पुरसुकूँ, मुझको तो कोई सांस दिलाई जाये,
आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाये।
उन्हें सुनने का सलीका, न समझने का हुनर,
छोड़ो, क्या उनको कोई बात बताई जाये।
जुर्म आयद ही नहीं मुफ़्त सज़ायें कब तक,
के ज़मानत, मज़लूम की मंज़ूर कराई जाये।
ये गिरया, मेरी आँखों से बार-बार गिरें,
है क़ीमते अश्क़ बहुत, ये धार बचाई जाये।
एक उफ नहीं मेरी कभी दुनिया ने सुनी,
सदाये दिल, क्यों सरे बाज़ार सुनाई जाये।
तेरी याद के सहरा में भटकता है ये दिल,
‘इमरान’, दरे यार से इक धार चुराई जाये।
(३)
अब हवा, प्यार मुहब्बत ही बहाई जाए,मनजाये ख़ुदा, और न हाथों से ख़ुदाई जाए,
आओ मिलजुलके कोई बात बनाई जाए,
मुजस्सिम हूँ गुनाहों का, अब ख़ुदा ख़ैर करे,
कैसे आमाल की सूरत ये दिखाई जाए.
जाहिल ही रहा, कोई नहीं तबलीग़ सुनी,
न कोई बात, 'नकीरो मुनकिर' मुझसे बताई जाए।
ताब सरापा तो रहा, दिल की स्याही न गई।
दगाबाज़ी की ये कालिख़, रो रो के छुटाई जाए.
'इमरान' क़ायम है अभी तो, दौलते हयात,
पेशानी, तौबा के मुसल्ले पे झुकाई जाए।
और किसी बात पे रिश्वत भी न खाई जाए |
(२)
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//श्री रवि कुमार "गुरु" जी//
(२)
आओ मुर्दों को जरा राह दिखाई जाए
आज कंधों पे कोई लाश उठाई जाए
चाँद के दिल में जरा आग लगाई जाए
आओ सूरज से कोई रात बचाई जाए
आज फिर नाज़ हो आया है ख़ुदी पे मुझको
आज मयखाने में फिर रात बिताई जाए
खोजते खोजते मिल जाए सुहाना बचपन
आज बहनों की कोई चीज छुपाई जाए
आज के दिन सभी हारे जो लड़े हैं मुझसे
आज खुद से भी जरा आँख मिलाई जाए
ढूँढने के लिए भगवान तो निकलें बाहर
आओ मंदिर से कोई चीज चुराई जाए
सात रंगों से ही बनती है रौशनी ‘सज्जन’
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए
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तल्ख़ तस्वीर हकीकत की दिखायी जाए.
जहर आलूदा साँसों को जो जीवन दे दे,
फिर चमन में वही बयार चलाई जाए.........
जहर नफरत का दिलो में जो बसा है यारों,
मिलो, की मिल के करी उसकी सफाई जाए........
मीलों गहरी हुई जो नफरत से,
है वक्त वो दरार अब मिटाई जाए .........
जहालत ओ जलालत ने किया सब शमशाँ ,
अमन ओ ज्ञान की गंगा तो भाई जाए .....
काश आये जो हर माह ईद और दीवाली,
जा दोस्तों के घर खीर तो खाई जाये .........
जो दे चार सू खुशियाँ, वो सौगात तो लाइ जाए.
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,.........
