आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये
फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये
गोद में वादी लिए हो कोई खरगोश ज्यूं
घाटियों में आप इन बादलों को देखिये
रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर
आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये
दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे
दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये
रहजनों से रास्ता पूछते हैं बारहा
मंज़िलों से बेख़बर रहबरों को देखिये
आपके सर पर चलो एक छत है तो सही
जी रहे हैं किस तरह बेघरों को देखिये
आजकल ‘खुरशीद’ भी बादलों में जा छुपा
तीरगी है हर तरफ़ गर्दिशों को देखिये
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय खुर्शीदभाई, आपकी ग़ज़ल सीधी सादी ज़ुबान में बहुत कुछ साझा करती है. इस ग़ज़ल का मतला भी उसी मेयार का है.
जबकि गोद में वादी लिए .. एक खूबसूरत दृश्य प्रस्तुत कर रहा है.
इस ग़ज़ल का मक्ता भी मुझे पसंद आया.
इस उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
कल्पना की ऊँची उड़ान .....रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर..आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये.......शानदार रचना ,आदरणीय खुरशीद जी आपको हार्दिक बधाई ।
खुर्शीद भाई
बहुत उम्दा गजल कही आपने i कई अशआर दिल में उतरते चले गए i आपको बधाई i
खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन | |
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