आदरणीय साहित्य प्रेमियों
सादर वन्दे,
समय कितनी तेज़ी से गुज़र जाता है - पता ही नहीं चलता. अब देखिए न, देखते ही देखते "ओबीओ लाईव महा उत्सव" के १४ आयोजन मुकम्मिल भी हो चुके और १५ वे अंक के आयोजन का समय भी आ पहुंचा. पिछले १४ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों में १४ विभिन्न विषयों बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में ओपन बुक्स ऑनलाइन पेश कर रहा है:
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १५
"तलाश" महज़ एक शब्द ही नहीं अपितु एक विस्तृत विषय भी है और एक विचारधारा भी. आज के में कौन ऐसा होगा जो किसी न किसी चीज़ की तलाश में न हो ? कोई सुख की तलाश में है तो कोई शांति की, कोई सफलता की तलाश में तो कोई सुकून की. कोई रौनक की तलाश में है तो कोई एकांत की, अंधेरों को रौशनी की तलाश है तो तारों को चाँद की. कोई पाँव तलाश कर रहा है तो कोई जूते. यानि "तलाश" शब्द का दायरा इतना वसीह और बहु-आयामी है कि एक रचनाकार इसे हर रंग और हर ढंग से इसको परिभाषित कर सकता है. तो आईए मित्रों ! वर्ष २०१२ के पहले "ओबीओ लाईव महा उत्सव" अंक-*१५ में, उठाइए अपनी कलम और रच डालिये कोई शाहकार रचना. मित्रो, बात बेशक छोटी कहें मगर वो बात गंभीर घाव करने में सक्षम हो तो आनंद आ जाए.
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महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है:
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अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १५ में सदस्यगण आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो रविवार ८ जनवरी लगते ही खोल दिया जायेगा )
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"महा उत्सव" के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)
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bahut bahut shukriya aadarniya siya sahiba
लाजवाब गज़ल .....हो सके तो अमन का मंज़र तलाश कर ,आज के हालात में इसी के ज़रूरत है |.. चैनो सुकून अपने ही घर में तलाश कर ...सुकून का दूसरा नाम घर है |
bahut bahut shukriya mohini ji...
ye kuch sher mere apne tajrube se likhe gaye hai...aapka ek baar phir se aaabhari hu
हिलाल अहमद साहिब, एक बार फिर से आपकी तीखे तेवर वाली ग़ज़ल पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है इस मंच पर. हर शेर में एक जज्बा है...ये शेर तो बहुत ही गहरी बात कह गया है
//कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दू !
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर //
हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये
bahut bahut shukriya dharam sahab
ab to aap sab se mulaqatein kerne ko ji chahta hai..
kabhi mulaqat kerne ka sharaf dejiye
खामोश हो गया हूँ समंदर की तरह मै !
है मुज़्तरिब जो करना तो कंकर तलाश कर !!
कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दू !
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर
परदेस में सुकून किसे मिलता है "हिलाल"
चैनो सुकून अपने ही घर पर तलाश कर !!
इन शेरों ने तो हमें ही समुंदर की तरह खामोश कर दिया. हिलाल जी दिली दाद कबूल फरमाएं.वाह !!!!
//चाकू न सैफो बरछी न खन्जर तलाश कर !
जो हो सके तो अमन का मन्ज़र तलाश कर !!//
लाजवाब मतला.. वाह.
//जिस पर जबीं झुकी थी वो दर तलाश कर !
जिस घर को तूने छोड़ा है वो घर तलाश कर !!//
मतला-ए-सानी भी कमाल का कहा है - बहुत खूब.
//खामोश हो गया हूँ समंदर की तरह मै !
है मुज़्तरिब जो करना तो कंकर तलाश कर !!//
वाह वाह वाह - क्या कहने हैं इस शेअर के, जवाब नहीं.
//कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दू !
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर //
हासिल-ए-कलाम शेअर. सीने में हाथ डालकर दिल निकाल कर ले गया - वाह वाह वाह वाह वाह !!!
//परदेस में सुकून किसे मिलता है "हिलाल"
चैनो सुकून अपने ही घर पर तलाश कर !!//
गज़ब का मक्ता. इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद हाज़िर है, क़ुबूल फरमाएं.
बहुत अच्छी ग़ज़ल है हिलाल साहब
चाक़ू न सैफो बरछी न खंजर तलाश कर
जो हो सके तो अमन का मंजर तलाश कर
कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दू !
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर
बहुत उम्दा हिलाल भाई... उम्दा ग़ज़ल कही आपने....
दिली दाद कुबूल करें.
खामोश हो गया हूँ समंदर की तरह मै !
है मुज़्तरिब जो करना तो कंकर तलाश कर !!
//जिस पर जबीं झुकी थी वो दर तलाश कर !
जिस घर को तूने छोड़ा है वो घर तलाश कर !!
खामोश हो गया हूँ समंदर की तरह मै !
है मुज़्तरिब जो करना तो कंकर तलाश कर !!
कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दू !
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर //
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है हिलाल भाई ! उपरोक्त अशआर ख़ास तौर पर बहुत पसंद आये !
जो हो सके तो अमन का मन्ज़र तलाश कर !!...isaki behad jarurat hai.
"हिलाल"
चैनो सुकून अपने ही घर पर तलाश कर !!.....wah teekhe sher Hilal bhai.
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