(२)
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होती है मुश्किल जब बिगड़ी बात बनाई जाए
लोगों को मुश्किल से दुनिया में समझाई जाए l
कर देते हैं जीना दूभर हैवानों के गुट मिलकर
इंसानों की भी इक दुनिया अलग बसाई जाए l
बाँट लिया सबने खुद को अपने-अपने मजहब में
लहू का रंग एक है तो एक ही जाति बनाई जाए l
है गुलाम देश की जनता अब अपनों के हाथों में
तोड़ो उन हाथों को या फिर हथकड़ी लगाई जाए l
बदलो माली गुलशन के ना जानें करना रखवाली
लहू-लुहान हो रहे गुल कली-कली मुरझाई जाए l
सिसक रही भूख वहशतें करतीं रक्स गरीबी की
कैसे खत्म हो मंहगाई कोई तरकीब सुझाई जाए l
ओछी राजनीति की काली करतूतें कर दें छूमंतर
किसी जंतर-मंतर से कोई ऐसी बिधा बनाई जाए l
बुझती है जिंदगी जिनकी दुनिया से धोखे खाकर
उनकी आस के दीपक में बाती नई जलाई जाए l
हर कुर्बत से उठा भरोसा गाँठ पड़ीं जहाँ बरसों से
उम्मीदों के संग ''शन्नो'' गाँठ-गाँठ सुलझाई जाए l
(२)
किसी मकतल पे ना लाश बिछाई जाए
आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए l
सबकी गज़लों को पढ़के हम मजा लेते हैं
आज अपनी भी कलम कुछ चलाई जाए l
मुश्किल से बनते हैं घर तिनका-तिनका
तो किसी बस्ती में ना आग लगाई जाए l
नजर ना लगाओ किसी हस्ती वाले को
अपनी भी किस्मत जरा आजमाई जाए l
न सही कोई महल और ठाठ-बांठ उसके
खंडहर में ही अपनी दुनिया बसाई जाए l
वेवफाई को भी हम बुतपरस्ती कहते हैं
दिल में किसी की मूरत ना बसाई जाए l
अंग्रेजी की अदा पे फिदा हुये लोग सभी
अब अपनी जुबां हर जुबां पे सजाई जाए l
टीवी सीरियल पे है घर-घर की कहानी
आज अपने घर की कहानी सुनाई जाए l
बच्चे पढ़ते हैं कॉमिक और कार्टून बहुत
महाभारत व गीता भी तो समझाई जाए l
जो लव स्टोरी सुन-सुन के पागल होते हैं
किसी चुड़ैल की कहानी उन्हें सुनाई जाए l
सबकी चुपचाप सुनी सारे गम अपने किये
अब जो भी सुनाये उसे आँख दिखाई जाए l
बोरियत होती है घर में काम करते-करते
अब चल ''शन्नो'' कहीं गपशप लड़ाई जाए l
(३)
इंसान तो गलतियों का एक पुतला होता है
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए l
गर्मी के मौसम में ना बिजली ना पानी
चलो दरिया के पानी में डुबकी लगाई जाए l
आज चाँदनी रूठ कर छिप गई है कहीं पर
चलो चाँद से कहकर वो फिर से बुलाई जाए l
शादी में हो रहा है लड़कियों का मोल-भाव
दहेज की रस्म ''शन्नो''जड़ से हटाई जाए l
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//श्री अम्बरीष श्रीवास्तव जी//
आज नफरत की ये दीवार गिराई जाए.
आओ मिल-जुल के कोई बात बनाई जाये.
देखो दुनिया में ये तकदीर अहम है यारों,
छोड़ इसको यहीं तदवीर बनाई जाए.
वो भी अपना न लें अन्याय के आगे अनशन,
सारे बच्चों को यही बात सिखाई जाये.
सोंच जो नाज़ से पाले हैं सभी नें बच्चे,
आस उनसे न किसी रोज लगाई जाये.
यार झगड़ो न कभी जाति पंथ मज़हब पर,
तुम्हारे दिल में जली आग बुझाई जाये.
मुल्क में मेल अमन चैन प्यार कायम कर,
आज दुनिया को नयी राह दिखाई जाये.
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//श्री गणेश जी बाग़ी //
विपक्ष :-
जुल्मी सरकार तो कुछ करके गिराई जाए,
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,
पडोसी मुल्क :-
है अमन चैन बहुत भारत की धरती पर,
जात औ मजहब की आग लगाईं जाए.
वकील :-
फैसला हो सकता जल्द अदालत मे अब,
केस मे फांस नियम कानून की फसाई जाए,
मास्टर :-
बहुत ही जहीन बच्चे है इस टोले के सब,
अंक कम देकर कोचिंग भी कराई जाए,
पुलिस :-
है दुरुस्त इस गाड़ी के भी सारे कागज़
है नई वाहन मिठाई ही खाई जाए,
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//श्री आलोक सीतापुरी जी//
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाये,
बज्म उजड़ी हुई है फिर से सजाई जाये.
दौरे हाज़िर की कहानी के खुदा खैर करे,
दास्ताँ अपने बुजुर्गों की सुनाई जाये.
मुफ्त तालीम का हक मिल रहा बच्चों को मगर,
मुफलिसी कहती है मजदूरी सिखाई जाये.
पीठ पीछे की बुराई तो चुगल करते हैं,
बात जो हो वो मेरे मुंह पे बतायी जाये.
आपका हँसता हुआ चेहरा बहुत खूब मगर,
जो पशे-पर्दा है सूरत वो दिखाई जाये.
हिर्श की आग जमाने से मिटे ना मुमकिन,
चाहे वो सात समंदर से बुझाई जाये.
भाई, भाई से जुदा कर दिया इसने आलोक,
आओ नफरत की ये दीवार गिराई जाये..
