परम स्नेही स्वजन,
सादर नमन
तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ | इस बार मुशायरे ने एक ऊँचाई को छुआ है, यह सब आपके सतत परिश्रम का ही प्रमाण है, मुशायरे में शिरकत करने वाले सभी शायरों को और उनका उत्साहवर्धन करने वाले सभी पाठकों का हार्दिक आभार|
मिसरों में तीन रंग भरे गए हैं| लाल रंग उन मिसरों में हैं जो बह्र से खारिज हैं| नीले रंग के मिसरों में काफियों का ऐब है, जैसे सिनाद, ईता, तरही के मुताबिक़ काफिया न लेना आदि| हरे रंग के मिसरों में अन्य ऐब हैं| यदि किसी को अधिक जानकारी चाहिए तो कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकते हैं, प्रयास किया जाएगा कि विशेषज्ञों द्वारा समुचित उत्तर दिया जा सके|
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1.
Tilak Raj Kapoor
जब नहीं कुछ सही, सही हो क्या
देखिये जिन्दगी लिखी हो क्या।
अनकहा मौन का सुना भी दो
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या|
हर तरफ अम्न चैन दिखता है
जिन्दगी ख़्वाब से उठी हो क्या।
दिन बदलने की बात, छोड़ो भी
ये कहो, दिल से आतिशी हो क्या।
लाख कोशिश, न दिल से हो रुख़्सत
तुम वही दर्द, तिश्नगी हो क्या।
जिन चराग़ों के दिल धुँआ भर लें
उन चरागों से रौशनी हो क्या।
मैं समझता था आदमी तुमको
पूछता हूँ कि डुगडुगी हो क्या।
दर तुम्हारा नहीं तो और सही
एक उम्मीद आखिरी हो क्या।
मेरी किस्म्त तुम्हीं बताओ ये
उस जहां में कहीं छुपी हो क्या।
दर्द देखो किसी का, रोते हो
उस ज़माने के आदमी हो क्या?
मुस्कुराते हुए नहीं डरतीं
इस जहां में नयी नयी हो क्या।
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2.
Saurabh Pandey
सोचता हूँ जिसे.. वही हो क्या !
डायरी से निकल गई हो क्या !!
छू गयी तो लगा मैं साहिल हूँ !
साथ बहने चली नदी हो क्या !!
लग रही है वसुंधरा सुन्दर !
आज तुम भी उधर जगी हो क्या ?
हो गयी फिर.. हरी-भरी तुलसी
क्या कहूँ तुम मुझे मिली हो क्या !
खुश मेरे साथ हो बहुत, लेकिन-
खिलखिला कर कभी हँसी हो क्या ?
आँख नम क्यों, कहो.. कसम मेरी !
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !!
क्यों अँधेरे मुझे अज़ीज़ न हों
तुम उजाला, सही, मेरी हो क्या ?
इस दफ़े वादियाँ उदास लगीं
कौन जाने उन्हें कमी हो क्या
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3.
sanju shabdita
तुम ही हरसू महक रही हो क्या
कोई खुशबू हो या ख़ुशी हो क्या
आते ही जाने की वज़ह क्या है
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
तुमसे मिलकर बहकने लगता हूँ
सच बताना कि बेखुदी हो क्या
बेवज़ह बात क्यों बढ़ाते हो
हम गलत हैं तो तुम सही हो क्या
काम करते हो जानवर सा तुम
तुमको लगता है, आदमी हो क्या
हर घडी क्यों सता रही हमको
तुम भी दुश्मन से जा मिली हो क्या
जिसको जीता रहा हूँ बचपन से
ऐ सुनो तुम ही जिन्दगी हो क्या
जब भी देखो बरसने लगती हो
तुम भी मौसम सी हो गई हो क्या
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4.
इमरान खान
घर बँटा है तो कुफ्र भी हो क्या।
घर में दीवार भी खड़ी हो क्या।
चाहे कितने भी दूर हो जायें,
भाई भाई में दुश्मनी हो क्या।
हर सू हैवानियत का आलम है,
दूर इंसानियत बसी हो क्या।
अपना दिल भी नहीं रहा बस में,
अब हमारे से रहबरी हो क्या।
क्यों हवाओं कहीं नहीं रुकती,
तुम भी मुझ सी ही सरफिरी हो क्या।
गर चरागों के दिल जले हैं तो,
इनके जलने से रोशनी हो क्या।
चोट खाकर भी उफ नहीं निकली,
इससे ज़्यादा भी बेबसी हो क्या।
अब तलक भी हो ऐतबार किये,
तुम ज़माने से अजनबी हो क्या।
खुश अगर हो तो क्यों हैं नम आँखें,
"मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या"।
सख्त लगते हो टूट जाते हो,
पत्थरों तुम भी आदमी हो क्या।
रंग तो हैं वफा की बू भी नहीं,
गुल तुम ऐ दोस्त काग़ज़ी हो क्या।
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5.
