For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अचानक स्कूटर खराब हो जाने के कारण वापिस लौटने में काफी देर हो चुकी थी अत: वह काफी तेज़ी से स्कूटर चला रहा थाI एक तो अँधेरा ऊपर से आतंकवादियों का डरI इस सुनसान रास्ते पर बहुत से निर्दोष लोगों की हत्याएँ हो चुकी थींI वह अपने अंदर के भय को पीछे बैठी पत्नी से छुपाने का प्रयास तो कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी स्कूटर तेज़ रफ़्तार से सब कुछ समझ चुकी थीI स्कूटर नहर की तरफ मुड़ा ही था कि अचानक हाथों में बंदूकें पकडे पाँच सात नकाबपोश साए सड़क के बीचों बीच प्रकट हो गएI

“रुक जा ओये!” एक लम्बी चौड़ी कद काठी वाले ने बंदूक तानते हुए कहा, मौत को सामने देखते हुए उसे स्कूटर रोकना पड़ाI
“क्या नाम है बे तेरा?” बन्दूक की नली उसके गले से सटाते हुए एक आवाज़ कौंधीI  
“जी... मैं...भोला..” उसकी आवाज़ गले में ही अटक गईI
तभी पीछे से एक नाटे क़द के बंदूकधारी ने गौर से उसकी तरफ देखते हुए पूछा:  
“तेरा घर कपड़ा मार्कीट के पीछे वाली गली में है न?”
“जी हाँ...” पत्नी का हाथ कसकर पकड़ते हुए वह बस इतना ही कह सकाI
“बातचीत छोडो और उड़ा दो इन दोनों कोI” एक और आवाज़ गूँजीI
“जाने दो इनको सरदार!” नाटे क़द वाले ने लगभग बिनती करते हुए सरदार से कहाI  
“अबे इन दुश्मनों से तुम्हें इनसे इतनी हमदर्दी क्यों हो रही है?” सरदार ने आश्चर्य भरे स्वर में पूछाI
“भाई जी! ये जो औरत है न, मेरा बापू इसकी माँ को अपनी बहन मानता थाI” सरदार के कान में फुसफुसताते हुए उसने कहाI “और मैं उसे बुआ जी कहता थाI”  
सरदार पति-पत्नी की तरफ मुड़ा और कड़कते हुए स्वर में बोला:
“भाग जा साले अपनी जनानी को लेकर, और पीछे मुड़कर मत देखना वर्ना ठोक दूँगा दोनों कोI”
उसने साथियों को उँगली से चलने का इशारा किया और नाटे कद वाले की तरफ देखकर भुनभुनाया:
“साली यही रिश्तेदारियों हमे कामयाब नहीं होने देतींI”
.
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 733

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2017 at 1:09pm

पंच लाइन कमाल की हुई एक चित्र से आँखों के समक्ष उभर जाता है आतंकवाद का भयानक चेहरा दिखाती हुई शानदार लघु कथा बहुत बहुत बधाई आद० योगराज जी 

Comment by Nita Kasar on December 28, 2016 at 8:18pm
तीक्ष्ण शीर्षक के जरिये कथा सोचने को विवश करती है एेसे लोगों के भीतर संवेदनशील दिल होता है जो उनकी आत्मा को मरने नही देता ।आप की हर कथा अच्छा लिखने की प्रेरणा देती है ।बधाई आपको आद०योगराज प्रभाकर जी ।
Comment by Mahendra Kumar on December 28, 2016 at 3:01am
आदरणीय योगराज सर, कमाल की लघुकथा लिखी है आपने। इसकी दो चीजें मुझे पसन्द आयीं, एक तो शीर्षक का चयन जिसे नज़रअंदाज़ करने पर लघुकथा को पूरी तरह समझ पाना संभव नहीं है और दूसरी ऐसे पात्रों को कथा के केन्द्र में रखना जिन्हें सामान्यतः पूरी तरह नकारात्मक समझा जाता है। इस प्रस्तुति पर आपको मेरी तरफ से ढेरों बधाई। सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on December 27, 2016 at 10:32pm
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी प्रणाम, मै तो एकदम मंच पर नया हूँ, और आप सबसे सीखने की कोशिश में हूँ, आप की लघुकथा पढ़ी, फिर पढ़ी,फिर भी मन नहीं भरा, वाकई बेहतरीन कथानक और कसे हुए उम्दा भाव, अंत तो लाजबाब, मेरी कोटिश बधाईयाँ आपको।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2016 at 9:38pm

आ० अनुज , आपसे ऐसी ही उम्मीद हम सभी रखते हैं . इतना कसा हुआ कथानक , स्वय लघु कथा कैसे लिखी जाये इसका प्रशिक्षण सा देती है . “साली यही रिश्तेदारियों हमे कामयाब नहीं होने देतींI” कमाल की पञ्च लाइन  है . इस बाकमाल लघु कथा के लियी भूरि भूरि बधाई .

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 27, 2016 at 5:40pm
शीर्षक सार्थक करती बेहतरीन लघुकथा पढ़कर हम इन बातों को सीख सके हैं-
१- कसावट के साथ संदेश सम्प्रेषित करती लघुकथा में कहे और अनकहे में क्या संबंध होता है और पाठक सहजता से संदेश ग्रहण करते हुए अनकहे पर चिंतन करने लगता है।
2- अनकहे का भी कितना महत्व है!
3- कथा का समापन करते हुए बेहतरीन पंचपंक्ति द्वारा किस तरह शीर्षक सार्थक व सटीक पुष्ट होता है।
४- शीर्षक कितनी सूझबूझ से सृजित किया जाता है।
सादर हार्दिक बधाई और आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आदरणीय प्रधान संपादक महोदय श्री योगराज प्रभाकर सर जी।
Comment by Samar kabeer on December 27, 2016 at 5:25pm
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,उम्दा कथानक,बहतरीन संवाद,ख़ूबसूरत अंदाज़-ए-बयाँ, लाजवाब पंचलाइन,आपकी बहतरीन लघुकथाओं में एक और इज़ाफ़ा हुआ,इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से देरों दाद के साथ देरों मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2016 at 3:15pm
कथा बेहद अच्छी हुई है आदरणीय सर। बधाई स्वीकारें |
Comment by TEJ VEER SINGH on December 27, 2016 at 2:16pm

हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी। बहुत तीखी बात कह दी, इस लघुकथा के माध्यम से।बेहतरीन प्रस्तुति।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 27, 2016 at 1:56pm

आदरणीय योगराज सर, अपने शीर्षक को सार्थक करती बहुत ही प्रभावोत्पादक लघुकथा कही है आपने. लघुकथा की पंचलाइन पढने के बाद फिर शीर्षक पर ध्यान जाता है और पाठक वाह कह उठता है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service