।
भाई पंकज जी, आपकी कहन का एक विशेष शैली है, जो आत्मपरकता को व्यापक बनाने की हामी है.
मतले के ठीक बाद के शेर में नाहक ही कॉमा लगा रखा है.
धीरे-धीरे ग़ज़ल ज़ुबान पर चढ़ती है. फिर ख़ूब चढ़ती है.
हार्दिक क बधाइयाँ..
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online