गिरिराज भंडारी
तुम ही कह दो मेरी खुशी हो क्या
सूनी आखों की रोशनी हो क्या
अश्क़ तेरे कहे हैं, पूछ मुझे
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
दिन अँधेरा किया रहा हरदम
रात तुम बोलो मावसी हो क्या
ज़िन्दगी गर मिली तो पूछूंगा
सच में तुम मेरी ज़िन्दगी हो क्या
ख़्वाब टूटे, तो और बुन लेंगे
क्यों ये पूछूँ कि आखिरी हो क्या
क्यों वो ठंडक नहीं है छाँव में अब
उसको कह दो कि धूप सी, हो क्या
मौत के वक़्त वो जो आये हैं
कैसे पूछूँ , कि ज़िन्दगी हो क्या
जो खुशी है , वो दर्द क्यूँ बांटे ?
कोई पूछो तो, दर्द भी हो क्या
जिसको सुनते ही रो पड़े थे सभी
तुम वही मेरी शायरी हो क्या
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6.
CHANDRA SHEKHAR PANDEY
उस खुदा की भी बेखुदी हो क्या,
तुम फरिश्तों की बंदगी हो क्या,
एक सहरा की प्यास लगती हो,
तुम समंदर की तिश्नगी हो क्या।
सीखके मुझ से गूफ्तगू अब वो,
पूछता है कि जंगली हो क्या?
वो तसव्वुर में आज आई थी,
हमने पूछा कि मिल रही हो क्या
कैसी खूश्बू हवा में तिरती है,
आप जुल्फें झटक रही हो क्या।
पूछना था यही कयामत से,
उसके चेहरे की तेवरी हो क्या।
उसके जल्वों की बात मत करना
दोस्तों से भी दुश्मनी हो क्या।
तुम कोई दर्द के महाजन हो,
मुझसे मिलके उदास भी हो क्या।
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7.
Harjeet Singh Khalsa
एक अहसासे-ज़िन्दगी हो क्या
जो न मिल पाए वो ख़ुशी हो क्या
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
रोज मुझमें तलाशती हो क्या
वस्ल की शब बुझे बुझे क्यूँ हो,
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
फिर सुबह में थकी थकी नजरे,
फिर शमां की तरह जली हो क्या
दर्द के गाँव में रहें कब तक,
आप उकता गये नहीं हो क्या
फेर कर मुंह चले मगर यारों,
सोच तो लो कि तुम सही हो क्या
ज़िन्दगी भर 'विशेष' याद रहे,
तुम अधूरी ग़ज़ल वही हो क्या
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8.
laxman dhami
खार पूछे कि कमसिनी हो क्या
फूल से और दिल लगी हो क्या
सब खिले हैं बहार आने पर
पतझड़ों में कभी खिली हो क्या
सो गया दिन तो करवटें लेके
रात मेरे लिए जगी हो क्या
दरमियाँ फासला मिलन में भी
गैर माने ही मिल रही हो क्या
पार आना हुआ नहीं अब तक
आज सोचूं तहनशी हो क्या
बात कोई हो झट तुनक जाती
तुम सियासत की मुँह लगी हो क्या
बढ़ रहा नफरती अॅधेरा है
प्यार की शम्म जल रही हो क्या
भूल पायी न तुम विगत अपना
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या
चाँद तारे तो झर गये कब के
घर जलाऊँ कि रौशनी हो क्या
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9.
Gajendra shrotriya
दौड़ती हाँफती नदी हो क्या
इक समन्दर तलाशती हो क्या
जिस्म की हद भुला चुकी हो क्या
रूह में तुम समा गई हो क्या
जिस्म मेरा लिए भटकती हो
रूह कोई फ़क़ीर की हो क्या
दूर हो तुम सभी सराबों से
कोई दरवेश या वली हो क्या
आँख में आब हाथ में आतिश
प्यार के ख़त जला रही हो क्या
साथ मेरे उदास रहती हो
तुम किसी और की ख़ुशी हो क्या
दूध पीकर जह्र उगलते हो
खानदानी सियासती हो क्या
सच कि राहों पे आज भी हो तुम
यार नादान आदमी हो क्या
कद शज़र सौ गुना करे फिर भी
आसमां की बराबरी हो क्या
पार्थ जैसा रथी तलाश रहे
कृष्ण से आप सारथी हो क्या
चाँद में आज कुछ चमक कम है
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
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10.
