(1). आ० अरुण कुमार निगम जीये प्यार मस्त नज़र के सिवा कुछ और नहीं
खुमार ए चढ़ती उमर के सिवा कुछ और नहीं |१|
न पूछ यार मुझे प्यार किसको कहते हैं
मेरी नज़र में हुनर के सिवा कुछ और नहीं |२|
विकास आप कहें , है लकीर टेढ़ी – सी
हमारी टूटी कमर के सिवा कुछ और नहीं |३|
क़ज़ा सुकून भरी नींद - सी लगी यारों
हयात सोज़ ए जिगर के सिवा कुछ और नहीं |४|
फँसा जो एक दफा फिर न आ सका बाहर
ये लोभ एक भँवर के सिवा कुछ और नहीं |५|
कभी था वक़्त बुरा , दर पे माँगने आया
सँभल गया वो कुँवर के सिवा कुछ और नहीं |६|
शराब सिर्फ इजाफा करे खजाने में
सही कहें तो जहर के सिवा कुछ और नहीं |७|
खिंची तो टूट गई कब भला रही कायम
तुम्हारी बात रबर के सिवा कुछ और नहीं |८|
बड़ा ही शोर हुआ स्वर्ग आ गया भू पर
हवा में उड़ती खबर के सिवा कुछ और नहीं |९|
गया न मर्ज मेरा बस दवा मिली कड़वी
जवाब डोन्ट फिकर के सिवा कुछ और नहीं |१०|
कुछ एक साल हुए , गर्म सूप से था जला
डिमांड चिल्ड बियर के सिवा कुछ और नहीं |११|
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(2). आ० तिलक राज कपूर जीमुझे मिला है हुनर के सिवा कुछ और नहीं
तलाशता हूँ नज़र के सिवा कुछ और नहीं।1।
ये जीस्त एक समर के सिवा कुछ और नहीं
मगर विकल्प बसर के सिवा कुछ और नहीं।2।
तमाम उम्र समेटा जिसे समझ अपना
पता चला कि सिफ़र के सिवा कुछ और नहीं।3।
बिना परों के उड़ा हूँ सदा अकेला मैं
लिये हूँ साथ जिगर के सिवा कुछ और नहीं।4।
अता खुदा ने मुझे की इसे कहूँ कैसे
हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं।5।
भटक रहा है मुसाफिर नहीं मिली मंजि़ल
ये कोशिशों में कसर के सिवा कुछ और नहीं।6।
असर दुआ का कहूँ या किसी की मिन्नत का
मेरा वज़ूद मेहर के सिवा कुछ और नहीं।7।
जिसे यकीं था जहां एक दिन बदल देगा
उसी की मौत खबर के सिवा कुछ और नहीं।8।
किसान कर्ज़ चुका कर चला तो ये पाया
बचा है पास बखर के सिवा कुछ और नहीं।9।
नसीब कोस रहे हो मगर उसे देखो
जिसे मिला ही सहर के सिवा कुछ और नहीं।10।
रफ़ीक़ गैर हुए, देख कर फटी ज़ेबें
मिला अगर व मगर के सिवा कुछ और नहीं।11।
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(3). आ० गिरिराज भंडारी जीइधर तो ज़ख़्मे जिगर के सिवा कुछ और नहीं
उदास, खोई नज़र के सिवा कुछ और नहीं
कहीं हँसी के न क़तरे दिखाई देंगे तुम्हें
“ हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं ”
वो मुझसे पूछ्ते हैं ज़िन्दगी का हासिल क्या ?