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आपका हार्दिक अभिनन्दन है शान्नो जी!
मेरी गजलें आपको पसंद आयीं आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
उर्दू मैं तो हमारा हाथ भी तंग है, ज़रा ज़रा देर मैं dictionary उठानी पड़ जाती है, फिर भी उर्दू के मुश्किल अलफ़ाज़ के मायने कोशिश करूँगा के अपनी ग़ज़ल मैं शामिल कर दूँ.
ओ बी ओ द्वारा १२वें लाइव तरही मुशायरे के सफल आयोजन के लिए हार्दिक बधाई !
सम्मिलित सभी ग़ज़लें एक साथ पा’कर न पढ़ी गई ग़ज़लें तथा अन्य रचनाएं पढ़ने का सुअवसर मिला ।
आभार !
इन निम्नोल्लेखित अश्आर के लिए गज़लकारों को मुबारकबाद !
इन्तेखाबात की ताक़त तो अभी हाथ में है,
आओ सच्चाई पे ही छाप लगाई जाए इमरान खान जी
# ज़रूर वोट देते वक़्त इस भाव को याद रखना ज़रूरी है … वरना और भी बुरे हालात के लिए तैयर रहें ।
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आज करते हैं चलो झूठ की फसलों को दफन,
आओ सच्चाई की बस पौध लगाई जाए इमरान खान जी
# भाई मेरे , बुरा न मानें , क़्वांटिटी से अधिक ध्यान क्वालिटी पर देते तो आप-हम दोनों का समय सार्थक होता …
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जो मदरसे में हैं तलबा, वो पढ़ें संसकिरित
और उर्दू ’शिशु-मंदिर’ में पढ़ाई जाए मोईन शम्सी जी
# पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !
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एक अन्ना से ये सूरत न बदलने वाली ,
हर गली में वही हुंकार सुनाई जाए अरुण कुमार पाण्डेय "अभिनव" जी
देश गोरों की तरह चर रहे काले घड़रोज ,
अब तो हर खेत में बन्दूक उगाई जाए अरुण कुमार पाण्डेय "अभिनव" जी
# ओह ! ख़ूनी क्रांति ? … और घड़रोज माने ??
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आज फिर नाज़ हो आया है ख़ुदी पे मुझको
आज मयखाने में फिर रात बिताई जाए धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
# ख़ूद के किसी कार्य/उपलब्धि से इतने ख़ुश हैं तो हुज़ूर , रात मयखाने में बिताने की बजाए हम जैसे मित्रों के लिए पार्टी रखने का विकल्प बेहतर नहीं होता ? … हा हा
****************
ले चुके दानी चराग़ों की ज़मानत जब हम,
तो हवाओं की अदालत को ढहाई जाये डॉ संजय दानी जी
# बहुत ख़ूब ! लेकिन … कारक लगाने से अदालत को ढहाया जाए शुद्ध रूप होता है ।
सरजी , मिसरा हल्की–सी तब्दीली मांगता है ‘तो हवाओं की अदालत भी / ये ढहाई जाये’
****************
देश के धन को विदेशों में छिपाना है कला.
ये कलाकारी भी अब सीखी-सिखाई जाए.. आचार्य संजीव "सलिल" जी
# हाय ! अब कला के ये भी रूप :(
दान कन्या का किया, क्यों तुम्हें वरदान मिले?
रस्म वर-दान की क्यों, अब न चलाई जाए?? आचार्य संजीव "सलिल" जी
# हा हऽऽ अच्छा सुझाव है …
ज़िंदगी जीना है जिनको, वही साथी चुन लें.
माँग दे’ मांग न बेटी की भराई जाए.. आचार्य संजीव "सलिल" जी
# …और स्पष्ट हो जाता ‘मांग पर मांग न बेटी की भराई जाए..’
सच है , किसी की मांग-पूर्ति करके बेटी की मांग भराना उचित नहीं ।
मंत्र मस्जिद में, शिवालय में अजानें गूंजें.
ये रवायत नयी, हर सिम्त चलायी जाए.. आचार्य संजीव "सलिल" जी
# वाह !
मुझे मेरे एक गीत का समापन चरण याद हो आया …
मुलाहिजा फ़रमाएं -
पाक-कलाम पढ़ेगा मोमिन , कभी शिवाले में जा'कर !
कभी बिरहमन अल्लाह के घर भजन-वाणियां गाएगा !
दूर किसी कोने में उस दिन
शैतां जा' छुप जाएगा !
इसी ज़मीं का ज़र्रा-ज़र्रा तब जन्नत बन जाएगा !