शिज्जु शकूर
एक टूटी हुई घड़ी हो क्या
छोड़कर राह यूँ थमी हो क्या
क्यूँ बुझाती हो तुम चराग ऐसे
मेरा लम्हा-ए-आखिरी हो क्या
ये लगे है कभी-कभी दिल को
अब हर इक फैसला सही हो क्या
अब न वो पल रहा न नक्श कोई
तो पलट के यूँ देखती हो क्या
देख के बेरुखी तुम्हारी यूँ
सोचता हूँ कि तुम वही हो क्या
मैं बताऊँ सभी को क्यूँ आखिर
इश्क़ भी अब नुमाइशी हो क्या
छुप छुपा के निकल रही थी तुम
ग़म के मा'ने समझ गई हो क्या
शे'र की शक्ल में जो ग़म निकलें
तुम फ़क़त हर्फ़ कह रही हो क्या
यूँ सरे बज़्म तज्किरा क्यूँ है
मेरा दिल दर्द से तही हो क्या
क्यूँ नज़र ये झुकी-झुकी सी है
“मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या”
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11.
कल्पना रामानी
जिसको चाहा था तुम वही हो क्या?
मेरी हमराह, ज़िंदगी हो क्या?
कल तो हिरनी बनी उछलती रही,
क्या हुआ आज, थक गई हो क्या?
ऐ बहारों की बोलती बुलबुल,
क्यों हुई मौन, बंदिनी हो क्या?
ढूँढती हूँ तुम्हें उजालों में,
तुम अँधेरों से जा मिली हो क्या?
ख़ुशबुएँ अब नहीं सुहातीं तुम्हें?
फिर कहो, बाँवरी हुई हो क्या?
ऐसे व्यवहार की न थी दरकार,
मेरी सरकार, दिल-जली हो क्या?
प्यार से ही तो थी मिली तुमसे,
मुझसे मिलकर, उदास भी हो क्या?
बढ़ चलो चंचला नदी बनकर,
जल से ही बैर ले रही हो क्या?
सुन रही हो, कि जो कहा मैंने?
कोई फरियाद अनसुनी हो क्या?
“कल्पना” मैं कसूरवार नहीं,
रूठकर जा रही सखी हो क्या?
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12.
Krishnasingh Pela
तुम कोई दौर-ए-आशिक़ी हो क्या
एक नये ख्वाब की सदी हो क्या
मुस्कराहट भी खिल न पायी है
दर्द के बाेझ से दबी हो क्या
चााँदनी भी पडी है फीकी सी
मुझ से मिल कर उदास भी हो क्या
तुम भी मेरे नसीब की माफिक
एक अच्छी सी दिल्लगी हो क्या
मैं उजाला नहीं हूँ सूरज का
मुझको बाहर तलाशती हो क्या
छाछ भी फूँक फूँक पीती हो
तुम कभी दूध से जली हो क्या
सारी दुनिया निहारती तुम को
सारी दुनिया से अजनबी हो क्या
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13.
Yamit Punetha 'Zaif'
दर्द ही से फ़क़त बनी हो क्या?
ज़िंदगी! इतनी ही बुरी हो क्या?
है ये कैसा लगाव तुमसे मुझे?
तुम मिरी रूह में बसी हो क्या?
हाले-दिल तो छुपा चुका था मैं,
मेरी आँखों को पढ़ गयी हो क्या?
चुप-सी हो, आई हो यहाँ जबसे,
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या?
गाँव कबका उजड़ गया साहब!
शहर से लौटे ही अभी हो क्या?
हो गई है, तो मान ले ग़लती!
तेरी हर बात अब सही हो क्या?
अश्क काग़ज़ भिगो रहे हैं, क्यूँ?
'ज़ैफ़' की नज़्म पढ़ रही हो क्या?
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14.
Mukesh Verma "Chiragh"
सूनी आँखों से देखती हो क्या
मेरी आँखों की तुम नमी हो क्या ?
दोस्त एहबाब पूछते अक्सर
हमसफ़र, मेरी ज़िंदगी हो क्या ?
शोखियां सब कहाँ गयीं तेरी
“मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या”
सिर्फ़ हँस कर मैं टाल देता हूँ
क्या बताऊं की तुम मेरी हो क्या I
जाने कितने सवाल दिल में हैं
एक बहती हुई नदी हो क्या ?
