1222--1222--1222--1222
ख़ला की गोद में लाकर हमेशा छोड़ देते हैं
तसव्वुर के परिंदे साथ मेरा छोड़ देते हैं
अँधेरी रात हमने तो ब मुश्किल काट ली यारों
तुम्हारे वास्ते उजला सवेरा छोड़ देते हैं
ग़मों का साथ हमने तो निभाया है वहाँ तक भी
जहाँ अच्छे से अच्छे भी कलेजा छोड़ देते हैं
हमारा नाम लेकर अब न रुसवाई तेरी होगी
मुसफ़िर हम तो ठहरे शह्र तेरा छोड़ देते हैं
लड़कपन में जिन्हेँ चलना सिखाया थामकर उँगली
वही बच्चे बुढ़ापे में अकेला छोड़ देते हैं
फ़ना अरमान होते हैं तो होती है ग़ज़ल कोई
दिये बुझकर धुएँ की एक रेखा छोड़ देते हैं
बहुत ‘खुरशीद’ जी घूमे बहुत देखे तमाशे भी
चलो घर अब हुई अब साँझ मेला छोड़ देते हैं
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गुमनाम सर , आदरणीय हरिप्रकाश सर, आदरणीय विजयशंकर सर ,आप सभी के स्नेह का हृदय तल से आभार हूं |सादर
आदरणीय कबीर साहब ,आपकी ग़ज़ल पर मौजूदगी से दिल शाद हो गया |तहेदिल से शुक्रिया |
फ़ना अरमान होते हैं तो होती है ग़ज़ल कोई
दिये बुझकर धुएँ की एक रेखा छोड़ देते हैं// वाह बहुत उम्दा अशआर
आदरणीय खुर्शीद सर, बेहतरीन ग़ज़ल, शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए
मक्ता में अब दो बार आ गया है - चलो घर अब हुई अब साँझ मेला छोड़ देते हैं
आदरणीय ख़ुरशीद जी, शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई !
ग़मों का साथ हमने तो निभाया है वहाँ तक भी
जहाँ अच्छे से अच्छे भी कलेजा छोड़ देते हैं........सुन्दर
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