For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - छोड़ देते हैं

1222--1222--1222--1222

ख़ला की गोद में लाकर हमेशा छोड़ देते हैं

तसव्वुर के परिंदे साथ मेरा छोड़ देते हैं

 

अँधेरी रात हमने तो ब मुश्किल काट ली यारों

तुम्हारे वास्ते उजला सवेरा छोड़ देते हैं

 

ग़मों का साथ हमने तो निभाया है वहाँ तक भी

जहाँ अच्छे से अच्छे भी कलेजा छोड़ देते हैं

 

हमारा नाम लेकर अब न रुसवाई तेरी होगी

मुसफ़िर हम तो ठहरे शह्र तेरा छोड़ देते हैं

 

लड़कपन में जिन्हेँ चलना सिखाया थामकर उँगली

वही बच्चे बुढ़ापे में अकेला छोड़ देते हैं

 

फ़ना अरमान होते हैं तो होती है ग़ज़ल कोई

दिये बुझकर धुएँ की एक रेखा छोड़ देते हैं

 

बहुत ‘खुरशीद’ जी घूमे बहुत देखे तमाशे भी

चलो घर अब हुई अब साँझ मेला छोड़ देते हैं 

.

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 772

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:16am

आदरणीय गुमनाम सर , आदरणीय हरिप्रकाश सर, आदरणीय विजयशंकर सर ,आप सभी के स्नेह का हृदय तल से आभार हूं |सादर  

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:14am

आदरणीय कबीर साहब ,आपकी ग़ज़ल पर मौजूदगी से दिल शाद हो गया |तहेदिल से शुक्रिया |

Comment by Poonam Matia on February 3, 2015 at 2:39am

फ़ना अरमान होते हैं तो होती है ग़ज़ल कोई

दिये बुझकर धुएँ की एक रेखा छोड़ देते हैं// वाह बहुत उम्दा अशआर 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 2, 2015 at 8:06pm

आदरणीय खुर्शीद सर, बेहतरीन ग़ज़ल, शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए 

मक्ता में अब दो बार आ गया है - चलो घर अब हुई अब साँझ मेला छोड़ देते हैं 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 2, 2015 at 7:35pm
अँधेरी रात हमने तो ब मुश्किल काट ली यारों
तुम्हारे वास्ते उजला सवेरा छोड़ देते हैं
बहुत सुन्दर ग़ज़ल बानी है आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , बधाई, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 7:15pm

आदरणीय ख़ुरशीद जी, शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई !

ग़मों का साथ हमने तो निभाया है वहाँ तक भी

जहाँ अच्छे से अच्छे भी कलेजा छोड़ देते हैं........सुन्दर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 2, 2015 at 6:34pm
हमारा नाम लेकर अब न रुसवाई तेरी होगी

मुसफ़िर हम तो ठहरे शह्र तेरा छोड़ देते हैं



लड़कपन में जिन्हेँ चलना सिखाया थामकर उँगली

वही बच्चे बुढ़ापे में अकेला छोड़ देते हैं

वाह सर जी खूब ग़ज़ल हुई है बधाई
Comment by Samar kabeer on February 2, 2015 at 4:36pm
भाई ख़ुरशीद जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़बूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service