अश्क आखों में आ ही जाते हैं
चाहे मौक़ा-ए-गम , खुशी हो क्या I
पूछता है ‘चिराग' खुद से यह
संगेमरमर से तुम बनी हो क्या ?
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15.
rajesh kumari
धूप पाकर पिघल रही हो क्या
मोम के जिस्म में ढली हो क्या
मुझसे मिलकर डरी हुई हो क्या
नाजनीं इक छुई-मुई हो क्या
लोग तुमको जो घूरते अक्सर
अपनी नजरें उतारती हो क्या
घट रही रोज चाँद की चांदी
रूप उससे निखारती हो क्या
हम मुलाकात को तरसते हैं
ये कभी आप सोचती हो क्या
कुछ सवालात पूछती नजरें
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
पढ़ सकें हम किताब आँखों की
प्यार की ऐसी चाँदनी हो क्या
सारा आलम महक गया देखो
मस्त डाली गुलाब की हो क्या
हिल रही खिड़कियों कि वो चिलमन
मुझको छुप कर निहारती हो क्या
जिस्म अपना हो धड़कने उसकी
“राज”ऐसी ये जिंदगी हो क्या
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16.
नादिर ख़ान
अपने माज़ी में खो गयी हो क्या
तुम भी रातों को जागती हो क्या
धीरे धीरे सुलग रही हो क्या
ज़ख्म अपने कुरेदती हो क्या
एक लम्हे में लुट गया सबकुछ
मेरी दुनिया से जा चुकी हो क्या
तुमको पाने की है बहुत हसरत
ये बता दो कि ज़िंदगी हो क्या
आसुओं की चुभन है आँखों में
कोई जाती हुई खुशी हो क्या
तेरे जाने से छा गया है तिमिर
मेरी आँखों कि रोशनी हो क्या
क्यो हो मिलकर भी इस तरह गुमसुम
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
हम तो तुमको भी आज़मा लेते
सबकी आँखों कि तुम खुशी हो क्या
गिरते गिरते तो गिर चुके हम सब
खुद ही कह दो कि आदमी हो क्या
ज़ख्मी मै और, ज़ख्मी तुम भी हो
मै सही हूँ या, तुम सही हो क्या
दिल गुनाहों से भर गया नादिर
कुछ तो सोचों कि आदमी हो क्या
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17.
दिगंबर नासवा
यूँ ही मुझको सता रही हो क्या
या कहीं रूठ के चली हो क्या
उसकी यादें हैं पूछती अक्सर
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
मुद्दतों से तलाश है तेरी
जिंदगी मुझसे अजनबी हो क्या
वक़्त ने पूछ ही लिया मुझसे
बूढ़े बापू की तुम छड़ी हो क्या
तुमको महसूस कर रहा हूँ मैं
माँ कहीं आस पास ही हो क्या
दर्द से पूछने लगी खुशियाँ
एक लम्हा था अब सदी हो क्या
मुझसे औलाद पूछती मेरी
इक पुरानी रुकी घड़ी हो क्या
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18.
अरुन शर्मा 'अनन्त'
लालसा तृप्ति तिश्नगी हो क्या,
कल्पना प्रेम प्रेयसी हो क्या,
मुग्ध हैं देवता सभी तुमपर,
स्वर्ग की तुम ही उर्वशी हो क्या,
दुष्ट षड़यंत्र रच रहें फिर से,
दांव पर तुम ही द्रोपदी हो क्या,
घाव पल भर में सूख जाते हैं,
बूंद अमृत की औषधी हो क्या,
गीत मुक्तक ग़ज़ल सभी तुमसे,
सोच तुम और लेखनी हो क्या,
मैं नहीं मानता बुरा कह दो,
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या.
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19.
Sachin Dev
पूछता दिल है , रोशनी हो क्या
चाँद से बिछड़ी चाँदनी हो क्या
बातों–बातों में भीग जाता हूँ
मेरी आखों की तुम नमी हो क्या
बे-कदर रोज बढती जाती हो
तुम ग़रीबों की बेबसी हो क्या
तेरे जाने से साँसें थमने लगी
जिन्दगी मेरी मौत भी हो क्या
तुझ से बिछड़ा तो बुझ गया हूँ मैं
फिर से मिल जाये वो खुशी हो क्या
तेरा चेह्रा बुझा-बुझा क्योँ है
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
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20.
