For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्लस्टिक की श्रद्धा (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“अरे ये क्या, प्लास्टिक का हार ?” काम से वापिस आए पति के थैले में से खाने का डिब्बा निकालते हुए उसने पूछा
“हां, मां-बाबू जी की फोटो पर रोज फूलों का हार चढ़ाने की बजाए ये हार पहना दो, मुरझाएगा भी नहीं और मैला होने पर धुल भी जाएगा।” उसने एक ही चारपाई पर फटे कंबल के सहारे ठंड से संघर्ष करते हुए अपने तीनों बच्चों की ओर देखकर कहा

Views: 761

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 8, 2014 at 3:48pm

एक तरफ श्रद्धा है और एक ओर महँगाई.... बीच की राह दिखाती सार्थक लघुकथा 

हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 4:03am

श्रद्धा के प्रति कोई अहमन्यता हीं किन्तु जीना तो इसी जग में है.. इस भावदशा को जीती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई रवि भाई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2014 at 9:25am

आ0 भाई रवि प्रकाश जी लधुकथा बेहतरीन है । गरीब की विवशता को इस लधुकथा के माध्यम से जिस प्रकार आपने सफलतापूर्वक दर्शाया है वह अद्वितीय है । हार्दिक बधाई कबूलें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 1, 2014 at 9:08am

इंसान की मजबूरी कभी कभी उसके जज़्बात पर भारी पड़ जाती है। आदरणीय रवि प्रभाकर सर इस लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई। 

Comment by बृजेश नीरज on July 1, 2014 at 7:29am
अच्छी लघुकथा। आपको बधाई।
Comment by अरुन 'अनन्त' on June 30, 2014 at 5:34pm

आदरणीय रवि जी वाह लघुकथा की प्रस्तुति देखते ही बनती है केवल तीन पंक्तियों में कितना कुछ कह दिया है. एक तीर से दो निशाने लगाये हैं आपने भाव पक्ष बहुत ही गंभीर एवं असरदार है. आपको दिल से बहुत बहुत बधाई प्रेषित है स्वीकार कीजिये.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 29, 2014 at 7:51pm

श्रद्धा तो है! गरीबी में भी यह अहसास कम नहीं .... वरना आजकल तो …… 

Comment by Maheshwari Kaneri on June 29, 2014 at 12:07pm

पिता के प्यार पर महंगाई की मार... बहुत ही मार्मिक भाव दर्शाए है..आदरणीय रवि जी आप ने..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 9:27am

कुछ ही शब्दों में आपका  बहुत सजीव सा चित्रण कर देना, नमन आपकी लेखनी को आदरणीय रवि जी

Comment by Shubhranshu Pandey on June 28, 2014 at 8:59pm

दो भाव एक साथ कथा में पिरोया है. आदरणीय

दोनो भाव उभर कर सामने आ रहे है...पिता के प्यार पर महंगाई की मार....

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service