कोई कहे, कि सिफर के सिवा कुछ और नहीं
न मंज़िलें , न मराहिल , न रोशनी मेरी
मेरा नसीब ,सफर के सिवा कुछ और नहीं
अभी है हौसला बाक़ी ,मैं कैसे ये कह दूँ
ख़ुदाया, अब तेरे दर के सिवा कुछ और नहीं
मै रोम रोम से देखूंगा , आयें बर तो कभी
ये सारा जिस्म, नज़र के सिवा कुछ और नहीं
उफ़क पे दूर, वो जो रोशनी की आमद है
यक़ीन कर , वो सहर के सिवा कुछ और नहीं
सबब हयात की तारीकियों का मत पूछो
बहुत करीबी बशर के सिवा कुछ और नहीं
जो सिर्फ ज़िन्दगी देता है , कुछ नहीं लेता
अजल से दोस्त , शज़र के सिवा कुछ और नहीं
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(4) आ० शिज्जु शकूर जी कुछ एक पल के शरर के सिवा कुछ और नहीं
ये हादिसा भी खबर के सिवा कुछ और नहीं
यहाँ तो दिल भी बदल जाते हैं मुकाम के साथ
ये वक्त राहगुज़र के सिवा कुछ और नहीं
सदा-ए-सुब्ह, नई ज़िन्दगी अगर मानें
नहीं तो आम सहर के सिवा कुछ और नहीं
न जाने शह्र ये किसकी अमाँ में है क्या हो
यहाँ हर आँख में डर के सिवा कुछ और नहीं
डराये रात दरीचे से कोई पैकर सा
वो एक शाखे शजर के सिवा कुछ और नहीं
वफ़ा-ए-अहले ख़िरद देखिये जनाब यहाँ
वफ़ा झुके हुये सर के सिवा कुछ और नहीं
कभी अलम में कभी ख़ुम में डूब कर क्या हो
“हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नही”
अमाँ =सुरक्षा
अहले ख़िरद =अक्ल वाले
ख़ुम =मटका जिसमें शराब रखी जाती है
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(5). आ० कल्पना रामानी जीखुदा से माँगा महर के सिवा कुछ और नहीं।
दुआएँ देती नज़र के सिवा कुछ और नहीं।
जो जानते ही नहीं, साज़, राग, उनके लिए,
ग़ज़ल भी रूक्ष बहर के सिवा कुछ और नहीं।
पिलाके नाग को पय, बाद पूज लो चाहे,
मिलेगा दंश-ज़हर के सिवा कुछ और नहीं।
दुखा के गाँव का दिल चल दिये मिला लेकिन,
दिलों से तंग शहर के सिवा कुछ और नहीं।
जवाबी तोहफे मिलेंगे हमें भी कुदरत से,
सुनामी, बाढ़, कहर के सिवा कुछ और नहीं।
विपन्न हैं जिन्हें दिखता हसीन दुनिया में,
उदास शाम सहर के सिवा कुछ और नहीं।
खफ़ा हूँ उनसे जो कहते हैं “कल्पना” अक्सर,
“हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं”
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(6) आ० अभिनव अरुण जीये चंद साँसों के घर के सिवा कुछ और नहीं |
सफ़र में मौत के डर के सिवा कुछ और नहीं |
इसे मलंगी कहो औघड़ी फ़कीरी कहो ,
मुझे तो उसकी ख़बर के सिवा कुछ और नहीं |
उजाले रोक रही हैं किले की दीवारें ,
शहर को दे तू सहर के सिवा कुछ और नहीं |
किसी की चाह में ये उम्र बीत जानी है ,
हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं |
मंगाओ केक, जली मोमबत्तियां फूको ,
ये जश्न -ए- घटती उमर के सिवा कुछ और नहीं |
तमाम मील के पत्थर हटा दो रस्ते से ,
मुझे अज़ीज़ सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |
गली गली में दुकानें हैं रंग रोगन की ,
हमारी शक्ल हुनर के सिवा कुछ और नहीं |
हरेक मोड़ खड़ा है लिए हुए पत्थर ,
ये हादिसों के सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |
जिधर से गुज़रो उधर ही पलासी चौसा है ,
हमारी ज़ीस्त समर के सिवा कुछ और नहीं |
रगों में दौड़ रही है ये कैसी खुदगर्जी,
बदायूँ हमको खबर के सिवा कुछ और नहीं |
पसंद है वो हमें, बस गया है नज़रों में
नज़र नज़र है नज़र के सिवा कुछ और नहीं |
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(7). आ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जीये जिस्म गम के शज़र के सिवा कुछ और नहीं
जहां किसी नश्तर के के सिवा कुछ और नहीं
कहीं निगल ही न ले आपसी लगाव को भी
ये नफ़रतें अजगर के सिवा कुछ और नहीं
ज़माने के सब पापों को पी लिया शिव ने
कि शिव के पास जहर के सिवा कुछ और नहीं
भटकता ही मैं रहा उम्रभर कि अब यूँ लगे
ये ज़िन्दगी भी सफर के सिवा कुछ और नहीं
समझता था मैं ग़ज़ल होती है जिगर का लहू
मगर ग़ज़ल तो बहर के सिवा कुछ और नहीं
मैं गुनगुना न सका गीत ज़िन्दगी के कभी
हयात सोज़ ए जिगर के सिवा कुछ और नहीं
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(8). आ० लक्ष्मण धामी जीतुझे तो चाह सफर के सिवा कुछ और नहीं
मगर मुझे तो ये घर के सिवा कुछ और नहीं
मिलूँ भी यार तो कैसे मिलूँ तुझे अब मैं
ये जिंदगी भी सफर के सिवा कुछ और नहीं
तलब तो है कि कभी प्यार की सुधा दे दे
पिला मगर तू जहर के सिवा कुछ और नहीं
रखे वो पास में गालिब कि मीर हमदम, पर
सुने कभी तो जिगर के सिवा कुछ और नहीं
हमें तो खूब लगी खुशनुमा, कहे क्यों तू
हयात सोज-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
हर एक साँस दुआ आपकी रही जिसको
दवा उसे तो नजर के सिवा कुछ और नहीं
कतीब काट रहा है कतीब पर बैठा
ये आदमी तो कहर के सिवा कुछ और नहीं
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(9). आ० राजेश कुमारी जी चुनाव दौर–ए-समर के सिवा कुछ और नहीं
वतन में आज ग़दर के सिवा कुछ और नहीं
छुपा हुआ वो मेरा बचपना सदा जिसमे
मेरे अजीज़ शहर के सिवा कुछ और नहीं
नदी से मिलके समंदर भी हो गया मीठा
ये सोहबतों के असर के सिवा कुछ और नहीं
तमाम रात शमा जल गई जो हँस-हँस के
अदा हसीन हुनर के सिवा कुछ और नहीं
कदम- कदम पे यहाँ इम्तहान से गुजरो
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
फ़कत खलिश के ये अखबार और क्या देते
सितम या मौत खबर के सिवा कुछ और नहीं
जहाँ उतार सकूँ बोझ मैं गुनाहों के
सही जगह तेरे दर के सिवा कुछ और नहीं
तेरा कयास कि सहरा में आबशार दिखें
फ़कत फ़रेब नज़र के सिवा कुछ और नहीं
उठाये बोझ सदा और उफ़ कभी न करे
वो मुफ़लिसी कि कमर के सिवा कुछ और नहीं
तमाम उम्र गुजारी ख़जां से लड़-लड़ के
नसीब में तो कहर के सिवा कुछ और नहीं
पुछल्ला ---
वजूद है न कहीं भूत या चुड़ैलों का
वो रूह में बसे डर के सिवा कुछ और नहीं
.
संशोधित*
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(10). आ० मंजरी पाण्डेय जीजिधर भी देखूँ मै डर क़े सिवा क़ुछ और नही
ज़िंदगी आज ज़हर के सिवा कुछ और नहीं
रोज अस्मत ये ताऱ - ताऱ तार हुई जाती है
ख़ौफ़ आतंक औ डऱ के सिवा कुछ और नहीं
दर्द औरत के सीने में समाए रहता है
निगाह में समंदर के सिवा कुछ और नहीं
गली सड़क से गले लग के रो न पत्ती हैं
ये बेबसी क़े असर के सिवा कुछ और नहीं
मञ्जरी ,ख़ुद से खुद को थाम के ले चलना हैं
ज़िंदगी मचलती लहर के सिवा कुछ और नहीं.
मोम सी गल के भी पल को सुकूँ न मिलता है
हयात- सोज़ - ए ज़िगर के सिवा कुछ और नहीं
संशोधित*
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(11). आ० मोहन बेगोवाल जीडगर हमेशा सफर, के सिवा कुछ और नहीं ׀
नज़र निशाने सहर, के सिवा कुछ और नहीं ׀(१)
हमें अभी न कहो फूल क्यूँ खिले न यहाँ,
लगे आई न शजर, के सिवा कुछ और नहीं ׀(२)
मुझे मलाल हमेशा यही, बना था रहा,
मिला वही उम्र भर, के सिवा कुछ और नहीं ׀(३)
अभी जैसे घुमा लेते करीब आ चिहरा
ऐसे लगा तेरे दर, के सिवा कुछ और नहीं ׀(४)
गुबार अब नउमीदी कोई यहाँ न रहे,
रहा अगर व मगर,के सिवा कुछ और नहीं ׀(५)
कैसे कहें जो मिली थी डगर, जख्म भी मिले,
हयात सोज -ए -जिगर के सिवा कुछ और नहीं ׀(६)
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(12) आ० आशुतोष मिश्रा जीहयात एक सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
मुकाम रब के ही दर के सिवा कुछ और नहीं
मेरा जो हाल हुआ यार बस सबब उसका
हसीं नजर के असर के सिवा कुछ और नहीं
ग़ज़ल को आप समझ लेते तो नहीं कहते
ग़ज़ल की जान बहर के सिवा कुछ और नहीं
उजाले देख के अंदाज मत लगाना तुम
है रोशनी तो सहर के सिवा कुछ और नहीं
किया जमाने ने मजबूर बेटियों को अब
लगे हयात जहर के सिवा कुछ और नहीं
कभी ये दौर भी आते हैं इस सियासत में
हवा में एक लहर के सिवा कुछ और नहीं
अजब ये दौर है चर्चा-ए-हुस्न में अब तो
हसींन गुल की कमर के सिवा कुछ और नहीं
रहे न जब हैं जिगर वाले कैसे हम कह दें
हयात सोज –ए- जिगर के सिवा कुछ और नहीं
परिंदे ख़ाक उड़ेंगे फलक पे वो यारों
हैं जिनके पास में पर के सिवा कुछ और नहीं
संशोधित*
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(13). आ० गजेन्द्र श्रोत्रिय जीमहकते एक शजर के सिवा कुछ और नहीं
मैरा वजूद इतर के सिवा कुछ और नहीं
अभी तो मैं हूँ सिफ़र के सिवा कुछ और नहीं
मगर नज़र में शिखर के सिवा कुछ और नहीं
सुकूँ तलाश न कर दिल की इस निजामत में
यहाँ पे एक ग़दर के सिवा कुछ और नहीं
फ़लक पे लाख सितारे अयाँ हुए हैं मगर
सरे-निगाह क़मर के सिवा कुछ और नहीं
बह्र उसी को अता करता है गुहर यारों
नज़र में जिसकी गुहर के सिवा कुछ और नहीं
परों से नाप रहे हैं फ़लक की हद को जो
मुकाम उनका शजर के सिवा कुछ और नहीं
वक़ार ख़ूब बुलंदी पे हो भले तेरा
ख़ुदा नहीं तू बशर के सिवा कुछ और नहीं
मिले न तेग-सिपर जंगजू भले तुझको
ख़याल में हो जफ़र के सिवा कुछ और नहीं
यहाँ पे सब हैं मुसाफ़िर चले चलो यारों
हयात एक सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
यकीं दिलों में अगर है ख़ुदा बुतों में है
नहीं तो एक हजर के सिवा कुछ और नहीं
हसीन है यूँ बहुत गर वफ़ा मिले वर्ना
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
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शजर- वृक्ष / पेड़, वजूद- अस्तित्व, इतर- इत्र
सिफ़र- शून्य, ग़दर- हलचल / विद्रोह, अयाँ- प्रकट होना
क़मर - चाँद, बह्र - समुद्र, गुहर- मोती
वक़ार- पराक्रम / ऐश्वर्य, बशर - मनुष्य,
तेग- सिपर = तलवार और ढाल,
जंगजू- योद्धा, जफ़र- जीत/ विजय, हजर - पत्थर
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(14). आ० भुवन निस्तेज जीये रोग उसके असर के सिवा कुछ और नहीं
जो मेरी नूर-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं
ये ज़िन्दगी भी सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
नदी की तेज लहर के सिवा कुछ और नहीं
वो शख्श आया है बेकारियों के घाव लिए
है पास जिसके हुनर के सिवा कुछ और नहीं
तू मीठे बोल नहीं बोलता तो चुप रह दे
ज़बां पे तेरी ज़हर के सिवा कुछ और नहीं
वो मंजिलों पे बसर आपको मुबारक हो
हमारे पास सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
समन्दरों से कहाँ कांच की तिजारत हो
मलाल है के गुहर के सिवा कुछ और नहीं
चला जो छोड़ इसे कारवां परिंदों का
यहाँ पे बूढ़े शज़र के सिवा कुछ और नहीं
न कोई रंग-ए-हिना, अब्र-ए-तर न गुल, तितली
'हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं'
बीमार अपने चरागों से बोल कुछ सह ले
ढली है रात सहर के सिवा कुछ और नहीं
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(15). आ० अरुण शर्मा अनंत जीजहाँ दिलों में जहर के सिवा कुछ और नहीं,
वो विषधरों के नगर के सिवा कुछ और नहीं,
समाज में न दया धर्म प्रेम सच्चाई,
अधर्म पाप कहर के सिवा कुछ और नहीं,
दहेज़ खून बलात्कार चोरी घोटाले,
कि सुर्ख़ियों में खबर के सिवा कुछ और नहीं,
शिकन गरीब के माथे की चीख कहती है,
तमाम दर्द फिकर के सिवा कुछ और नहीं,
सुकून आपकी बाहों में मिल रहा वर्ना,
हयात सोज-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
यहाँ उलझ के बड़ी देर छटपटाता हूँ,
घनी ये जुल्फ भँवर के सिवा कुछ और नहीं.
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(16). आ० शकील समर जीहरेक सिम्त शजर के सिवा कुछ और नहीं
मेरी तलब है ख़िज़र के सिवा कुछ और नहीं
नजर की ज़द में लहर के सिवा कुछ और नहीं
मगर तलाश गुहर के सिवा कुछ और नहीं
हरेक रोज की उलझन है और दुश्वारी
हयात जैसे बहर के सिवा कुछ और नहीं
जला के बस्तियां संसद में चीखतें हैं वो
मुझे है फिक्र-ए-बशर के सिवा कुछ और नहीं
हरा-भरा है मगर ये शजर कटेगा जरूर
सभी को शौक़-ए-समर के सिवा कुछ और नहीं
तुम्हारे पास 'पहुंच' भी है और 'पैसा' भी
हमारे पास हुनर के सिवा कुछ और नहीं
किया जो इश्क तो ये राज भी खुला हम पर
'हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं'
बुरा न मानो तो इक बात मैं कहूं तुमसे
तेरी ये बिंदी क़मर के सिवा कुछ और नहीं
तुम्हारी आंखें मुझे लग रहीं हैं मयखाने
ये जाम तेरी नजर के सिवा कुछ और नहीं
सही था फैसला तेरा कि मुझसे दूर हुए
'शकील' एक भंवर के सिवा कुछ और नहीं
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(17). आ० अशफ़ाक़ अली (गुलशन खैराबादी) जीये जिंदगी है भवर के सिवा कुछ और नहीं
यहाँ है खौफ ओ खतर के सिवा कुछ और नही
सुराब जैसे सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
ये सब फरेब नज़र से के सिवा कुछ और नहीं
तमाम राह मेरे ज़हनो दिल पे छाए रहे
तुम्हारे दीदए तर के सिवा कुछ और नहीं
किसी ने तलखिये हालात में कहा होगा
"हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं"
ऐ दोस्त रूए मुनव्वर का तज़किरा जब हो
मिसाल शम्सो क़मर के सिवा कुछ और नहीं
भला करे की बुरा ये दवा की फितरत है
दुआ का काम असर के सिवा कुछ और नहीं
हर एक मोड़ पे कितने तिलस्म हैं 'गुलशन'
ये शहर जादू नगर के सिवा कुछ और नही
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(18). आ० नीलेश शेवगांवकरलगी है घर को, नज़र के सिवा कुछ और नहीं,
बचा है सूखे शजर के सिवा कुछ और नहीं.
.
न मंज़िलें हैं न राहें न छाँव पलकों की,
मेरे सफ़र में सफ़र के सिवा कुछ और नहीं,
.
न आँख जान इसे, बंद सींप है नादाँ,
कि अश्क भी तो गुहर के सिवा कुछ और नहीं. .
डुबा न डाले कहीं आपको मेरी सुहबत,
कि मेरे पास भँवर के सिवा कुछ और नहीं. .
कभी कभी ये भी देती है कुछ क़रार मगर,
“हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं.”.
नशे में इश्क़ के क्यूँ चूर “नूर” रहता है,
नशा, नशे के असर के सिवा कुछ और नहीं.
.
एक पुछल्ला
ये इन्तिख़ाब की लाई हुई सहर देखो,
हरेक शक्ल पे डर के सिवा कुछ और नहीं.
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(19). आ० अखंड गहमरी जीशराब यार कहर के सिवा कुछ और नहीं
कहो ये बात खबर के सिवा कुछ और नहीं
जली कही पर लाशे मगर धुआँ यहाँ था
मगर सुना यह डर के सिवा कुछ और नहीं
निभा नहीं सकते प्यार खा कसम देखो
वफा भी आज कहर के सिवा के कुछ और नहीं
न जिन्दगी हमको दे सकी कभी खुशियाँ
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
दिया नही हमने रोटी भी गरीबो को
दिया जो गुजर बसर के सिवा कुछ और नहीं
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(20). आ० गीतिका वेदिका जीतेरा गुमान सिफर के सिवा कुछ और नहीं
तेरी तलाश भँवर के सिवा कुछ और नहीं
उदास रात रही भोर भी रही तन्हा
ये बददुआ के असर के सिवा कुछ और नहीं
~
महासमर है ये जीवन, तो श्वास रणभेरी
लगन और धैर्य भी शर के सिवा कुछ और नहीं
~
खुशी की बात भी लगती है एक खुशफ़हमी
हयात सोजे जिगर के सिवा कुछ और नहीं
~
न जाने किसकी दुआ से हैं हम सलामत, गो
हरेक साँस में डर के सिवा कुछ और नहीं
~
दवा न कोई दुआ काम आ सके, तय है
ये ताप उसके कहर के सिवा कुछ और नहीं
कहीं मलाल तुझे खा न जाये ए इंसा
कटे छ्टे ये शजर के सिवा कुछ और नहीं
संशोधित
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(21). आ० इमरान खान जीकरीब राहगुज़र के सिवा कुछ और नहीं,
ये ज़ीस्त तल्ख सफर के सिवा कुछ और नहीं।
ये लब सिले हैं मेरे, अब तुम्हें सुनाने को,
दुखों में लिपटी खबर के सिवा कुछ और नहीं।
जो तुमसे दिल को लगाया तो मैंने पाया है,
उदास शामो सहर के सिवा कुछ और नहीं।
किसी ने बस्ती ए दिल को तबाह कर डाला,
दिल आज उजड़े नगर के सिवा कुछ और नहीं।
ये तन-बदन ये दिल-दिमाग जल गये क्योंके,
हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं।
मेरे ज़हन पे तू हावी हुआ था अब लेकिन,
तू एक हल्के असर के सिवा कुछ और नहीं।
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