Dr Ashutosh Mishra
आप जन्नत की इक परी हो क्या
सूने जीवन में रोशनी हो क्या
उँगली मुझपे उठाने से पहले
सोच लेना की खुद सही हो क्या
पेश आते हो जिस तरस से तुम
ऐसा लगता है जिन्दगी हो क्या
मेरे ख्वाबों में धडकनों मैं बसे
मेरे ओंठो की तिश्नगी हो क्या
तेरी आँखों से जिसने पी हो मय
उससे फिर और मयकशी हो क्या
जिसने पाला करे हलाल वही
इससे बढ़कर भी बेबसी हो क्या
आओ फिर खेलते हैं गुटटो से
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
काम तो हैं तेरे दरिंदो से
खुद ही सोचो की आदमी हो क्या
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21.
Dr.Prachi Singh
ख्वाब चाहत का मखमली हो क्या
बात गुपचुप सी अनकही हो क्या
तुमको देखा तो धड़कनें थिरकीं
हमसफ़र, तुम ही ज़िंदगी हो क्या
राह गढ़ते हो मेरी खातिर यों
अजनबी, मेरे सारथी हो क्या
शबनमी ताज़गी से महकाती
याद बचपन की चुलबुली को क्या
रूह बन मेरी मुझमें बसते हो
अनकही कोई शायरी हो क्या
जिसकी ख्वाहिश में ज़िंदगी गुज़री
सोचती हूँ कि, तुम वही हो क्या
क्यों चमक आज गुम निगाहों से
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
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22.
Kewal Prasad
तर्ज पर तर्ज गा रही हो क्या ?
जिन्दगी साज में ढली हो क्या?
जिन्दगी बॉंसुरी सही लेकिन,
जख्म पर उॅगलियॉं कसी हो क्या ?
छोड़ कर सॉंस को भरी आहें,
भाव में राधिका लगी हो क्या ?
बस हवा ही हवा हवाई है,
कान में गूँज सी बसी हो क्या ?
तान से तान ही मिलाई है,
साथ मिलकर कभी चली हो क्या?
बन्दगी - बन्दगी रटा करती,
सूर-मीरा कभी बनी हो क्या ?
बावली रेत सी उड़े 'सत्यम',
मुझसे मिल कर उदास भी हो क्या?
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23.
Sarita Bhatia
मेरे जीवन की तुम कली हो क्या
स्पर्श मेरे से तुम खिली हो क्या
मौत के सामने खड़ी हो क्या
मैंने पूछा तू जिन्दगी हो क्या
जो गलत दूसरों को कहते हो
खुद टटोलो जरा सही हो क्या
बच रही मनचलों से तुम ऐसे
आबरू तुम गरीब की हो क्या
साक़िया मेरी तिश्नगी जो बढ़ी
जिन्दगी की तुम्ही नमी हो क्या
दिल उमर भर तलाशता रहा जो
मेरा वो पल वही घड़ी हो क्या
ढोंग करते हो दुश्मनी का तुम
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
आशियाना ज्यों महकने लगा है
तुम यहीं पास ही खड़ी हो क्या
तुम गुनाहों के देवता हो बने
नस्ल से यार आदमी हो क्या
दिल चुराकर मियां छुपे ऐसे
चाल कोई सियासी सी हो क्या
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24.
मोहन बेगोवाल
जिंदगी तुम उसे मिली हो क्या ।
बात खुद से कभी करी हो क्या ।
जब मिली तब तुझे ख़ुशी भी थी ,
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या ।
बुझ गया जो चिराग इस घर का,
याद उसी में शमां जली हो क्या ।
तुम चले साथ तो क्या कहना,
राज की बात तुम सुनी हो क्या ।
ऐ ! अजादी बता दिया होता ,
हाथ तुम बांध के खड़ी हो क्या ।
फूल देखा तभी छुआ मैने ,
साथ इस शूल थी चुभी हो क्या ।
अब नया गीत कोई हो ऐ !दिल,
बात जो थी रही, नयी हो क्या ।
चल के जिस पे तुने पाई मंजिल,
राह उस को कभी मिली हो क्या।
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25.
मनोज कुमार सिंह 'मयंक'
आज की रात भर जगी हो क्या?
तुम भी इस आग से जली हो क्या?
खुद पे इतना गुमान है तुमको,
कोई सुरखाब हो, वली हो क्या?
छोड़ दो मुझको मेरी हालत पर,
तुम कोई मेरी जिंदगी हो क्या?
कब है फुर्सत की राह को देखूं?
कोई मुड़ती हुई गली हो क्या?
तौब नखरें कमाल के हैं तेरे,
तुम सियासत की खलबली हो क्या?
जिसने डाला जमाल पे पर्दा,
उन फरिश्तों की बतकही हो क्या?
चाँद निकला हो जैसे घूंघट में,
मेरे उल्फत की बंदगी हो क्या?
जाम रखते हो मेरे हांथों में,
मैं गलत और तुम सही हो क्या?
रात दिन देखती थी गहनों को,
फर्श पर आज सो रही हो क्या?
एक पल भी नहीं ठहरती हो,
एक बहती हुई नदी हो क्या?
लोग कहते मयंक के किस्से,
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या?
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26.
BHUWAN NISTEJ
फूल, जुगनू, परी, ख़ुशी हो क्या
ज़िन्दगी, रंग, शायरी हो क्या
मेरे रातों की चांदनी हो क्या
या फ़क़त कोई तिश्नगी हो क्या
दिल में अरमान मोम से रखकर
रोज़ शोलों में सेंकती हो क्या
हूक उठती रही मिरे अन्दर
कोई आवाज तुम दबी हो क्या
जिसका ता उम्र इन्तजार मुझे
कोई तुम वस्ल की घड़ी हो क्या
बोलते हैं यहाँ पे सन्नाटे
रह के ख़ामोश सोचती हो क्या
मैं न बोला नज़र कहाँ चुप थी
तुम इशारों से अज़नबी हो क्या
यूँ नहीं बात दिल में रखते हैं
‘मुझ से मिल कर उदास भी हो क्या’
इस शहर में बड़ी दुकानें हैं
ऐ वफ़ा तुम कहीं बिकी हो क्या
आये जब जेह्न में नहीं थमती
माज़ी के याद की नदी हो क्या
है वो ‘निस्तेज’ जो उजाले थे
तुम भी इनमें ही खो गई हो क्या
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27.
VISHAAL CHARCHCHIT
ख्वाब में आये थे वही हो क्या
आओ बैठो न अजनबी हो क्या
सिर्फ गम ही मिले हैं किस्मत से
अब मिली जाके तुम खुशी हो क्या
मौत का इन्तजार था मुझको
और तुम मेरी जिन्दगी हो क्या
बनके आये तो थे खुशी लेकिन
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
भाव इतना क्यों खा रहे 'चर्चित'
तुम ही दुनिया में आखिरी हो क्या
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28.
SURINDER RATTI
संगदिल है वो जानती हो क्या ।
तुम उसे अपना मानती हो क्या ?
दूर ऊँचे फलक से वो झांके,
मेरे पास बैठो न, अजनबी हो क्या ?
रातें तन्हा सफ़र में रोती हैं,
गुज़री शामों से तुम सुखी हो क्या ?
कश्मकश में कहीं छूटे सपने,
उनके बारे में सोचती हो क्या ?
है ख़ुशी की तलाश हम सबको,
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या ?
फिर मचलने लगीं मौजें रुक के,
पास मेरे कहीं बसी हो क्या ?
नज़रें शम्सो-क़मर पे हैं रक्खी,
दिल के कोने में झांकती हो क्या ?
ऐब उल्फत में दर्द देते हैं,
अश्क़ गिरते देख रही हो क्या ?
खुद हज़ारों दफा जुबां बदली,
शोहरत के लिए बिकी हो क्या ?
बेरुखी का मैं क्या करूँ "रत्ती"
हाल ज़ख्मों का पूछती हो क्या ?
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29.
arun kumar nigam
अब भी पहले सी चुलबुली हो क्या
मेरे बारे में सोचती हो क्या
दिल मेरा पूछता रहा मुझसे
सिर्फ मेरे लिये बनी हो क्या
कुंतलों में घटा समायी थी
अब भी सावन की पालकी हो क्या
नाग सी चोटियाँ वो बलखातीं
देह से अब भी संदली हो क्या
साल चालीस बीतने आये
अब भी जूही की तुम कली हो क्या
रूबरू नेट पर हुआ तुमसे
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
झूठे वादों से जीत पाई थी
फिर उसी सीट से खड़ी हो क्या
काठ की हाँडियों को छोड़ो भी
इन चुनावों में तुम नई हो क्या
बाद मुद्दत के दिख रही सूरत
तुम कोई फूल मौसमी हो क्या
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30.
vandana
जिस्मो जाँ अब अदालती हो क्या
साँस दर साँस पैरवी हो क्या
क्यूँ उदासी का अक्स दिखता है
ये बताओ कि आरसी हो क्या
थरथराते हैं लब जो रह-रहकर
कुछ खरी सी या अनकही हो क्या
रतजगों की कथाएं कहती हो
चांदनी तुम मेरी सखी हो क्या
शाम का रंग क्यूँ ये कहता है
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
मैं जरा खुल के कोई बात कहूँ
पूछे हर कोई मानिनी हो क्या
माँ से विरसे में ही मिली हो जो
ए नमी आँखों की वही हो क्या
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31.