…तब जन्नत बन जाएगा !!
बहुत चर्चित गीत है मेरा …
हिंदू कहां जाएगा प्यारे ! कहां मुसलमां जाएगा ?
इस मिट्टी में जनमा जो , आख़िर वो यहीं समाएगा !
****************
देखो दुनिया में ये तकदीर अहम है यारों,
छोड़ इसको यहीं तदवीर बनाई जाए अम्बरीष श्रीवास्तव जी
# बहुत ख़ूब !
****************
जुल्मी सरकार तो कुछ करके गिराई जाए,
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए गणेश जी बाग़ी
# कीजिए न कुछ सर ! आप-हम महंगी दाल खाने के अभ्यस्त हो गए तो फिर से पेट्रोल – गैस की क़ीमतें चढ़ा दी …
बहुत अमीर हो गए न हम भारत के आम नागरिक ? और सहनशील भी ?
आख़िरी निवाला छिनने की नौबत आ गई … लेकिन हम सब ख़ामोश हैं …
****************
आपका हंसता हुआ चेहरा बहुत खूब मगर,
जो पसे पर्दा है सूरत वो दिखाई जाये आलोक सीतापुरी जी
# क्या बात है !
हिर्स की आग जमाने से मिटे ना मुमकिन,
चाहे वो सात समंदर से बुझाई जाये आलोक सीतापुरी जी
# बहुत अच्छे शे’र दिए हैं … पूरी ग़ज़ल रवां-दवां है … मुबारकबाद !
****************
दूरियों से तो कोई बात न बन पायेगी !
आओ मिल जुल के कोई बात बनायीं जाए !! हिलाल अहमद हिलाल जी
# अच्छी गिरह लगाई है … बहुत ख़ूब !
इश्क का दरिया हमे पार जो करना है हिलाल
कश्तिये इश्क सलीके से चलायी जाए !! हिलाल अहमद हिलाल जी
# …और इश्क़ का दरिया पार करने के लिए तो सबके लिए यही रास्ता है …
मुबारकबाद !
****************
अब शिकायत है , कि
योगराज प्रभाकर जी , राणा प्रताप सिंह जी , यहां , OBO पर ग़ज़ल की कक्षा चलाने वाले तिलकराज कपूर जी , और मुझे ओ बी ओ पर आमंत्रित करके लाने वाले वीनस केशरी जी की ग़ज़लें क्यों नहीं ???
@@
ओ बी ओ से जुड़ी निम्नांकित हस्तियों को गज़ल भेजने के लिए आप विशेष निवेदन किया करें ,
मैं दावे से कहता हूं कि इनकी ग़ज़लें आने से यहां के बहुत सारे उत्साही प्रतिभागियों को प्रेरणा मिलेगी …
- daanish
- mridula arun
ये सब O B O से पहले ही जुड़े भी हैं …
बात लंबी हो गई है … अब विदा लूं तो अच्छा रहेगा ।
शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
राजेंद्र जी, मेरी तवील तुकबंदी से दो अशआर पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया,
जब मुशायरा चल रहा था तो जोश ओ खरोश गजलें पोस्ट करता गया, अब मुझे भी लगता है के मुझे
quality भी maintain करनी चाहिए थी, बहुत शुक्रिया इस तरफ ध्यान दिलाने के लिए, आगे से ख्याल रखूंगा इंशा अल्लाह.
आदरणीय श्री योगराज जी सारी ग़ज़लों को एक स्थान पर देकर आपने स्तुत्य कार्य किया है | इस बार अधिकाँश ग़ज़लें बहुत प्रशंसनीय है | रचनाकारों को बधाई !
तरही के पिछले कुछ अंकों से यह बात देखने में आ रही हैं कि अधिकतर गज़लें अब काफिया रदीफ के स्तर पर सही होती हैं, बहुत अच्छा लगता है, पहली की अपेक्षा लोग लय का पालन भी करते हैं, एक संस्कार अपने आप विकसित होता चला जा रहा है, निरंतर कुछ सीखने को मिल रहा है जिससे हर कोई लाभान्वित हो रहा है, और कहन में एक ठहराव आता जा रहा है,
सभी रचनाकार बधाई के पात्र हैं,
राणा जी और गणेश जी सहित ओ बी ओ एडमिन टीम को विशेष बधाई
हमारा ओ बी ओ परिवार इसी तरह साहित्य की सेवा करता रहे इसी कामना के साथ
- आपका वीनस केशरी
संकलन, मुशायरे किन किन राहों से गुजरे है बता रहा है.....
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
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महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |