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"हिन्दी दिवस पर विशेष" हिन्दी ग़ज़ल

कितनी प्यारी ये मनभावन हिन्दी है
भारत की वैचारिक धड़कन हिन्दी है

जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ
मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है

रफ़ी, लता,मन्नाडे को तुम सुन लेना
इन सबकी भाषा और गायन हिन्दी है

भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन
सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है

पहले मैं अक्सर उर्दू में लिखता था
अब तो मेरा सारा लेखन हिन्दी है

मुझको तो लगती है ये भाषा अपनी
लेकिन कुछ लोगों की उलझन हिन्दी है

गर्व करे हर भारतवासी ये बोले
मेरे देश की भाषा पावन हिन्दी है

औरों की तो बात "समर" मैं क्या बोलूँ
मेरे माथे का तो चंदन हिन्दी है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on September 21, 2018 at 10:01pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by विनय कुमार on September 21, 2018 at 1:45pm

//जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ
मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है//, बहुत खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल दिवस विशेष पर आदरणीय मुहतरम जनाब समर कबीर साहब, दिली मुबारकवाद क़ुबूल करें.
"कानों में मिश्री सा रस घोलते हैं
हिंदी में अपनी जो सब बोलते हैं", सच अपनी हिंदी है ही ऐसी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 21, 2018 at 1:10pm

हिन्दी भाषा को जिस ऊँचाई के साथ स्वीकारा गया था, जिस आत्मीयता से प्रसारित कर आपसी बातचीत का माध्यम बनाया गया था, आज़ादी के बाद वही हिन्दी भाषा के तौर पर टुच्ची राजनीति और भाषायी ईर्ष्या का शिकार हो गयी। अन्यथा हिन्दी को एक सर्वमान्य और संपर्क भाषा के तौर पर आगे बढ़ाने के लिए अधिकतर अ-हिन्दी भाषी क्षेत्र के पुरोधाओं और अग्रसोची राजनेताओं ने ही पहल की थी। जैसे, उत्तर-पश्चिम के सुदूर भाग से खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खाँ, गुजरात से महात्मा गाँधी, तबके संयुक्त बंगाल से सुभाषचन्द्र बोस, दक्षिण से राज गोपालाचारी, आदि-आदि। हिन्दी भाषा के तौर पर यदि भाषायी कतरब्यौंत से परेशान हुई तो वह हुई हिन्दी प्रदेश के ही छोटी सोच के, वोट और तुष्टीकरण का खेल खेलने वाले नेताओं से। और इस कुचक्र के चलने में भरपूर सहयोग दिया स्वार्थ-लिप्सा में आकण्ठ डूबे तथाकथित साहित्यकारों ने। जो वैसे राजनीतिबाज़ों की उँगलियों पर नाचते हुए लाभ और लोभ की अपेक्षा के साथ भारत का भाषायी माहौल बिगाड़ने में लगे रहे।

आज हिन्दी-दिवस का मनाया जाना भले ही हमें रोमांचित करता है, लेकिन ऐसा कोई आयोजन या समारोह हिन्दी भाषा के प्रति संवेदनशील लोगों की दुखती रग़ को और ज़ोर से दबाता ही है। फिर भी, इस दिवस के उपलक्ष्य में आदरणीय समर साहब की प्रस्तुति हिन्दी-दिवस आयोजन के माध्यम से गतिमान किये जा रहे भाषायी प्रवाह को गति ही देती है। हालाँकि, प्रस्तुति में भाषा के प्रति भाव-भावनाएँ अतिशयोक्ति की सीमा को स्पर्श करती प्रतीत हो रही हैं। किन्तु, इसका भी अपना सामयिक महत्त्व है।

हिन्दी के गीत-पक्ष को भरपूर सम्मान देते हुए आदरणीय समर साहब ने मात्रिकता का सुगढ़ ढंग से निर्वहन किया है और ग़ज़ल के फेलुन-फेलुन की आवृति को ही अपनाया है।

यह अवश्य है, कि उत्साह में ओबीओ की परिपाटी के अनुसार समर भाई ग़ज़ल प्रस्तुति के साथ बहर की क्रमवार मात्रा आंकित नहीं कर पाये हैं। ख़ैर ऐसा एक बार मेरे साथ भी हो चुका है और समर भाई ने ही अगाह किया था। .. :-))) 

एक सामयिक किन्तु भावमय प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आतिशय बधाइयाँ. 

शुभातिशुभ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 21, 2018 at 12:30pm

उम्दा ग़ज़ल हुई है आदरणीय समर सर ..
.
रफ़ी, लता,मन्नाडे को तुम सुन लेना... इस मिसरे को कई लोग बेबह्र बता सकते हैं... ऐसे लोग मीर को भी ग़लत बताते हैं 
:-))))))

Comment by Ajay Tiwari on September 19, 2018 at 4:06pm

आदरणीय समर साहब, ये ग़ज़ल हिंदी के प्रति आपके लगाव का आईना है. आप जैसे लोगों से ही देश की साझा संस्कृति जीवित है. हार्दिक बधाई.

  

Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on September 18, 2018 at 4:51pm

"औरों की तो बात "समर" मैं क्या बोलूँ
मेरे माथे का तो चंदन हिन्दी "................वाह...आदरणीय समर कबीर साहब..हिन्दी के प्रति आपकी अपार  श्रद्धा को नमन....बहुत-बहुत बधाई....

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 18, 2018 at 8:54am

वाह आदरणीय क्या ही मनभावन ग़ज़ल कही है..."लेकिन कुछ लोगों की उलझन हिंदी है" सत्य का सटीक चित्रण।

Comment by Mohammed Arif on September 17, 2018 at 7:33pm

वाह! वाह! वाह! बहुत ख़ूब ! क्या ख़ूबसूरत तुहफ़ा दिया है हिंदी दिवस के पावन अवसर पर । पढ़कर मज़ा आ गया । यह आपका हिंदी के प्रति समर्पण को भी प्रदर्शित करता है । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।

Comment by रामबली गुप्ता on September 17, 2018 at 1:24pm

वाह वाह वाकई मजा आया पढ़कर आदरणीय समर भाई साहब। इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हृदय से बधाई स्वीकार करें। सादर

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 15, 2018 at 9:00pm

शुभ संध्या आदरणीय समीर कबीर जी, वाह वाह अद्भुत गजल कही आपने आनंद आ गया , बहुत बहुत बधाई आपको 

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