रमेश कुमार चौहान
आप तो आस पास ही हो क्या
खुशबू बन कर हवा मे ही हो क्या
काष्ठ में जैसे आग होता है
तुम भी जाहीर ऐसे ही हो क्या
लोग अनदेखा क्यों तुम्हें करते
उनके तन में भी तो तुम्ही हो क्या
जर्रा जर्रा जुदा कहां तुम से
ये सभी तो तुम्ही मे ही है क्या
पूछे ईश्वर तभी किसी से ये
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या
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32.
अजीत शर्मा 'आकाश'
मेरी दुनिया हो ज़िन्दगी हो क्या
दिल की धड़कन की संगिनी हो क्या
तुम ही तुम क्यों हो अब ख़यालों में
मैं समन्दर हूँ तुम नदी हो क्या
सोचता हूँ बसा लूँ दिल में तुम्हें
मीरो-ग़ालिब की शायरी हो क्या
ज़िन्दगी ज़िन्दगी सी लगने लगी
मेरी साँसों में बस गयी हो क्या
अपनी दुनिया में क्यों नहीं ख़ुश हो
मुन्तज़िर मेरी आज भी हो क्या
इश्क़ की आँच तेज़ होती है
लम्हा-लम्हा पिघल रही हो क्या
सच बताना मेरी क़सम है तुम्हें
“मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या ”
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33.
आशीष नैथानी 'सलिल'
अब तलक मुस्कुरा रही हो क्या
शहर में तुम नई-नई हो क्या |
सोचता हूँ, वो जान लेती हो
यार ! तुम कोई ज्योतिषी हो क्या |
मुझको बचपन की कुछ भी याद नहीं
ज़िन्दगी, दौड़ती रही हो क्या |
खुशबुएँ इर्द-गिर्द घूमती हैं
तुम किसी फूल से बनी हो क्या |
तुमसे मिलकर मैं आसमाँ में हूँ
'मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या |'
रूप निखरा है धूप के जैसे
मीर-ग़ालिब की प्रेयसी हो क्या |
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34.
Ashok Kumar Raktale
ढूंढने से भला मिली हो क्या |
प्यार से पा गया ख़ुशी हो क्या |
जगमगाने लगा जहाँ देखो,
सूर्य सी दीप्त रोशनी हो क्या |
रोज आयी खिली सदा सज धज
फूल सी ताजगी परी हो क्या |
सबके सब हैं तलाश में जिसकी
खूबसूरत बला वही हो क्या |
गर्म ये होंठ जिस्म सारा उह !
आग से रोज खेलती हो क्या |
श्वेत क्यूँ हो गया बदन बोलो,
आजकल की हवा दुखी हो क्या |
प्यार हो तुम मेरा मगर फिर भी,
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या |
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35.
shashi purwar
मेरी आँखों की रौशनी हो क्या
मेरे जीवन की चाँदनी हो क्या
थक गया, ढूंढता रहा तुमको
नम हुई, आँखों की नमी हो क्या
धूप सी, तुम खिली रही मन में
इश्क में, मोम सी जली हो क्या-
राज दिल का जरा कहो खुलकर
मौन संवाद की धनी हो क्या
आज खामोश हो गयी कितनी
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
लोग कहते है, बंदगी मेरी
प्रेम ,पूजा, अदायगी हो क्या
दर्द बहने लगा नदी बनकर
पार सागर बनी खड़ी हो क्या
जिंदगी जादुई इबारत हो
राग शब्दो भरी गनी हो क्या
गंध बनकर सजा हुआ माथे
खिलखिलाती हुई खड़ी हो क्या
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36.
