For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(221 2121 1221 212)

(बहर मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़)

अब के अजीब रंग में आया है जनवरी
ग़म सब पुराने साथ में लाया है जनवरी

बे-नूर सुब्ह-ओ-शाम हैं वीरां हैं रास्ते
तू भी किसी के ग़म का सताया है जनवरी

ना दिन में आफ़्ताब न महताब रात में
मत पूछिये कि कैसे निभाया है जनवरी

क़हर-ओ-सितम है ठंड का जारी उसी तरह
कोहरा-ओ-धुंद और भी लाया है जनवरी

शादाब ना शजर हों तो क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी
तुझको सितम ये किसने सिखाया है जनवरी

रिश्ता तमाम माह से इन्सां का है मगर
अपना लगे है मार्च पराया है जनवरी

बिछड़े थे हम जो आप से इस माह तभी से
दिल पर मुहीब दर्द का साया है जनवरी

सारी रुतें हसीन थी जब आप साथ थे
बिन आप के न फिर कभी भाया है जनवरी

तौबा ज़रूर बाक़ी महीने निभाइये
इस में न पी शराब तो ज़ाया है जनवरी

इक और साल ज़िन्दगी का हो गया शुरू
'शाहिद' ये फ़िक़्र में ही बिताया है जनवरी

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 506

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 11, 2020 at 4:29pm

आदरणीय मुसाफ़िर साहिब, आपका बेहद शुक्रिया। आपको भी आपकी रचना "तू भी निजाम नित नया मत अब कमाल कर" के 'फ़ीचर' के लिए चुने जाने पर ढेर सी बधाई।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 11, 2020 at 4:22pm

मोहतरम समर कबीर साहिब, आदाब। आपका शुक्रिया किन अलफ़ाज़ में करूँ समझ नहीं आता, जो आपने नाचीज़ की ग़ज़ल को पढ़ने, ग़लतियाँ बताने और इस्लाह करने के लिए अपना क़ीमती वक़्त दिया। आप मेरे लिए दरअसल ग़ज़ल की यूनिवर्सिटी हैं, क्यूंकि आपकी इसलाहों से (अपनी तथा और शायर हज़रात की) बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इस ग़ज़ल में की गई आपकी हर एक इस्लाह मेरे लिए एक पूरा सबक है, जिसे मैंने ध्यान से समझ लिया है। कृपया गुरुदक्षिणा के तौर पे मेरा हार्दिक आभार क़ुबूल करें।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 9, 2020 at 3:46pm

आ. भाई रवि भसीन जी, रचना के ' फीचर' के लिए चुने जाने पर हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on January 9, 2020 at 3:40pm

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब,

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

ना दिन में आफ़्ताब न महताब रात में'

उर्दू शाइरी में 'न' को 2 पर नहीं लिया जाता,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'दिन में है आफ़ताब न महताब रात में'

'कोहरा-ओ-धुंद और भी लाया है जनवरी'

इस मिसरे में 'कोहरा' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "कुहरा"22,दूसरी बात ये कि 'कुहरा' और 'धुंद' दोनों हिन्दी भाषा के शब्द हैं,इसलिए इसमें इज़ाफ़त नहीं लगेगी,देखियेगा ।

'शादाब ना शजर हों तो क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी
तुझको सितम ये किसने सिखाया है जनवरी'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,दूसरी बात ऊला में 'न' को 2 पर लेना उचित नहीं ।

'रिश्ता तमाम माह से इन्सां का है मगर'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,यूँ कर लें तो ये ऐब निकल जायेगा:-

'रिश्ता सभी महीनों से इंसाँ का है मगर'

'बिछड़े थे हम जो आप से इस माह तभी से'

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।

'तौबा ज़रूर बाक़ी महीने निभाइये
इस में न पी शराब तो ज़ाया है जनवरी'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,और सानी में क़ाफ़िया दोष भी है,सहीह शब्द है "ज़ाए" ।

'इक और साल ज़िन्दगी का हो गया शुरू
'शाहिद' ये फ़िक़्र में ही बिताया है जनवरी'

इस शैर के ऊला में 'सहीह शब्द है "शुरू'अ'"121 

और सानी मिसरे में व्याकरण दोष है,देखियेगा ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2020 at 6:22am

आद0 रवि भसीन साहब सादर अभिवादन। बढ़िया दमदार ग़ज़ल कही आपने, शैर दर शैर बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 9, 2020 at 5:25am

आ. भाई रवि भसीन 'शाहिद' जी, सादर अभिवादन।
बहुत ही उम्दा गजल हुई है । ढेरों बधाइयाँ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service