आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन.
ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 32 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.
छंदोत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |
(प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से साभार लिया गया है)
तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण !
आपको पुनः स्मरण करा दें कि छंदोत्सव का आयोजन मात्र भारतीय छंदों में लिखी गयी काव्य-रचनाओं पर ही आधारित होगा. इस छंदोत्सव में पोस्ट की गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों के साथ कृपया सम्बंधित छंद का नाम व उस छंद की विधा का संक्षिप्त विवरण अवश्य लिखें.
ऐसा न होने की दशा में आपकी प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दी जायेगी.
नोट :
(1) 22 नवम्बर 2013 तक Reply Box बंद रहेगा, 23 नवम्बर दिन शनिवार से 24 नवम्बर दिन रविवार यानि दो दिनों के लिएReply Box रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो. रचना भारतीय छंदों की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है. यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे और केवल मौलिक एवं अप्रकाशित सनातनी छंद की रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
विशेष :
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अति आवश्यक सूचना :
आयोजन की अवधि के दौरान सदस्यगण अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक के हिसाब से पोस्ट कर सकेंगे. ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो रचनाएँ.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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दूसरी प्रस्तुति-
दुर्मिळ सवैया
शुभ बुद्धि विवेक मिले जब से, सब से खुद को मनु श्रेष्ठ कहे ।
पर यौनि अनेक बसे धरती, शुभ-नीति सदा मजबूत गहे ।
कुछ जीव दिखे अति श्रेष्ठ हमें, अनुशासन में नित बीस रहे ।
जिनकी अति उच्च समाजिकता, पर मानव के उतपात सहे ॥
कुंडलियां
(१)
मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य ।
पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर ।
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।
रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव ।
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥
(२)
बड़ा स्वार्थी है मनुज, शक्कर खोपर चूर ।
चींटी खातिर डालता, शनि देते जब घूर ।
शनि देते जब घूर, नहीं तो लक्ष्मण रेखा ।
मानव कितना क्रूर, कहीं ना रविकर देखा ।
कर्म-योगिनी श्रेष्ठ, नीतिगत बंधन तगड़ा ।
रखें चीटियां धैर्य, व्यर्थ ना जाँय हड़बड़ा ॥
आदरणीय रविकरजी, प्रस्तुत सवैया अद्भूत है मानवीय दंभ पर सुंदर व्यंग वाह सरजी । आपके रचनाओं से शब्दों का अनुपम प्रयोग मुझे बहुत प्रभावित करता है ।
आदरणीय मैं आपके रचनाओं से सीख रहा हू । एक शंका मन आ रहा है, आपके कुण्डली के रोले का पदांत गरू से न हो कर लघु लघु से गुरू किया गया है । पिछले छंद उत्सव में मेरे सवैया पर इस प्रकार के प्रयोग को वर्जित बताया गया था । मार्गदर्शन करने की कृपा हो ।
आपकी द्वितीय प्रस्तुति भी सदैव की भाँति बहुत शानदार रही है आ0 रविकर जी! दूसरी कुण्डलिया मे आपने मानव के भी दुष्कृत्य दर्शाये, की किस तरह मानव अपने स्वार्थ साधने के लिए चींटियों को अपनी रणनीति का सहभागी बनाता है| वाह! श्रेष्ठ!
//जिनकी अति उच्च समाजिकता,// में समाजिकता के प्रयोग को लेकर संशय मे थी|
छ्ंदोत्सव मे स्तरीय सहभागिता हेतु अनंत बधाई प्रेषित करती हूँ आपको आदरणीय!!
सुन्दर सीख देती कुंडलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री रविकर भाई
//बड़ा स्वार्थी है मनुज, शक्कर खोपर चूर ।
चींटी खातिर डालता, शनि देते जब घूर । //
आहा ! कहाँ कहाँ आपकी निगाहें पहुँचती है, सच आनंद आ जाता है आपको पढ़कर, बधाई इस प्रस्तुति पर ।
वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
दोहे
[ पहले, तीसरे चरण में 13-13 – दूसरे, चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ ]
कर्मवीर ये चींटियाँ देती हैं सन्देश
मंज़िल पाने के लिए सहना है हर क्लेश !!
करती हैं श्रम-साधना सच्चे मन से रोज़
कर्मभूमि में है जुटी ये अनुशासित फौज !!
लक्ष्य-प्राप्ति हित हर घड़ी रहना है तैयार
खाई-पर्वत जो मिले, सब करना है पार !!
बाधाओं से क्यों डरें, क्यों बैठें थक-हार
त्याग-तपस्या के बिना किसका है उद्धार !!
रहना है संघर्ष-रत हमको आठों याम .
कितना भी दुष्कर लगे ये जीवन-संग्राम !!
कहती हैं ये चींटियाँ ‘ है आराम हराम ’
पानी है मंज़िल हमें हर दिन करके काम !!
इन जीवों को मिल रहा बस इसमें ही हर्ष
नींद और आलस्य तज करते हैं संघर्ष !!
दिन हो चाहे रात हो, प्रातः हो या शाम
इनको पल भर भी नहीं करना है विश्राम !!
नन्ही- नन्हीं चींटियाँ सिखलाती हैं ज्ञान
कर्म बिना पाया भला किसने लक्ष्य महान !!
थोड़ी सी तो सीख ले इनसे मानव- जाति
जुटे रहें निज कर्म में हम चींटी की भाँति !!
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[ मौलिक/अप्रकाशित]
चित्र के अनुरूप सुंदर दोहे, प्रवाह के साथ ही अच्छे शब्दों का संयोजन । बधाई अजीत भाई " देर आये, दुरुस्त आये " ॥
आदरणीय अजीत शर्मा जी
बहुत खूबसूरत ..चित्र की आत्मा को परिभाषित करती दोहावली प्रस्तुत की है..
नन्ही- नन्हीं चींटियाँ सिखलाती हैं ज्ञान
कर्म बिना पाया भला किसने लक्ष्य महान !!..बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई
सादर
आदरणीय आकाश भाई बहुत ही सुंदर दोहावली है बधाई
आदरणीय ,
प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार !!!
बहुत सुन्दर दोहावली रची है आपने आदरणीय सादर बधाई स्वीकारिये
आवश्यक सूचना:-
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