ASHISH ANCHINHAR
मैं गलत और तुम सही हो क्या
रात भर खुद से ही लड़ी हो क्या
आज क्यों रुक गई उजाले में
अंधियारे में तुम चली हो क्या
लग रहा है भरम भरम सा कुछ
इससे पहले भी तुम मिली हो क्या
मैं जिसे ढ़ूँढ़ता रहा मर कर
वह अमृत रस भरी नदी हो क्या
पूछती है मिरी हँसी तुमसे
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
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यदि मिसरों को चिन्हित करने में कहीं कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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भाई राणा जी, धन्यवाद, आपने बहुत कम समय में ग़ज़लों का गुलदस्ता पेश किया. हमारे कुछ कवि मित्रों ने मेरी ग़ज़ल के मत्ले में दोष के बारे में ज़िक्र किया था, क्या मतला सही ? कृपया बतायें, मैं यह चाहता हूँ हमारे जानकार मित्र लाल रंग वाले मेरे मिसरों की ग़लती के बारे में बतायें - सुरिन्दर रत्ती
आदरणीय सुरिंदर जी
आपने मतले में जानती और मानती काफिया लिया है जिससे काफिये का निर्धारण 'आनती' हो गया है, अर्थात आपको पूरी ग़ज़ल में अन्य काफिये ठानती, अमानती, आदि लेना चाहिए था, जो की आपने किया नहीं है, दूसरी बात तरही मिसरा देते समय काफिया क्या लेना है वह पहले ही ऊपर की पोस्ट में उदाहरण सहित बताया गया था, जिसके कारण मतला दोषपूर्ण हो जाता है|
लाल रंग वाले मिसरे बहर से खारिज हैं, यदि आप यह स्पष्ट कर सकें आपने उनकी तकतीई २१२२ १२१२ २२/११२ बहर में कैसे की है तो बात आगे बढाई जा सकती है|
सादर
आदरणीय राणा साहेब
पहले तो बधाई देना चाहूँगा. इतने कम समय में संकलन की प्रस्तुति के लिए.
क्रम संख्या १४ पर, तरही मिसरे वाले शेर में क्या ग़लती है..कृपया बताने की कृपा करें.
धन्यवाद
मुकेश जी आपकी ग़ज़ल के गिरह का शेर जो की निम्नांकित है
शोखियां सब कहाँ गयीं तेरी
“मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या”
इसमे एक ऐब है जिसे अरूज में ऐब-ए-शुतुर्गुर्बा नाम दिया गया है| कहीं कहीं इसे सर्वनाम का दोष भी कहा गया है, जब एक ही शेर में किसी एक ही संज्ञा के लिए दो अलग अलग सर्वनाम तथा क्रियाओं का प्रयोग हो तो इस दोष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है| अब देखिये अपने पहले मिसरे में आपने किसी को 'तेरी' कह के संबोधित किया है पर दूसरे मिसरे में उसी के लिए क्रिया 'हो' प्रयोग किया है, जबकि 'हो' के साथ 'तुम' या 'तेरी' के साथ 'है' आना चाहिए था|
शायद मैं स्पष्ट कर सका|
आदरणीय राणा साहेब
त्वरित उत्तर देने के लिए शुक्रिया.. आज मेरी और शिज़्जू जी की इसी बात पर चर्चा भी हो रही थी.. जानते हुए भी मैने पूछना उचित समझा जिससे और लोगो को भी फ़ायदा हो सके.
पर आपका बताने का तरीका और भी स्पष्ट है..
धन्यवाद
आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी सादर, सर्व प्रथम तो इतनी सारी रचनाओं को रंग देकर संकलित करने पर आपको बहुत-बहुत बधाई. दूसरा इस बार की प्रस्तुत गजलों में अधिकाश गजलों के मतले नीले रंगे हुए हैं. वह क्या ख़ास था जिस पर ध्यान दिया जाना था कृपया जानकारी दें ताकि आगे सुधार किया जा सके. सादर.
सर्वप्रथम आ० राणा प्रताप जी को ग़ज़ल संकलन के लिए हार्दिक बधाई| आ० राणा जी से अनुरोध है कि यदि अब इनमे इता दोष नहीं है तो मेरी ग़ज़ल में ये संशोधन कर दीजिये प्लीज
दर्द सुनकर पिघल रही हो क्या
मोम से तुम बनी हुई हो क्या ---------मतला
पास आने से डर रही हो क्या
नाजनीं इक छुई-मुई हो क्या --हुस्ने मतला
इमरान भाई आपने बिलकुल सही पकड़ा है, हमारे से व्याकरण की दृष्टि से गलत है, इसे हमसे होना चाहिए|
क्षमा कीजिएगा आपके मतले में भी कोई दोष नहीं था, गलती से नीले रंग में चला गया था|
आदरणीय राणा प्रताप जी सर्वप्रथम हार्दिक बधाई संकलन हेतु .
क्रम संख्या ३ पर मेरी ग़ज़ल में कृपया निम्नवत सुधार कर दें.
तुम ही हरसू महक रही हो क्या
कोई खुशबू हो या ख़ुशी हो क्या
मतले को निम्नवत कर दें
तुम ही हरसू महक रही हो क्या
कोई खुशबू हो या कली हो क्या
काम करते हो जानवर जैसा
तुमको लगता है, आदमी हो क्या
और इस शेर को भी निम्नवत कर दें
काम करते हो जानवर सा तुम
तुमको लगता है, आदमी हो क्या
महती कृपा होगी
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